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अभि  : उप० [सं०√भा(दीप्ति)+कि, न० त०] एक उपसर्ग जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर निम्नलिखित अर्थ सूचित करता है।— (क) आगे या सामने की ओर, जैसे—अभिमुख। (ख) मात्रा या मान की अधिकता, जैसे—अभिकंपन, अभिसिंचन, अभ्युदय। (ग) अच्छी तरह से। भलीभाँति। जैसे—अभिव्यंजन, अभ्युदय। (घ) किसी प्रकार की विशेषता या श्रेष्ठता का सूचक, जैसे—अभिनव (बिलकुल नया), अभिभाषण (विवेचनापूर्ण भाषण), अभिपत्र (विद्धत्तापूर्ण लेख)।
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अभिअंतर  : क्रि० वि० पुं०=अभ्यंतर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिउ  : वि-अभया। पुं०=अभय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिक  : वि० [सं० अभि+कन्] लंपट।
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अभिकथन  : पुं० [सं० अभि√कथ्(कहना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिकथित] किसी पक्ष या व्यक्ति द्वारा किसी पर लगाया हुआ ऐसा आरोप या अभियोग जो अभी तक प्रमाणित न किया गया हो। (एलेगेशन)
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अभिकरण  : पुं० [सं० अभि√कृ (करना)+ल्युट्-अन] किसी बड़ी संस्था की ओर से किसी नियत क्षेत्र में काम करनेवाली कोई अधीनस्थ छोटी संस्था। (एजेंसी)
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अभिकर्त्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० अभि√कृ+तृच्] १. वह जो किसी व्यक्ति या संस्था की ओर से उसके प्रतिनिधि के रूप में कुछ काम करने के लिए नियत हो। (एजेन्ट) २. वह जिसे किसी की ओर से संपत्ति आदि की व्यवस्था और विविध कार्य करने का अधिकार मिला हो। मुख्तार।
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अभिकर्त्ता-पत्र  : पुं० [सं० अभिकर्तृ-पत्र] वह पत्र जिसेक अनुसार कोई किसी का अभिकर्त्ता नियत हुआ हो। मुख्तारनामा।
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अभिकर्तृत्व  : पुं० [सं० अभिकर्तृ+त्व] १. अभिकर्त्ता होने की अवस्था या भाव। २. दे० ‘अभिकरण’।
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अभिकलन  : पुं० [सं० अभि√कल्(गिनना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिकलित] परिकलन का वह गंभीर प्रकार या रूप जिसमें अनुभवों, बाहरी घटनाओं, निश्चित सिद्धान्तों आदि से भी सहायता की जाती है। (कम्प्यूटेशन) जैसे—ज्योतिष में, आँधियों, भूकम्पों आदि की भविष्यद् वाणी अभिकलन के आधार पर ही होती है।
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अभिकल्प  : पुं० [सं० अभि√कृप (सामर्थ्य)+घञ्, गुण, र काल, आदेश] [भाव० अभिकल्पन भू० कृ० अभिकल्पित] किसी पदार्थ विशेषतः यंत्र आदि को जाँचकर ठीक करने या कल-पुरजों को अलग-अलग करना और तब उन्हें यथास्थान बैठाना। (ओवरहॉलिंग)
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अभिकल्पन  : पुं० [सं० अभि√कृप+ल्युट्-अन] अभिकल्प करने की क्रिया या भाव। (ओवरहॉलिंग)
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अभिकल्पना  : स्त्री० [सं० अभि√कृप+णिच्+युच्-अन] १. ऐसी कल्पना या कल्पित बात जो किसी तर्क आदि का आधार मान ली गई हो। (एजेम्पशन) २.=अभिकल्पन।
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अभिकाँक्षा  : स्त्री० [सं० अभि√कांक्ष (चाहना)+अ-टाप्] अभिलाषा। इच्छा।
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अभिकाम  : वि० [सं० अभि√कम्(चाहना)+णिच्+अच्] १. चाहनेवाला। इच्छुक। २. स्नेही। ३. कामुक। पुं० [अभि√कम्(विक्षेप)+घञ्] १. इच्छा। २. कामना। ३. अनुराग। प्रेम।
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अभिक्रम  : पुं० [सं० अभि√क्रम्+ल्युट्-अन] आगे की ओर बढ़ना।
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अभिक्रमण  : पुं० [सं० अभि√कम्+ल्युट्-अन] १. आगे की ओर बढ़ने की क्रिया या भाव। २. आक्रमण। धावा।
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अभिक्रांति  : स्त्री० [सं० अभि√क्रम+क्तिन्] किसी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने की क्रिया या भाव। विस्थापन। (डिस्प्लेस्मेन्ट)
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अभिकोश  : पुं० [सं० अभि√कुश्(कोसना)+घञ्] १. निंदा। २. अपशब्द।
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अभिख्या  : स्त्री० [सं० अभि√ख्या (कहना)+अङ्-टाप्] १. दृश्य। २. शोभा। ३. कीर्ति। यश। ४. प्रसिद्धि। ५. आह्वान। संबोधन। ६. प्रज्ञा।
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अभिख्यात  : वि० [सं० अभि√ख्या+क्त] १. प्रसिद्ध। मशहूर। २. यशस्वी।
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अभिख्यान  : पुं० [सं० अभि√ख्या+ल्युट्-अन] १. नाम। २. प्रसिद्धि। ३. यश।
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अभिगम  : पुं० [सं० अभि√गम्(जाना)+घञ्] अभिगमन।
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अभिगमन  : पुं० [सं० अभि√गम् (जाना)+ल्युट्-अन] १. किसी के पास जाना। २. संभोग। सहवास। ३. उपासना का वह प्रकार जिसमें भक्त देव-मंदिर में पहुँचकर उसे स्वच्छ करता और सजाता है।
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अभिगामी (मिन्)  : वि० [सं० अभि√गम्+णिनि] अभिगमन करनेवाला।
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अभिगुप्ति  : स्त्री० [सं० अभि√गुप्(रक्षा)+क्तिन्] छिपा या बचाकर रखने की क्रिया या भाव।
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अभिगृहीत  : भू० कृ० [सं० अभि√ग्रह(ग्रहण करना)+क्त] जिसका अभिग्रहण हुआ हो। चुन या छाँट कर अथवा समझकर अपनाया या ग्रहण किया हुआ। आक्रांत।
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अभिग्रह  : पुं० =अभिग्रहण।
