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उत्प्रेक्षा  : स्त्री० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+अ-टाप्] [वि० उत्प्रेक्ष्य, उत्प्रेक्षणीय] १. उत्प्रेक्षण। २. एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान के भेद का ज्ञान होने पर भी इस बात का उल्लेख होता है कि उपमेय उपमान के समान जान पड़ता है। जैसे—अति कटु वचन कहत कैकेई। मानहु लोन जरे पर देई।-तुलसी। विशेष—इव, लजनु, जानो, मनु, मानो आदि शब्द इस अलंकार के सूचक होते है। इसके तीन भेद हैं-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उत्प्रेक्षा  : स्त्री० [सं० उद्-प्र√ईक्ष्+अ-टाप्] [वि० उत्प्रेक्ष्य, उत्प्रेक्षणीय] १. उत्प्रेक्षण। २. एक अर्थालंकार जिसमें उपमेय और उपमान के भेद का ज्ञान होने पर भी इस बात का उल्लेख होता है कि उपमेय उपमान के समान जान पड़ता है। जैसे—अति कटु वचन कहत कैकेई। मानहु लोन जरे पर देई।-तुलसी। विशेष—इव, लजनु, जानो, मनु, मानो आदि शब्द इस अलंकार के सूचक होते है। इसके तीन भेद हैं-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा और फलोत्प्रेक्षा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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