शब्द का अर्थ
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आदि :
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पुं० [सं० आ√दा+कि] १. मूल कारण। २. आरंभ। शुरू। ३. परमात्मा। वि० १. पहला। जैसे—आदि कवि। २. आरंभ का। अव्य० एक अव्यय जिसका अर्थ होता है- इसी प्रकार या और बाकी सब भी, और जिसका प्रयोग कुछ चीजें गिनाने या बातें बताने के बाद यह सूचित करता है कि इस प्रकार की और सब चीजें या बातें भी इसी वर्ग में समझ ली जानी चाहिए। इत्यादि। वगैरह। (एट-सेट्रा) जैसे—(क) गौ, घोड़ा हाथी आदि। (ख) कपड़े गहने बरतन आदि। |
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आदिक :
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अव्य० [सं० आदि+क] आदि। वगैरह। (इस बात का सूचक कि ऐसे ही और भी समझें) जैसे—धर्म गुरु, पुरोहित आदिक। वि० किसी काम के आरंभ में होनेवाला। (इनीशियल) जैसे—(क) झगड़े या आदिक कारण। (ख) उत्सप का आदिक व्यय। |
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आदि-कल्प :
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पुं० [सं० कर्म० स०] भू० विज्ञान के अनुसार पाँच कल्पों से पहला कल्प जिसमें प्रायः सारे पृथ्वीतल पर ज्वालामुखियों का विस्फोट होता रहा था। अनुमान है कि यह कल्प आज से दो अरब वर्ष पहले हुआ था। (आर्कियाजोइक एरा) |
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आदि-कवि :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. वाल्मीकी। २. शुक्राचार्य। |
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आदि-कारण :
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पुं० [सं० कर्म० स०] सृष्टि का पहला उपादान या मूल कारण। विशेष—सांख्य के मत से प्रकृति वैशेषिक के मत से परमाणु और वेदांत के मत से ब्रह्म इस सृष्टि के आदि कारण माने गये हैं। |
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आदित :
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पुं० =आदित्य (सूर्य)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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आदितेय :
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पुं० [सं० अदिति+ठक्-एय] अदिति के पुत्र, सूर्य। |
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आदित्य :
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पुं० [सं० अदिति+ण्य] १. अदिति के पुत्र धाता, मित्र अर्यमा, रुद्र, वरुण, सूर्य, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु। २. सूर्य। देवता। ४. इंद्र। ५. वसु। ६. विश्वेदेव। ७. वामन अवतार। ८. मदार का पौधा। आक। ९. बारह मात्राओं के छंदों (तोमर लीला आदि) की संज्ञा। |
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आदित्य-केतु :
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पुं० [ष० त०] सूर्य का सारथि, अरुण। |
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आदित्य-पर्णी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. सूरजमुखी नाम का पौधा और उसका फूल। २. एक प्रकार की बूटी जिसमें लाल फूल लगते हैं। |
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आदित्य-पुराण :
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पुं० =सूर्य-पुराण। |
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आदित्य-मंडल :
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पुं० [ष० त०] १. सूर्य के चारों ओर का प्रभा मंडल। २. वह वृत्त जिसपर सूर्य भ्रमण करता है। |
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आदित्य-वार :
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पुं० [ष० त०] रविवार। एतवार। |
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आदि-देव :
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पुं० [कर्म० स०] विष्णु। नारायण। |
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आदि-नाथ :
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पुं० [कर्म० स०] शिव। महादेव। |
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आदि-पुराण :
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पुं० [क्रम० स०] =ब्रह्मा पुराण। |
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आदि-पुरुष :
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पुं० [कर्म० स०] १. परमेश्वर। विष्णु। २. वह जिससे किसी वंश का आरंभ हुआ हो। मूल-पुरुष। |
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आदिम :
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वि० [सं० आदि+डिमच्] १. सबके आदि में होनेवाला। प्रथम। पहला। २. जो बहुत पुराना आरंभिक अविकसित और बिलकुल सीधे-सादे ढंग का हो। (प्रिमिटिव)। |
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आदिम-जाति :
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स्त्री० [कर्म० स०] किसी देश में रहनेवाला सबसे पहली और पुरानी मनुष्य जाति। (प्रिमिटिव रेस) |
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आदिम-निवासी (सिन्) :
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पुं० [कर्म० स०] दे० आदि वासी। |
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आदि-मान :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. वह आदर या मान जो किसी व्यक्ति वस्तु या कार्य को औरों से पहले दिया जाता है। २. किसी विशेष अवस्था में किसी मान्य व्यक्ति को दिया जानेवाला कोई विशिष्ट अधिकार। विशेषाधिकार। (प्रेरोगेटिव) |
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आदि-रस :
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पुं० [सं० कर्म० स०] साहित्य में श्रंगार रस। |
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आदि-रूप :
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पुं० [सं० ब० स०] ईश्वर। परमात्मा। |
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आदिल :
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वि० [अ०] सदा अदल (न्याय) करनेवाला। न्यायशील। |
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आदिलशाही :
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पुं० [आदिलशाह(एक बादशाह का नाम)] पुरानी चाल का एक प्रकार का कागज जो दक्षिण भारत में बनता था। |
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आदि-वासी (सिन्) :
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पुं० [सं० कर्म० स०] १. किसी देश या प्रांत के वे निवासी जो बहुत पहले से वहाँ रहते आयें हों और जिनके बाद और लोग भी वहाँ आकर बसे हों। आदिम निवासी। २. आधुनिक भारत में, उड़ीसा, बिहार, मध्यप्रदेश आदि में रहनेवाली ओराँव खरिया पहाड़िया, मुंडा संथाल आदि पुरानी जन-जातियाँ। |
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आदि-विपुला :
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पुं० [सं० त०] आर्या छंद का एक रूप या भेद। |
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आदि-विपुला-जघन-चपला :
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पुं० [जघन-चपला, तृ० त० आदि विपुला, जघन-चपला, द्वं० स०] आर्या छंद का एक भेद जिसके पहले चरण के तीन गणों में पाद अपूर्ण होता और दूसरे दल में दूसरा और चौथा गण जगण होता हैं। |
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आदि-शक्ति :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] दुर्गा। महामाया। |
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आदिश्यमान :
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वि० [सं० आ√दिश् (बताना)+यक्+शानच्] जो आदेश के रूप में हुआ हो। आदिष्ट। |
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आदिष्ट :
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वि० [सं० आ√दिश्+क्त] १. (व्यक्ति) जिसे कोई आदेश दिया या मिला हो। २. (विषय) जिसके संबंध में कोई आदेश दिया गया हो या मिला हो। |
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