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अभिग्रहण  : पुं० [सं० अभि√गृह+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिगृहीत] १. चुन या छाँटकर लेना। पसंद करके लेना। २. दूसरों की कोई चीज या बात अच्छी समझकर अपनाना। (एडाप्शन) ३. बलपूर्वक किसी की कोई वस्तु उठा लेना। ४. आक्रमण।
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अभिघट  : पुं० [सं० अत्या० स०] घड़े के आकार का एक प्राचीन बाजा।
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अभिघात  : पुं० [सं० अभि√हन् (हिंसा)+घञ्] [वि० अभिघातक, कर्त्ता, अभिघाती] १. चोट पहुँचाने, प्रहार करने या मारने की क्रिया या भाव। २. आघात। ३. दो वस्तुओं में होनेवाली टक्कर या रगड़। ४. विनाश। ५. पुरुष के बाएँ अंग में या स्त्री के दाहिने अंग में होनेवाला मसा जो घातक माना जाता है।
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अभिघाती (तिर्न्)  : वि० [सं० अभि√हन्+णिनि] १. अभिघात करने अथवा चोट पहुँचानेवाला। पुं०=शत्रु।
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अभिघार  : पुं० [सं० अभि√कचर्+घञ्] १. सींचना। छिड़कना। २. घी की आहुति। ३. छौकना। बघार। ४. घी।
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अभिचर  : पुं० [सं० अभि√चर् (गति)+ट] दास। नौकर।
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अभिचार  : पुं० [सं० अभि√चर्+घञ्] [कर्त्ता, अभिचारी] १. तंत्र-मंत्र द्वारा मारण, मोहन, उच्चाटन आदि द्वारा किये जानेवाले अनुचित कर्म। २. दे० पुरश्चरण।
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अभिचारक  : पुं० [सं० अभिचार+कन्] यंत्र-मंत्र द्वारा मारण-उच्चाटन आदि अभिचार करनेवाला।
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अभिचारी (रिन्)  : वि० [सं० अभि√चर्+णिनि] दे० ‘अभिचारक’।
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अभिजन  : पुं० [सं० अभि√जन् (उत्पत्ति)+घञ्, अवृद्धि] १. कुल। वंश। २. परिवार। ३. पूर्वजों के रहने का देश (निवास या अपने रहने के स्थान से भिन्न) ४. घर का मालिक। गृह-स्वामी। ५. उच्चकुल में उत्पन्न होने की अवस्था या भाव। ६. पूर्वज। ७. दे० ‘परिजन’।
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अभिजय  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] विजय। जीत।
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अभिजागर  : पुं० [सं० अभि+जागर] वह व्यक्ति जो परीक्षा में बैठे हुए विद्यार्थियों की चौकसी या देख-रेख करता हो। (इनविजीलेटर)
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अभिजात  : वि० [सं० ब० स०] १. अच्छे और उच्च कुल से उत्पन्न। कुलीन। २. बुद्धिमान्। समझदार। ३. पंडित। विद्वान। ४. पूज्य। मान्य। ५. मनोहर। सुंदर। ६. उपयुक्त। योग्य।
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अभिजात-तंत्र  : पुं० [सं० ष० त०] वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य करने का सारा प्रबंध थोड़े से उच्च कुल के तथा संपन्न लोगों के हाथ में रहता है। कुल-तंत्र। (एरिस्ट्रोक्रेसी)
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अभिजाति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] अच्छे या उच्च वंश में जन्म होना। कुलीनता।
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अभिजित  : वि० [सं० अभि√जि (जीतना)+क्त] [भाव अभिजिति] जिसे जीत लिया गया हो। विजित। पुं० १. दिन का आठवाँ (मध्याह्न में पड़नेवाला) मुहुर्त्त जो श्राद्ध आदि करने के लिए शुभ माना गया है। २. एक नक्षत्र जिसमें तीन तारे मिलकर सिघाड़े के आकार के होते हैं। ३. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अंतिम १५ दंड तथा श्रवण के प्रथम चार दंड। ४. एक प्रकार का सोमयज्ञ।
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अभिजिति  : स्त्री० [सं० अभि√जि+क्तिन्] [वि० अभिजित] युद्ध में शत्रु को जीतने की क्रिया या भाव। जीत। विजय। (कॉन्क्वेस्ट)
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अभिज्ञ  : वि० [सं० अभि√ज्ञा (जानना)+क] [भाव० अभिज्ञता] १. किसी बात या विषय का ज्ञान रखनेवाला। जानकार। ज्ञाता। २. कुशल। निपुण।
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अभिज्ञा  : स्त्री० [सं० अभि√ज्ञा+अङ्-टाप्] १. ज्ञान प्राप्त करना। परिचित होना। जानना। २. पहले देखी हुई चीज़ फिर से देखकर पहचानना। ३. पुरानी बात फिर से याद या स्मरण करना। ४. बौद्धों के अनुसार गौतम बुद्ध की वह अलौकिक शक्ति जिससे वे मनमाना रूप या शरीर धारण कर सकते थे तथा भूत, भविष्य और वर्तमान की सब बातें जान लेते थे और पास तथा दूर के सब लोगों के मन की बातें समझ लेते थे।
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अभिज्ञात  : भू० कृ० [सं० अभि√ज्ञा+क्त] १. जिसका अभिज्ञान हुआ हो। २. जाना-पहचाना या समझा-बूझा हुआ। शाल्मली द्वीप के सात खंडों में से एक।
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अभिज्ञातार्थ  : पुं० [सं० अभिज्ञात+अर्थ,ब० स०] वादी के अप्रसिद्ध या श्लिष्ट अर्थोंवाले शब्दों के प्रयोग करने पर प्रतिवादी का कुछ न समझना और फल-स्वरूप विवाद रूक जाना। जो न्याय-शास्त्र में एक निग्रह स्थान माना गया है।
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अभिज्ञान  : पुं० [सं० अभि√ज्ञा+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिज्ञान] १. स्मृति। याद। २. निशानी। पहचान। ३. वह वस्तु या बात जिससे कोई पुरानी बात फिर से याद आ जाए। अनुस्मरण। ४. पहचान कर बतलाना कि यह वही व्यक्ति है। (आइडेन्टिफिकेशन) ५. लक्षण।
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अभिज्ञापक  : वि० [सं० अभि√ज्ञा+णिच्+ण्युल्-अक, पुक्] १. अभिज्ञान या पहचान करनेवाला। २. अभिज्ञापन करनेवाला। (एनाउन्सर)
