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आडँग  : पुं० [सं० आगम ?] लक्षण। चिन्ह। उदाहरण—जो गिणि आवी आडँग जाँणे।—पृथीराज।
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आडंबर  : पुं० [सं० आ√डम्ब् (फेंकना)+अरन्] [वि० आडंबरी] १. एक प्रकार का ढोल या नगाड़ा। २. ढोल या नगाड़े से होनेवाला शब्द। ३. हाथी की चिघाड़। ४. शरीर में की जानेवाली मालिश। ५. खेमा। तंबू। ६. उच्च स्वर या घोर नाद। ७. बहुत अधिक या अनावश्यक रूप से बोलना अथवा निरर्थक बड़े-बड़े शब्दों का प्रयोग करना। ८. अपना वास्तविक रूप छिपाकर लोगों के लिए बनाया हुआ बाहरी कृत्रिम भव्य रूप। दिखावटी ठाट-बाठ। (आस्टेन्टेशन)
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आडंबरी (रिन्)  : वि० [सं० आडम्बर+इनि] १. जिसमें आडंबर हो। आडंबर से युक्त। २. आडंबर करने या रचनेवाला।
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आड़  : स्त्री० [सं० आटि, आति, सि० आटी, मरा० आडष्ठी आड़ी] १. वह चीज जिसके पीछे छिपा जाए। ओट। परदा। २. रक्षा का स्थान। मुहावरा—आड़ देना=आश्रय या शरण देना। आड़ लेना-किसी की शरण में जाना। ३. टेक। थूनी। ४. बाधा। रोक। ५. वह बिंदी जो स्त्रियाँ माथे पर लगाती है। उदाहरण—केसरि आड़ ललाटनि लसै।—नंददास। मुहावरा—आड़ चितरना=माथे और मुख पर कई प्रकार की बिदियाँ लगाकर बेल-बूटे आदि बनाना। ६. माथे पर पहनने का एक प्रकार का गहना। टीका। ७. एक प्रकार का बड़ा कलछा। स्त्री० [सं० अल=डंक] बर्रे, बिच्छू, मधु मक्खी आदि का डंक।
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आड़गीर  : पुं० [हिं० आड़+फा० गीर] १. आड़ करने के लिए लगाया जानेवाला परदा या खड़ी की जानेवाली दीवार। २. खेत की किनारे की घास।
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आड़न  : स्त्री० [हिं० आड़ना-रोकना] १. आड़। ओट। २. ढाल, जो तलवार का वार रोकती हो। (डि०)
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आड़ना  : स० [सं० अल्-वारण करना] १. बीच में आड़ या रोक खड़ी करना। २. बीच में आकर रुकावट डालना या बाधक होना। रोकना। ३. कोई चीज गिरवी (बंधक या रेहन) रखना। ४. मना करना। ५. बाँधना। स० [हिं० आड़] स्त्रियों की सोभा के लिए अपने मुख पर विशेष ढंग से बिदियाँ लगाना। आड़ चितरना।
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आड़बंद  : पुं० [हिं० आड़=फा० बंद] फकीरों, पहलवानों आदि के पहनने का एक प्रकार का लँगोट।
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आड़ा  : वि० [सं० अल्-रोकना या डिं०आड़] १. आँखों के समानांतर दाहिने से बाएँ अथवा बाएँ से दाहिने गया हुआ अथवा इस बल में रखा हुआ। क्षैतिज। (हाँरिजेन्टल) २. जो नीचेवाले कोने के सामने के ऊपरवाले कोने की तरफ उठता हुआ गया हो। तिरछा। तिर्यक। जैसे—कपड़े की आड़ी काट। मुहावरा—आड़ा या आड़े आना या होना=सामने आकर बाधा या रुकावट खड़ी करना। उदाहरण— मर्यादा आड़ी भई, आगे दियो न पाँव।—लक्ष्मण सिंह। आड़े तिरछे होना=नाराज होकर झगड़ा बढ़ानेवाली बाते करना। ३. उग्र या कठोर। विकट। जैसे—आड़ा समय। उदाहरण—पाँव न चालै पंथ दुहेलो आड़ा औघट घाट।—मीराँ। मुहावरा—(किसी के) आड़े आना=संकट में पड़े हुए व्यक्ति के पास जाकर उसके कष्ट निवारण में सहायक होना। जैसे—यों मित्र तो सभी थे पर उस विपत्ति के समय आप ही हमारे आड़े आये। (किसी को) आड़े हाथों लेना=खरी-खोटी सुनाकर निरुतर और लज्जित करना। ४. जिसका क्रम या गति बिलकुल सीधी न हो, बल्कि बीच में नियत से कुछ इधर-उधर हो जाता हो। जैसे—आड़ा खेमटा, आड़ा चौताल। ५. जो कहीं से बीच में आ पड़ा हो। उदाहरण—त्रिणि दीह लगन वेला आड़ा तै।—पृथीराज। पुं० [सं० आलि-देखा] १. एक प्रकार का कपड़ा जिसपर आड़ी तिरछी धारियाँ होती हैं। २. जुलाहों का लकड़ी का वह ढ़ाँचा जिसपर सूत फैलाये जाते है। ३. जहाज या नाव का लट्ठा या शहतीर।
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आड़ा-खेमटा  : पुं० [हिं० आड़ा+खेमटा] संगीत में तेरह मात्राओं का एक ताल।
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आड़ा-चौताला  : पुं० [हिं० आड़ा+चौताल] संगीत में सात मात्राओं का एक ताल।
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आड़ा पंच ताल  : पुं० [हिं० आड़ा+पंच+ताल] संगीत में ५ आघातों और ९ मात्राओं का एक ताल।
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आड़ा-लोट  : वि० [हिं० आडा+लोटना] डगमगा कर एक ओर गिरता हुआ। मुहावरा—आडा लोट मारना=जहाज का लहरों में पड़कर उलटने लगना।
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आड़ी  : स्त्री० [हिं० आड़] १. खेल में वक्ता के पक्ष का खेलाड़ी या साथी। २. छुट्टी या विश्राम का दिन। (चमार) अव्य० ओर। तरफ।
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आड़ू  : पुं० [संभवतः किसी ईरानी शब्द का अप०] १. एक प्रकार का वृक्ष जिसमें छोटे खट-मीठे फल लगते हैं। २. उक्त वृक्ष का फल। शफ्तालू।
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