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अभी  : अव्य० [हिं० अब+ही] एक काल वाचक अव्यय जिसका प्रयोग वर्तमान कालिक प्रसंगों के सिवा कभी-कभी भूत कालिक और भविष्य-त्कालिक प्रसंगों में भी नीचे लिखे अर्थों में होता है-१. ठीक इस या वर्त्तमान क्षण में। इसी समय। तुरंत। जैसे—(क) अभी चले जाओ। (ख) अभी पत्र लिखो। २. प्रस्तुत क्षणों या समय में। इस समय। इस वक्त। जैसे—(क) अभी १२ बजे हैं। (ख) अभी धैर्य से काम लो। ३. प्रस्तुत या वर्त्तमान दिनों में। जो समय बीत रहा है उसमें। आज-कल। इन दिनों। जैसे—(क) अभी वहीं पुराना नियम चल रहा है। (ख) अभी गरमी के दिन है। ४. किसी बीते हुए समय में या उसके किसी उदिष्ट अथवा कल्पित अंश में। इस समय। जैसे—अभी वह सोकर ही उठा था कि उसके कुछ मित्र आ पहुँचे। ५. बीते हुए काल, मान या समय के संबंध में सूचित करने के लिए, अधिक नहीं। जैसे—(क) अभी वह चार ही वर्ष का था कि उसके पिता का देहान्त हो गया। (ख) यह तो अभी कल (अर्थात् बहुत थोड़े दिनों) की बात है। ६. प्रस्तुत या वर्त्तमान समय से आरम्भ करते हुए। इस समय से लेकर, भविष्य में। जैसे—(क) अभी इस काम में दो महीने और लगेंगे। (ख) अभी भोजन में आध घंटे की देर है। ७. किसी भावी घटना या बात के संबंध में केवल जोर देने के लिए। जैसे—(क) अभी परसों वे फिर आने को हैं। (ख) ग्रहण अभी माघ में लगेगा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अभीक  : वि० [सं० अभि+कन्,दीर्घ] १. इच्छुक या उत्सुक। २. कामातुर या कामुक। ३. निर्भय। निर्भीक। ४. भयानक। पुं० [अभि+कन्] १. मालिक। स्वामी। २. प्रेमी। ३. कवि।
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अभीत  : वि० [सं० न० त०] १. जो भीत या डरा हुआ न हो। २. निडर। निर्भय।
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अभीति  : वि० [सं० न० ब०] निर्भीक। स्त्री० [सं० न० त०] डर, भय या भीति न होने की अवस्था या भाव। निर्भीकता।
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अभीप्सक  : वि० [सं० अभि√आप्+सन्+ण्वुल्-अक] अभीप्सा करनेवाला।
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अभीप्सा  : स्त्री० [सं० अभि√आप्(प्राप्ति)+सन्+अ-टाप्] कुछ प्राप्त करने, किसी अवस्था में पहुँचने अथवा किसी से संपर्क स्थापित करने की उत्कृष्ट तथा प्रबल इच्छा। (एमबीशन)
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अभीप्सित  : भू० कृ० [सं० अभि√आप्+सन्+क्त] जिसकी अभीप्सा की गई हो। चाहा हुआ। पुं० =अभीप्सा।
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अभीप्सी (प्सिन्)  : वि० [सं० अभीप्सा+इनि] अभीप्सा (अभिलाषा) या इच्छा करनेवाला। चाहनेवाला।
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अभीप्सु  : वि० [सं० अभि√आप्+सन्+उ] =अभीप्सी।
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अभीर  : पुं० [सं० अभि√ईर्(प्रेरणा)+अच्] १. अहीर। ग्वाला। २. एक प्रकार का छंद जिसमें चार चरण और प्रत्येक चरण में ११ मात्राएं होती हैं और अंत में जगण(।ऽ।) होता है।
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अभीरी  : स्त्री० [सं० अमीर+ङीष्] अहीरों की बोली।
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अभीरु  : वि० [सं० न० त०] १. जो भीरु या डरपोक न हो। २. निर्भय। निर्भीक। पुं० १. शिव। २. भैरव। ३. युद्धभूमि।
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अभील  : पुं० [सं० अभि√ईर् (गति)+अच्,र,को,ल]१. कठिनता।२. कष्ट। संकट। ३. भयावना दृश्य।
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अभीष्ट  : वि० [सं० अभि√इष्(चाहना)+क्त] १. जो विशेष रूप से इष्ट हो। २. जो इष्ट होने के योग्य हो। जिसकी इच्छा या कामना की जाए। प्रिय या रुचिकर। जैसे—इस समय उनका यहाँ आना किसी को अभीष्ट नहीं है। पुं० १. वह (कार्य या पदार्थ) जो चाहा गया हो। २. एक अलंकार जिसमें अपने इष्ट की सिद्धि दूसरे के कार्य द्वारा होने का उल्लेख होता है।
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अभीष्ट-सिद्धि  : स्त्री० [ष० त०] इष्ट की प्राप्ति होना या मन-मानी बात पूरी होना।
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अभीष्टा  : स्त्री० [सं० अभीष्ट+टाप्] १. प्रेमिका। २. गृह-स्वामिनी। ३. तांबूल। पान।
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अभीष्टि  : स्त्री० [सं० अभि√इष्+क्तिन्] अभीष्ट पदार्थ, बात या विचार।
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