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अभिज्ञापन  : पुं० [सं० अभि√ज्ञा+णिच्+ल्युट्-अन, पुक्] सार्वजनिक रूप से प्रथम बार लोगों को ऐसी बात की जानकारी कराना जिससे उनके हानि-लाभ का संबंध हो, अथवा जिसकी वे उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हों। जैसे—किसी आविष्कार का अभिज्ञापन, प्रतियोगिता में विजयी का अभिज्ञापन अथवा निर्वाचित पदाधिकारी का अभिज्ञापन। (एनाउन्समेंट)
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अभित  : अव्य० [सं० अभि+तस्] १. चारों ओर से। सर्वतः। २. पूरी तरह से। पूर्णतः।
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अभिताप  : पुं० [सं० अभि√तप् (जलना)+घञ्] १. मानसिक या शारीरिक जलन, दुःख या ताप। २. व्याकुलता। ३. क्षोभ।
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अभित्यक्त  : भू० कृ० [सं० प्रा० स०] जिसका अभित्याग हुआ हो।
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अभित्याग  : पुं० [सं० प्रा० स०] [भू० कृ० अभित्यक्त] १. कोई चीज या बात छोड़ने की क्रिया या भाव। २. अपराध, अभियोग, दंड आदि से मुक्त करने की क्रिया या भाव। बरी होना। (रिलीज)
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अभिद  : वि० =अभेद्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिदत्त  : वि० [सं० प्रा० स०]-प्रदत्त।
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अभिदर्शन  : पुं० [सं० अभि√दृश् (देखना)+ल्युट्-अन] १. सामने आकर दिखाई देना। २. सामने पहुँचकर देखना।
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अभिदान  : पुं० [सं० प्रा० स०] [वि० अभिदत्त] १. देने की क्रिया या भाव। दान। २. राज्य या शासन की ओर से उद्योग-धंधों की अभिवृद्धि के लिए उनके कर्त्ताओं या संचालकों को दी जानेवाली आर्थिक सहायता। (बाउन्टी)
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अभिदिशा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] वह दिशा जिधर (क) किसी कार्य की गति हो अथवा (ख) किसी व्यक्ति का मन या विचार अग्रसर या प्रवृत्त हो। (डाइरेक्शन)
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अभिदिष्ट  : भू० कृ० [सं० अभि√दिश् (बताना)+क्त] जिसका अभिदेश हुआ हो। अभिदेश के रूप में आया हुआ।
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अभिदेश  : पुं० [सं० अभि√दिश्+घञ्] [कर्त्ता अभिदेशक, वि० अभिदेशिक, भू० कृ० अभिदिष्ट] १. किसी बात, वस्तु या व्यक्ति की ओर किसी उद्देश्य से देखना या संकेत करना। २. किसी उल्लिखित घटना आदि की ऐसी चर्चा जो किसी मत के खंडन या पुष्टि के लिए प्रमाण, संकेत साक्षी आदि के रूप में हो। ३. किसी विवादास्पद विषय के संबंध में किसी का मत जानने या उसका स्पष्टीकरण करने के लिए अथवा उस संबंध में आधिकारिक आदेश या निर्णय प्राप्त करने के लिए उसे उपयुक्त अधिकारी के पास भेजना। (रेफरेन्स, अंतिम दोनों अर्थों के लिए) ४. दे० ‘अभिदेश-ग्रंथ’।
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अभिदेशक  : वि० [सं० अभि√दिश् (बताना)+ण्वुल्-अक] अभिदेश करनेवाला।
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अभिदेश-ग्रंथ  : पुं० [सं० ष० त०] वह ग्रंथ जिसका उपयोग समय-समय पर किसी विशिष्ट विषय का ठीक और पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है। संदर्भ-ग्रंथ। (रेफरेन्स-बुक)
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अभिदेशना  : स्त्री० [सं० अभि√दिश्+णिच्+युच्-टाप्] १. विधान-मंडल द्वारा पारित अथवा प्रस्तावित कोई विधेयक या प्रस्ताव मतदाताओं की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति जानने के लिए उन्हें अभिदिष्ट करना। २. उक्त रूप में कोई बात अभिदिष्ट करने का कार्य या सिद्धांत। (रेफरेन्डम)
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अभिदेशिकी  : पुं० [सं० अभिदेश] वह आधिकारिक व्यक्ति जिसे कोई विषय या झगड़े की कोई बात उसके निर्णय के लिए अभिदिष्ट की जाए। (रेफरी)
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अभिद्रोह  : पुं० [सं० अभि√द्रुह (मारने की इच्छा)+घञ्] १. किसी के अनिष्ट अपकार आदि की वह प्रबल भावना जो द्वेष, वैर आदि के कारण उत्पन्न होती है और उसे हानि पहुँचाने का प्रयत्न कराती है। २. निंदा। ३. हानि। ४. निष्ठुरता।
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अभिधमन  : पुं० [सं० अभि√ध्मा (धौंकना)+ल्युट्-अन] किसी प्रक्रिया से बहुत जोर की या तेज हवा पहुँचाना। धौंकना। (ब्लैस्टिंग)
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अभिधर्म  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. श्रेष्ट धर्म। २. ध्रुव सत्य का निरूपण करनेवाला धर्म या मत। (बौद्ध)
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अभिधा  : स्त्री० [सं० अभि√धा (धारणा)+अङ्-टाप्] [वि० अभिहित] १. कहने, पुकारने, उल्लेख आदि करने की क्रिया या भाव। २. नाम। संज्ञा। ३. शब्द। ४. साहित्य में, शब्दों की वह शक्ति जिससे उनके वाच्यार्थ अर्थात् नियत, प्रचलित और मुख्य अर्थ का ज्ञान या बोध होता है। (कोई शब्द सुनते ही उसके अर्थ का जो बोध होता है, वह इसी शक्ति के द्वारा होता है)।
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अभिधान  : पुं० [सं० अभि√धा+ल्युट्-अन] १. नाम। २. उपाधि। ३. उक्ति। कथन। ४. किसी पद का विशेष संज्ञा या नाम। (डेजिगनेशन) जैसे—मंत्री, सचिव, निरीक्षक, आचार्य आदि। ५. दे० ‘नाम कोश’।
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अभिधानमाला  : स्त्री० [ष० त०] =नाम कोश।
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अभिधायक  : वि० [सं० अभि√धा+ण्वुल्-अक, युक्] १. अभिधा निश्चित करने या नाम रखनेवाला। २. कहने, बताने या समझानेवाला। ३. परिचायक। सूचक।
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अभिधावक  : वि० [सं० अभि-धाव् (गति)+ण्वुल्-अक] धावा या आक्रमण करनेवाला। आक्रामक। (एग्रेसर)
