शब्द का अर्थ
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उच्चारण :
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पुं० [सं० उद्√चर् (गति)+णिच्+ल्युट्-अन] १. मुँह से इस प्रकार शब्द निकालना कि औरों को सुनाई दे। २. मनुष्यों का गले और मुँह के भिन्न अंगों के संयोग से अक्षरों, व्यंजनों आदि के रूप में सार्थक शब्द निकालना। (आर्टिक्युलेन) विशेष—व्यावहारिक क्षेत्र में प्रायः ‘उच्चारण’ का प्रयोग केवल मनुष्यों के संबंध में और ‘उच्चरण’ का प्रयोग मनुष्यों के सिवा पशु-पक्षियों आदि के संबंध में भी होता है। ३. अक्षरों, वर्णों आदि के संयोग से बने हुए सार्थक शब्द कहने या बोलने का निश्चित और शुद्ध ढंग या प्रकार। (प्रोनन्सिएसन) जैसे—अभी तुम्हारा अँगरेजी (या संस्कृत) शब्दों का उच्चारण ठीक नहीं हो रहा है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उच्चारणीय :
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वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+अनीयर्] (शब्द) जिसका उच्चारण हो सकता हो या होना उचित हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उच्चारण :
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पुं० [सं० उद्√चर् (गति)+णिच्+ल्युट्-अन] १. मुँह से इस प्रकार शब्द निकालना कि औरों को सुनाई दे। २. मनुष्यों का गले और मुँह के भिन्न अंगों के संयोग से अक्षरों, व्यंजनों आदि के रूप में सार्थक शब्द निकालना। (आर्टिक्युलेन) विशेष—व्यावहारिक क्षेत्र में प्रायः ‘उच्चारण’ का प्रयोग केवल मनुष्यों के संबंध में और ‘उच्चरण’ का प्रयोग मनुष्यों के सिवा पशु-पक्षियों आदि के संबंध में भी होता है। ३. अक्षरों, वर्णों आदि के संयोग से बने हुए सार्थक शब्द कहने या बोलने का निश्चित और शुद्ध ढंग या प्रकार। (प्रोनन्सिएसन) जैसे—अभी तुम्हारा अँगरेजी (या संस्कृत) शब्दों का उच्चारण ठीक नहीं हो रहा है। |
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उच्चारणीय :
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वि० [सं० उद्√चर्+णिच्+अनीयर्] (शब्द) जिसका उच्चारण हो सकता हो या होना उचित हो। |
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