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आकाश  : पुं० [सं० आ√काश् (चमकना)+घञ्] १. शब्द, गुण से युक्त वह शून्य अनंत अवकाश जिसमें विश्व के सभी पदार्थ (सूर्य, चंद्र, ग्रह, उपग्रह आदि) स्थित है और जो सब पदार्थों में व्याप्त है। २. खुले स्थान में ऊपर की ओर दिखाई देनेवाला नीला अपार स्थान। अंतरिक्ष। आसमान। मुहावरा—आकाश खुलना=आंकाश से बादलों का हटना। आकाछूना या चूमना— (क) बहुत ऊँचा या लंबा होना। (ख) बहुत लंबीश चौड़ी बाते करना। आकाश पाताल एक करना—पूरी शक्ति से कोई काम करना। कोई बात उठा न रखना। आकाश बाँधना—असंभव तथा अनोहनी बातें कहना। आकाश से बातें करना—बहुत ऊंचा होना। जैसे—उनका महल आकाश से बातें करता था। पद—आकाश कुसुम=(क) ऐसी बात या वस्तु जिसका कुछ भी अस्तित्व न हो। (ख) ऐसी वस्तु जिसकी प्राप्ति असंभव हो। आकाश पाताल का अंतर—बहुत बड़ा अंतर। आकाश पुष्प=आकाश कुसुम। ३. एक लचीला पारदर्शी तत्त्व जो उक्त खाली स्थान में व्याप्त माना जाता है और जिसमें से होकर सूर्य की किरणों, विद्युत तरंगों आदि का संचार होता है। व्योम। (ईथर) ४. ऐसा शून्य स्थान जिसमें वायु के अतिरिक्त और कुछ न हो। ५. छिद्र। ६. ब्रह्म। ७. अभ्रक। ८. रहस्य संप्रदाय में (क) अंतःकरण (ख) आत्मा (ग) परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग।
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आकाश-कक्षा  : स्त्री० [ष० त०] आकाश का उतना क्षेत्र, भाग या स्थान जहाँ तक सूर्य के प्रकाश की व्याप्ति होती है।
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आकाश-गंगा  : स्त्री० [मध्य० स०] १. ब्रह्मांड में फैले हुए बहुत से छायापथों में से वह जो हमें रात के समय आकाश में उत्तर-दक्षिण फैला हुआ चमकीली चौड़ी पट्टी या सड़क के रूप में दिखाई देता है। हाथी की डहर। (मिल्कीवे) २. पुराणों के अनुसार स्वर्ग की नदी। मंदाकिनी।
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आकाशचारी (रिन्)  : वि० [सं० आकाश√चर् (गति)+णिनि] [स्त्री० आकाशचारिणी] आकाश में गमन करने या विचरनेवाला। आकाशगामी। पुं० १. सूर्य, चंद्र, ग्रह नक्षत्र आदि जो आकाश में चक्कर लगाते रहते है। २. वायु। ३. पक्षी। ४. देवता। ५. भूत-प्रेत, राक्षस आदि।
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आकाश-चोटी  : स्त्री० [सं० आकाश+हिं० चोटी]=शीर्षबिन्दु।
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आकाश-दीआ  : पुं०=आकाश दीप।
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आकाश-दीप  : पुं० [मध्य० स०] १. बहुत अधिक ऊँचाई पर जलनेवाला दीआ। २. कार्तिक मास में विष्णु और देवताओं के उद्देश्य से जलाया जानेवाला वह दीआ, जो ऊँचे बाँस के ऊपरी सिरे पर बँधा रहता है।
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आकाश-धुरी  : स्त्री० [सं० आकाश-धुरी] आकाश ध्रुव।
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आकाश-ध्रुव  : पुं० [मध्य० स०] ज्योतिष में खगोल का ध्रुव।
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आकाश-नदी  : स्त्री० [मध्य० स०]=आकाश गंगा।
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आकाश-नीम  : स्त्री० [सं० आकाश+हिं० नीम] नीम के पेड़ पर होने वाली एक प्राकर का वनस्पति। नीम का बाँदा।
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आकाश-फल  : पुं० [ष० त०] संतान। संतति।
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आकाश-बेल  : स्त्री० [सं० आकाश+हिं० बेल] दे० ‘अमर बेल’।
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आकाश-भाषित  : पुं० [स० त०] नाटक के अभिनय में, किसी पात्र का आकाश की ओर देखकर इस प्रकार कोई बात कहना कि मानों कि वह ऊपर के किसी प्रश्नकर्ता के प्रश्न का उत्तर दे रहा हो।
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आकाश-मंडल  : पुं० [सं० ष० त०] हठ-योग में सहस्रार चक्र का एक नाम।
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आकाश-मुखी  : वि० [सं० आकाश-मुख] जिसका मुँख आकाश की ओर हो। पुं० एक प्रकार के साधु जो आकाश की ओर मुँह करके तपस्या करते है।
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आकाश-मूली  : स्त्री० [सं० आकाश-मूल, ब० स० ङीष्]=जलकुंभी।
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आकाश-यान  : पुं० [मध्य० स०] वायुयान। (दे०)।
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आकाश-लोचन  : पुं० [स० त०]=वेधशाला। (दे०)।
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आकाश-वाणी  : स्त्री० [मध्य०स०] १. वह कथन या बात जो किसी देवता या ईश्वर की ओर से कही हुई तथा आकाश से सुनाई पड़नेवाली मानी जाती है। २. रेडियों-यंत्र की सहायता से विद्युत-तरंगों के द्वारा दूर-दूर तक प्रसारित की जानेवाली ध्वनियाँ (संगीत, समाचार वार्ताएँ आदि) ३. वह भवन या स्थान जहाँ से विद्युत तरंगों द्वारा संगीत, समाचार, वार्ताएँ आदि प्रसारित की जाती है। प्रसारण ग्रह। (ब्राडकास्टिंग हाउस) जैसे—आकाश-वाणी पटना या लखनऊ।
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आकाश-वृत्ति  : स्त्री० [मध्य० स०] ऐसी वृत्ति या जीविका जिसका कुछ भी निश्चय या ठिकाना न हो। अनिश्चित वृत्ति। जैसे—दान, भिक्षा आदि।
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आकाश-वृत्तिक  : पुं० [ब० स० कप्] वह जो केवल आकाश वृत्ति के सहारे जीवन बिताता हो।
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आकाश-स्फटिक  : पुं० [मध्य० स०] १. एक प्रकार का पत्थर जो आकाश में निर्मित माना जाता है। २. ओला।
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आकाशी  : स्त्री० [सं० आकाश+ई (प्रत्यय)] १. धूप आदि से बचने के लिए ताना जानेवाला चँदोआ। २. ताड़ी। वि०=आकाशीय।
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आकाशीय  : वि० [सं० आकाश+छ-ईय] १. आकाश में होनेवाला। आकाशी संबंधी। २. जो आकाश में स्थित हो। ३. दैवी।
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