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अभिधावन  : पुं० [सं० अभि√धाव्+ल्युट्-अन] १. आक्रमण या धावा करने के लिए आगे बढ़ना। चढ़ दौड़ना। २. जान-बूझकर कोई ऐसा काम करना जिससे किसी निर्दोष या अनाक्रमक को कोई कष्ट पहुँचे या उसकी कोई हानि हो। (एग्रेशन)
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अभिधेय  : वि० [सं० अभि√धा+यत्] १. जिसकी कोई अविधा या कुछ नाम हो। नामवाला। २. जो कहा या पुकारा जा सके। ३. जिसका बोध नाम लेने से ही हो जाए। ४. जिसका प्रतिपादन या विवेचन हो सके या होने को हो। पुं० अभिधा। नाम।
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अभिनंदन  : पुं० [सं० अभि√नन्द(प्रशंसा)+ल्युट्-अन] १. आनंद। २. संतोष। ३. प्रशंसा। ४. प्रोत्साहन। ५. निवेदन। प्रार्थना। ६. आम नामक वृक्ष या उसका फल। ७. जैनों के चौथे तीर्थकर का नाम। ८. आज-कल विशेष रूप से प्रचलित अर्थ में किसी को धन्य या पूज्य मानकर उसके प्रति शुभकामना या श्रद्धा प्रकट करना।
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अभिनंदन-ग्रंथ  : पुं० [ष० त०] वह ग्रंथ जो किसी पूज्य तथा मान्य व्यक्ति का सम्मान करने और उसकी सेवाओं की स्मृति स्थायी रूप से बनाये रखने के लिए उसके नाम पर प्रस्तुत करके सार्वजनिक रूप में, उसे भेंट किया जाता है। (कॉमेमोरेशन वाँल्यूम)
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अभिनंदन-पत्र  : पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसमें किसी धन्य, पूज्य या प्रतिष्ठित व्यक्ति की सेवाओं का प्रशंसापूर्वक तथा श्रद्धापूर्वक उल्लेख होता है और जो सार्वजनिक रूप से उसे भेंट किया जाता है। (एड्रेस)
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अभिनंदना  : अ० [हिं० अभिनंदन] अभिनंदन (आदर-सत्कार या सम्मान) करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिनंदनीय  : वि० [सं० अभि√नन्द्+अनीयर] १. अभिनंदन का अधिकारी या पात्र। २. प्रशंसनीय।
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अभिनंदित  : भू० कृ० [सं० अभि√नन्द्+क्त] [स्त्री० अभिनंदिता] जिसका अभिनंदन किया गया हो।
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अभिनंदी (दिन्)  : वि० [सं० अभि√नन्द्+णिनि] किसी का अभिनंदन अथवा प्रशंसा करनेवाला।
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अभिनय  : पुं० [सं० अभि√नी (ले जाना)+अच्] १. खेल, नाटक आदि में आंगिक चेष्टाएँ या हाव-भाव कलात्मक ढंग से प्रदर्शित करना। २. केवल दिखलाने के लिए अथवा किसी के अनुकरण पर की जाने वाली आंगिक चेष्टा। ३. नाटक।
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अभिनव  : वि० [सं० अभि√नु (स्तुति)+अप्] [भाव० अभिनवता] १. बिलकुल नया। नवीन। २. जो आधुनिक युग की विशेषताओं से युक्त हो। आधुनिक ढंग का। (न्यूफैशन्ड)
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अभिनिधन  : पुं० [सं० अत्या० स०] निधन या नाश के पास पहुँचना।
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अभिनियोग  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. साथ लगाना या सटाना। जोड़ना। २. परस्पर संबंध स्थापित करना। ३. दत्त-चित्त या तत्पर होना।
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अभिनिर्णय  : पुं० [सं० प्रा० स०] किसी विवादास्पद विषय में निर्णायक का किया हुआ निर्णय। (वर्डिक्ट) २. किसी के दोषी या निर्दोष होने के संबंध में अभिनिर्णायक (ज्यूरी) का दिया हुआ मत या निर्णय। (वर्डिक्ट आँफ ज्यूरी)
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अभिनिर्णायक  : पुं० [सं० प्रा० स०] वे लोग जो जज के साथ बैठकर विवादास्पद विषयों पर अपना निर्णय या मत देते हैं। (ज्यूरी)
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अभिनिर्देष  : पुं० [सं० अभि-निर्√दिश्(बताना)+घञ्] दे० ‘अभिदेश’।
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अभिनिर्याण  : पुं० [सं० अभि-निर्√या (जाना)+ल्युट्-अन] आक्रमणकारी का अभियान।
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अभिनिविष्ट  : भू० कृ० [सं० अभि-नि-विश् (प्रवेश)+क्त] [भाव० अभिनिविष्टता] जिसका अभिनिवेश हुआ हो।
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अभिनिवेश  : पुं० [सं० अभि-नि√विश्+घञ्] १. किसी में,धँसे, पैठे या लगे हुए होने की अवस्था या भाव। २. किसी कार्य या विषय में मन या विचारों की लीनता। मनोयोग। ३. किसी बात या विषय में होनेवाली गति या पैठ। ४. सब ओर से ध्यान हटाकर किसी एक विषय का होनेवाला चिंतन या मनन। ५. तत्परता। ६. दृढ़ संकल्प। ७. मृत्यु के भय से होनेवाला कष्ट या क्लेश, जो योग-शास्त्रों में पाँच क्लेशों में से एक माना गया है।
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अभिनिवेशित  : भू० कृ०=अभिनिविष्ट।
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अभिनिष्क्रमण  : पुं० [सं० अभि-निस्√क्रम् (पाद-गति)+ल्युट्-अन] १. घर से बाहर निकलने की क्रिया या भाव। २. संसार से विरक्त होने के उद्देश्य से घर-बार छोड़ कर निकल जाना।
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अभिनीत  : भू० कृ० [सं० अभि√नी (ले जाना)+क्त] १. निकट या समीप लाया हुआ। २. पूर्णता को पहुँचा या पहुँचाया हुआ। ३. सजाया हुआ। सज्जित। ४. उचित। वाजिब। ५. ज्ञाता। विज्ञ। ६. नाटक, जिसका अभिनय हुआ हो। खेला हुआ।
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अभिनेतव्य  : वि० [सं० अभि√नी+तव्यत्] जिसका अभिनय हो सके या होने को हो।
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अभिनेता (तृ)  : पुं० [सं० अभि√नी+तृच्] [स्त्री० अभिनेत्री] वह जो रंग-मंच पर अभिनय या नाटक करता हो। नट (ऐक्टर)
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अभिनेत्री  : स्त्री० [सं० अभिनेतृ+ङीष्] रंग-मंच पर अभिनय करने वाली स्त्री। नटी। (ऐक्ट्रेस)
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अभिनेय  : वि० [सं० अभि√नी+यत्] (नाटक) जिसका अभिनय होने को हो या हो सकता हो।
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अभिनै  : पुं० =अभिनय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिन्न  : वि० [सं० न० त०] [भाव० अभिन्नता] १. जो भिन्न न हो। एकमय। २. किसी से मिला, लगा या सटा हुआ। संबंद्ध। ३. जिससे कोई अंतर या भेद-भाव न रखा जाए। अंतरंग। घनिष्ठ। जैसे—अभिन्न हृदय मित्र।
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अभिन्नता  : स्त्री० [सं० अभिन्न+तल्-टाप्] १. अभिन्न होने की अवस्था या भाव। २. एकरूपता। ३. घनिष्ट संबंध।
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अभिन्न-पद  : पुं० [ब० स०] श्लेष अलंकार का एक भेद।
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अभिन्न-हृदय  : वि० [ब० स०] (ऐसे दो या कई व्यक्ति) जिनमें भावों विचारों आदि की पूर्ण एकता या समानता हो।
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अभिन्यस्त  : भू० कृ० [सं० अभि-नि√अस्(फेंकना)+क्त] १. अभिन्यास के रूप में रखा या लाया हुआ। २. किसी मद या विभाग में रखा या डाला हुआ। जमा किया हुआ। (डिपॉजिटेड)
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अभिन्यास  : पुं० [सं० अभि-नि√अस्+घञ्] [कर्त्ता अभिन्यासक, भू० कृ० अभिन्यस्त] १. किसी मद या विभाग में रखना। जमा करना। २. पूर्व योजना, परिकल्पना आदि के अनुसार किया जाने वाला निर्माण या रचना। (ले-आउट) ३. एक प्रकार का सान्निपातिक ज्वर, जिसमें नींद न आना, देह काँपना आदि क्रियाएँ दृष्टिगत होने लगती हैं।
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अभिपतन  : पुं० [सं० अभि√पत् (गिरना)+ल्युट्-अन] १. पूर्ण रूप से गिरना। पूरा पतन। २. प्रस्थान। ३. आक्रमण। चढ़ाई।
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अभिपत्ति  : स्त्री० [सं० अभि√पद् (गति)+क्तिन्] १. पास जाना या पहुँचना। २. किसी विषय में होनेवाली गति। ३. पहुँच। पैठ। ४. अंत। समाप्ति। ५. पूर्ति।
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अभिपत्र  : पुं० [सं० प्रा० स०] ऐसा लेख जिसमें किसी गूढ़ विषय की विशिष्ट जानकारी की बातें हों और जो मुख्यतः विद्वानों के सामने विचारार्थ उपस्थित किया या पढ़ा जाए। (पेपर)
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अभिपन्न  : वि० [सं० अभि√पद्+क्त] १. विपत्ति या संकट में पड़ा हुआ, अथवा ऐसी स्थिति में रक्षा और सहायता के लिए किसी के पास जानेवाला। २. भाग्यहीन। अभागा। ३. हारा हुआ। पराजित। ४. अपराधी। दोषी। ५. भागा हुआ। ६. मरा हुआ। मृत।
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अभिपद  : पुं० [सं० प्रा० स०] ऐसा निश्चय, मत, विचार या सिद्धांत जो किसी समष्टि का पूरा और स्वतंत्र अंग हो। (आर्टिकिल्)
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अभिपीड़न  : पुं० [सं० अभि√पीड् (कष्ट देना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिपीड़ित] बहुत अधिक कष्ट या दुःख देना। बहुत पीड़ित करना।
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अभिपुष्ट  : भू० कृ० [सं० प्रा० स०] १. जिसका अभिपोषण हो चुका हो। (रैटिफाइड) २. अच्छी तरह से पुष्ट या पका हुआ।
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अभिपुष्टि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. अभिपुष्टि होने की अवस्था या भाव। २. अभिपोषण।
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अभिपूर्ण  : वि० [सं० प्रा० स०] १. अच्छी तरह से भरा हुआ। २. संतुष्ट।
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अभिपूर्ति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] [भू० कृ० अभिपूर्ति] १. अभिपूर्ण करने की क्रिया या भाव। २. अपने ऊपर लिए हुए उत्तरदायित्व का निर्वाह या दिये हुए वचन का पालन करना। (इंप्लिमेन्टेशन)
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अभिपोषण  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. अच्छी तरह की जानेवाली पुष्टि। २. किसी की कही हुई बात या किये हुए कार्य, निर्णय आदि का आधिकारिक रूप से किया हुआ समर्थन अथवा स्वीकरण। अभिपुष्टि। (कनफर्मेशन) ३. राज्यकीय क्षेत्र में अपने प्रतिनिधि के निर्णय का उच्च अधिकारियों द्वारा ठीक मान लिया जाना। (रैटिफिकेशन)
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अभिपोषणीय  : वि० [सं० अभि√पुष् (पुष्टि)+अनीयर] जिसका अभिपोषण होना उचित हो अथवा होने को हो।
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अभिपोषित  : भू० कृ० [सं० अभि√पुष्(पुष्टि)+णिच्+क्त] जिसका अभिपोषण हुआ हो अथवा किया गया हो।
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अभिप्रमाणन  : पुं० [सं० अभि-प्रमाण प्रा० स०+क्विप्+ल्युट्-अन, भू० कृ० अभिप्रमाणित] किसी आधिकारिक व्यक्ति, या संस्था का साक्षी के रूप में होकर किसी बात के संबंध में यह कहना कि यह ठीक है। (एटेस्टेशन)
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अभिप्राणन  : पुं० [सं० अभि-प्र√अन्+ल्युट्-अन] साँस बाहर निकालने की क्रिया ।
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अभिप्राय  : पुं० [सं० अभि-प्र√इ(गति)+अच्] [वि० अभिप्रेत] १. किसी के पास जाना या पहुँचना। (मूल अर्थ) २. वह उद्देश्य या विचार जो हमें कोई काम करने में प्रवृत्त करता है। इरादा। (इन्टेन्ट) जैसे—किसी को धोखा देने के अभिप्राय से झूठ बोलना। ३. वह उद्देश्य या ध्येय जिसकी पूर्ति या सिद्धि के लिए प्रयत्नपूर्वक कोई काम लिया जाता है। नीयत। (पर्पज) ४. आशय। तात्पर्य। ५. चित्र-कला, मूर्ति-कला आदि में (क) वह काल्पनिक अथवा प्राकृतिक भाव जो उसमें मुख्य रूप से झलकता हो, अथवा (ख) वह आशय, भाव या विचार जो अलंकारों, परिरूपों आदि में अधिकतर या मुख्य रूप से सब जगह स्पष्ट दिखाई देता हो। (मोटिक) ६. रूप। ७. संबंध। ८. विष्णु।
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अभिप्रेत  : वि० [सं० अभि-प्र√इ+क्त] १. जो अभिप्राय का विषय बना हो। २. चाहा हुआ। इष्ट। (इन्टेन्डेड) ३. प्रिय या रुचिकर।
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अभिप्लव  : पुं० [सं० अभि√प्लु(गति)+अप्] १. उपद्रव। उत्पात। फसाद। २. नदियों आदि की बाढ़। ३. गवामयन यज्ञ का एक अंग जो छः दिनों में होता है। ४. प्राजापत्य। आदित्य।
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अभिभव  : पुं० [सं० अभि√भू(सत्ता)+अप] १. पराजय। हार। २. तिरस्कार। ३. अनहोनी या विलक्षण बात अथवा घटना। ४. किसी को बलपूर्वक दबाकर कहीं रोक रखना या किसी ओर ले जाना। (कॉन्स्ट्रेन्ट)
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अभिभावक  : वि० [सं० अभि√भू+णिच्+ण्वुल्-अक] १. अभिभूत, पराजितया वशीभूत करनेवाला। २. बहुत अधिक प्रबल या श्रेष्ठ। पुं० वह जो किसी अल्प वयस्क बालक अथवा अनाथ स्त्री और उसकी सब बातों की देख-रेख या रक्षा करता हो। (गार्जियन)
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अभिभावन  : पुं० [सं० अभि√भू+णिच्+ल्युट्-अन] १. अभिभव करने या होने की अवस्था या भाव।
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अभिभावित  : भू० कृ० [सं० अभि√भू+णिच्+क्त] १. जिसका अभिभव हुआ हो। पराजित। २. किसी के नीचे दबा हुआ। अधीन। ३. तिरस्कृत।
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अभिभावी (विन्)  : वि० [सं० अभि√भू+णिच्+णिनि] १. अभिभावन करने वाला। २. पूरी शक्ति से क्रियाशील होकर प्रभाव, फल आदि उत्पन्न करनेवाला। ३. बहुत बढ़कर। उत्कृष्ट।
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अभिभाषक  : पुं० [सं० अभि√भाष् (बोलना)+ण्वुल्-अक] १. किसी की तरफ से बोलनेवाला। २. शास्त्रार्थ करनेवाला। ३. वह जो किसी मुकदमें में किसी पक्ष की तरफ से न्यायालय में बहस तथा उसका समर्थन करे। (एडवोकेट)
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अभिभाषण  : पुं० [सं० अभि√भाष्+ल्युट्-अन] १. विचार, विद्वता तथा विवेचनापूर्ण भाषण० वक्तृता। (एड्रेस) २. न्यायालय में अभिभाषक या किसी विविध द्वारा दिया हुआ भाषण या वक्तव्य। (एड्रेस आँफ एडवोकेट)
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अभिभू  : वि० [अभि√भू+क्विप्] १. दूसरों से अधिक आगे बढ़ा हुआ। २. उत्कृष्ट। श्रेष्ठ।
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अभिभूति  : स्त्री० [सं० अभि√भू+क्तिन्] अभिभूत होने की अवस्था या भाव। अभिभव।
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अभिमंडन  : पुं० [सं० अभि√मण्ड् (भूषण)+ल्युट्-अन] १. भूषित करना। सजाना। २. पक्ष या मत का पोषण या समर्थन।
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अभिमंता (तृ)  : वि० [सं० अभि√मन् (मानना)+तृच्]-अभिमानी।
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अभिमंत्रण  : पुं० [सं० अभि√मन्त्र(गुप्त भाषण)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिमंत्रित] १. मंत्र पढ़कर पवित्र या शुद्ध करना। २. मंत्रों के द्वारा किसी को वशीभूत करना। जादू करना।
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अभिमंत्रित  : भू० कृ० [सं० अभि√मन्त्र+क्त] मंत्र द्वारा पवित्र या शुद्ध किया हुआ।
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अभिमंथ  : पुं० [सं० अभि√मन्थ्(विलोड़न)+अच्] आँख का एक रोग।
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अभिमत  : वि० [सं० अभि√मन्(जानना)+क्त] १. जो किसी के मत या राय के अनुकूल हो। सम्मत। उदाहरण—अभिमतदातार कौन, दुख दरिद्र दारै।—तुलसी। २. मन चाहा। वांछित। पुं० किसी प्रश्न या विषय के संबंध में अच्छी तरह सोच-समझकर स्थिर किया हुआ निजी या व्यक्तिगतमत। (ओपीनियन)
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अभिमति  : स्त्री० [सं० अभि√मन्+क्तिन्] १. दे० ‘अभिमान’ २. दे० ‘अभिमत’।
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अभिमन्यु  : पु० [सं० ] सुभद्रा के गर्भ से उत्पन्न, अर्जुन का एक पुत्र जिसने कौरवों का चक्र-व्यूह भेंदकर कर्ण, दुर्योधन और द्रोण से भीषण युद्ध किया था। यह अंत में इसी युद्ध में मारा गया था।
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अभिमर  : पुं० [सं० अभि√मृ (मरना)+अप्] १. युद्ध। लड़ाई। २. युद्ध क्षेत्र। ३. सेना में, अपने ही पक्ष द्वारा होनेवाला विश्वासघात। ४. डर। भय। ५. नाश। ६. वह जो अपने प्राणों की आशा छोड़ शेर या हाथी से लड़ने चले।
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अभिमर्दन  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. बुरी तरह से कुचलना, मसलना या रौंदना। २. चूर-चूर करना। ३. कष्ट देना। सताना। ४. रगड़। ५. संघर्ष। ६. युद्ध।
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अभिमर्श  : पुं० [सं० अभि√मृश् (स्पर्श)+घञ्]=अभिमर्षण।
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अभिमर्षक  : वि० [सं० अभि√मृश् (स्पर्श)+ण्वुल्-अक] अभिमर्षण करनेवाला।
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अभिमर्षण  : पुं० [सं० अभि√मृश्+ल्युट्-अन] १. स्पर्श करना। २. आक्रमण। ३. रगड़ना या संघर्ष करना। ४. संभोग। ५. पराजय। हार।
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अभिमाद  : पुं० [सं० अभि√मद् (हर्ष)+घञ्] १. मद। नशा। २. खुमार।
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अभिमान  : पुं० [सं० अभि√मन् (जानना, मानना)+घञ्] [वि० अभिमानी] १. अपनी प्रतिष्ठा या मर्यादा, सत्ता आदि की कल्पना या ज्ञान। २. अपनी प्रतिष्ठा, मान, योग्यता आदि के संबंध में अपने मन में होनेवाली अतिरिक्त और प्रायः अनुचित धारणा। अहंकार। घमंड। (प्राइड) विशेष—यद्यपि अभिमान का मूल अर्थ सदभाव से युक्त था। पर आजकल व्यवहार में यह प्रायः असद् भाव का ही सूचक माना जाता है।
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अभिमानी (निन्)  : वि० [सं० अभि√मन्+णिनि] [स्त्री० अभिमानिनी] जिसे अभिमान हो। अभिमान करनेवाला।
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अभिमुक्ति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] किसी कर्त्तव्य, कार्य-भार या पद से मुक्त होने अथवा बचे रहने की अवस्था या भाव। (इम्यूनिटी)
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अभिमुख  : अव्य-[सं० प्रा० स०] १. किसी की ओर मुँह किये या फेरे हुए। २. सम्मुख। सामने।
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अभिमृष्ट  : भू० कृ० [सं० अभि√मृश्+क्त] १. जो स्पर्श किया गया हो। २. हारा हुआ। पराभूत। ३. मिला हुआ। संसृष्ट। ४. आक्रांत।
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अभियंता (तृ)  : पुं० [सं० अभि√यम्(नियंत्रण करना)+तृच्] १. वह जो लोक वास्तु संबंधी चीजें परिरूपित और निर्मित करता हो। (इंजीनियर) २. उक्त प्रकार के कार्यों की किसी विशिष्ट शाखा का विशेषज्ञ। जैसे—विद्युत अभियंता।
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अभियंत्रण  : पुं० [सं० अभि√यन्त्र् (नियमन)+ल्युट्-अन] १. अभियंता या इंजीनियर का कार्य। २. यंत्र आदि बनाने और सुधारने की कला या विद्या। (इंजीनियरिंग)
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अभियांचा  : स्त्री०=अभियाचना।
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अभियाचन  : पुं० [सं० अभि√याच् (माँगना)+ल्युट्-अन]=अभियाचना।
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अभियाचना  : स्त्री० [सं० अभि√याच् (माँगना)+णिच्×युच्+अन-टाप्] १. बार-बार तथा दीनता-पूर्वक याचना करना। माँगना। २. नम्रता-पूर्वक किसी से कोई काम करने के लिए अनुरोध करना।
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अभियाचित  : भू० कृ० [सं० अभि√याच्+क्त] जिसके लिए अभियाचना की गई हो। माँगा हुआ।
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अभियान  : पुं० [सं० अभि√या(जाना)+ल्युट्-अन] [कर्त्ता अभिमानी] १. किसी के सामने जाना या पहुँचना। २. किसी विशिष्ट कार्य या निश्चित उद्देश्य की सिद्धि के लिए दल-बल सहित और सैनिक ढंग से चलकर कहीं जाना। (एक्सपेडिशन) ३. सैनिक-आक्रमण। चढ़ाई।
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अभियानिक  : वि० [सं० आभियानिक] १. अभियान-संबंधी। अभियान का। २. अभियान के रूप में होनेवाला।
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अभियानी (निनृ)  : पुं० [सं० अभियान+इनि] उद्देश्य, सिद्धि, विजय आदि की कामना से अभियान करनेवाला व्यक्ति। उदाहरण—जो तोड़े यह दुर्ग, वही है समता का अभियानी।—दिनकर।
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अभियुक्त  : वि० [सं० अभि√युज् (जोड़ना)+क्त] १. जुडा, लगा या सटा हुआ। संलग्न। २. किसी काम में लगा या लगाया हुआ। नियुक्त। ३. उक्त। कहा हुआ। ४. अध्यवसायी। ५. आक्रांत। ६. अच्छा ज्ञाता। सुविज्ञ। पुं० वह जिसपर न्यायालय में कोई अभियोग (अपराध या दोष) लगाया गया हो। मुलजिम। (एक्यूज्ड)
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अभियुक्ति  : स्त्री० [सं० अभि√युज्+क्तिन्] १. अभियुक्त होने की अवस्था या भाव। २. दे० ‘अभियोग’।
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अभियोक्ता (क्तृ)  : वि० [सं० अभि√युज्+तृच्]-अभियोगी।
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अभियोग  : पुं० [सं० अभि√युज्+घञ्] १. कोई काम पूरा करने के लिए मन लगाकर प्रयत्न करना। २. किसी काम या बात में होनेवाला मनोयोग। लगन। ३. आक्रमण। चढ़ाई। ४. किसी पर दोष लगाना या दोषारोपण करना। ५. किसी के अपराध आदि का विचारार्थ न्यायालय में उपस्थित किया जाना। दंड दिलाने के लिए की जाने वाली फरियाद। (एक्यूजेशन) ६. दे० अभियोजन।
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अभियोग-पत्र  : पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसमें किसी अभियोग का उल्लेख और उसकी जाँच की प्रार्थना या अनुरोध हो।
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अभियोगी (गिन्)  : वि० [सं० अभि√युज्+णिनुण्] किसी काम या बात में अनुरक्त होने या मन लगानेवाला। पुं० वह जिसने किसी पर विचारार्थ कोई दोष लगाया या अभियोग उपस्थित किया हो। मुकदमा चलानेवाला व्यक्ति। अभियोक्ता। फरियादी। (कॉम्प्लेनेन्ट)
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अभियोजक  : वि० [सं० अभि√युज्+ण्वुल्-अक] अभियोजन करनेवाला अभियोगी।
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अभियोजन  : वि० [सं० अभि√युज्+ल्यूट्-अक] [वि० अभियोज्य] १. अच्छी तरह जोड़ना या लगाना। २. किसी पर कोई अभियोग या दोष लगाना। यह कहना कि इसने अमुक अनुचित या दंडनीय अपराध या कार्य किया है। (एक्यूजेशन)
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अभियोज्य  : वि० [सं० अभि√युज्+ण्यत्] (कार्य या व्यक्ति) जिसके संबंध में या जिसपर अभियोग चलाया या लगाया जा सके। (एक्यूजेबुल्)
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अभिरंजन  : पुं० [सं० अभि√रञ्ज् (रंगना)+णिच्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिरंजित] १. अच्छी तरह रँगना। २. अनुरक्त करना या होना।
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अभिरंजित  : भू० कृ० [सं० अभि√रञ्ज्+णिच्+क्त] १. अच्छी तरह रँगा हुआ। २. किसी के अनुराग या प्रेम में पड़ा हुआ।
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अभिरक्षक  : पुं० [सं० प्रा० स०] न्यायालय या शासन की ओर से नियुक्त वह अधिकारी जो किसी व्यक्ति अथवा संपत्ति को सुरक्षा के विचार से अपने संरक्षण में रखता हो। (कस्टोडियन)
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अभिरक्षण  : पुं० [सं० प्रा० स०]=अभिरक्षा।
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अभिरक्षा  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] [भू० कृ० अभिरक्षित] १. अच्छी तरह की जानेवाली देख-रेख या रक्षा। २. किसी वस्तु या संपत्ति की देख-रेख करना अथवा किसी व्यक्ति को भागने आदि से रोकने के लिए उसे अपने अधिकार या वश में रखना। (कस्टेंडी)
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अभिरक्षित  : भू० कृ० [सं० अभि√रक्ष् (रक्षा करना)+क्त] जिसकी अभिरक्षा की गई हो या की जाती हो।
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अभिरत  : वि० [सं० प्रा० स०] [भाव० अभिरति] १. किसी कार्य या बात में लगा हुआ। लीन। २. मिला हुआ। युक्त। ३. अनुरक्त।
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अभिरति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. अभिरत होने की अवस्था या भाव। २. अनुराग। प्रेम। ३. लगन। ४. प्रसन्नता। हर्ष। ५. संतोष।
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अभिरना  : अ० [सं० अभि (=सामने)+रण(=युद्ध) या हिं० भिड़ना] १. भिड़ना। लड़ना। २. सहारा लेना। टेकना। स० १. भिड़ाना। २. मिलाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिरमण  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. अच्छी तरह रमण करना। खूब रमना। २. आनंद। प्रसन्नता।
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अभिराद्ध  : वि० [सं० अभि√राध् (सिद्धि)+क्त] प्रसन्न या संतुष्ट किया हुआ।
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अभिराधन  : पुं० [सं० अभि√राध् (सिद्धि)+ल्युट्-अन] अनुकूल करने के लिए कुछ दबकर प्रसन्न या संतुष्ट करना। (एपोजमेन्ट)
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अभिराम  : वि० [सं० अभि√रम् (क्रीड़ा)+णिच्+अच्] [स्त्री० अभिरामा,भाव,अभिरामता] १. अपनी उत्कृष्टता तथा सुन्दरता के कारण मन रमानेवाला। आनंद देनेवाला। २. प्रिय, मधुर या रुचिकर। पुं० [अभि√रम्+घञ्] १. आनंद। प्रसन्नता। २. आराम। सुख।
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अभिरामी (मिन्)  : वि० [सं० अभि√रम्+णिनि] १. रमण करनेवाला। २. संचरण करने या व्याप्त होनेवाला।
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अभिरुचि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] किसी क्षेत्र, विषय या व्यक्ति में विशेष रूप से होनेवाली रुचि। (इन्ट्रेस्ट)
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अभिक्त  : वि० [सं० अभि√रु(शब्द)+क्त] १. जो मधुर शब्द कर रहा हो। २. गूँजनेवाला। ३. जिसमें गुंजन होता हो। गुंजित। कूकता हुआ। कूजित। पुं० आवाज। शब्द।
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अभिक्ता  : स्त्री० [सं० अभिरूत+टाप्] संगीत में एक मूर्च्छना।
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अभिरूप  : वि० [स० ब० स] १. उत्कृष्ट, मधुर या सुंदर रूपवाला। २. किसी से मिलता-जुलता। सदृश। समान। ३. प्रचुर या यथेष्ट। पुं० १. शिव। २. विष्णु। ३. कामदेव। ४. चंद्रमा। ५. पंडित।
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अभिरोग  : पुं० [सं० प्रा० स०] चौपायों का एक रोग जिसमें उनकी जीभ में घाव हो जाता है।
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अभिरोपण  : पुं० [सं० प्रा० स०] कुछ पौधों आदि का एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर लगाया जाना। (सप्लान्टिंग)
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अभिलंघन  : पुं० [सं० अभि√लंघ् (लांघना)+ल्युट्-अन] १. उछल या कूदकर लांघना। २. अपने अधिकार, क्षेत्र या सीमा का जानबूझकर उल्लघन करना।
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अभिलंब  : वि० [सं० अभि√लम्ब् (लटकना)+अच्] १. जो क्षैतिज तल से सीधा इस प्रकार ऊपर (शीर्ष विंदु की ओर) गया हो कि उसके दोनों ओर दो समकोण बनतें हो। २. दे० लंब।
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अभिलक्षित  : भू० कृ० [सं० अभि√लक्ष् (देखना, अंकित करना)+क्त] १. लक्षित अथवा चिह्नित किया हुआ। अंकित। २. जिसे दृष्टि में रखकर कोई काम किया गया हो। ३. जिसकी ओर लक्ष्य या संकेत किया गया हो।
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अभिलक्ष्य  : वि० [सं० अभि√लक्ष्+ण्यत्] जो लक्ष्य या निशाना बनाया जा सके या बनाया जाए।
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अभिलषण  : पुं० [सं० अभि√लष्(चाहना)+ल्युट्-अन] १. अभिलाषाकरना। चाहना। २. ललचना।
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अभिलषित  : भू० कृ० [सं० अभि√लष्+क्त] जिसकी अभिलाषा की गई हो। चाहा हुआ।
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अभिलाख  : स्त्री० [क्रि०अभिलाखना] =अभिलाषा। उदाहरण—मनवा में इहे अबिलाख, इहे एक साध, इहे एक सधिया नु हो।—ग्राम्य गीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिलाखना  : स० [सं० अभिलाषण] अभिलाषा या इच्छा करना। चाहना।
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अभिलाखा  : स्त्री० =अभिलाषा।
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अभिलाखी  : वि० दे० ‘अभिलाषी’।
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अभिलाप  : पुं० [सं० अभि√लप्(कहना) घञ्] १. मन के किसी संकल्प का कथन या उच्चारण। संकल्प वाक्य। २. कथन। ३. बातचीत।
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अभिलाष  : पुं० [सं० अभि√लष् (चाहना)+घञ्]=अभिलाषा।
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अभिलाषक  : वि० [सं० अभि√लष्+ण्वुल्-अक] अभिलाषा करनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अभिलाषा  : स्त्री० [सं० अभिलाष] १. मन का यह भाव कि अमुख काम या बात इस रूप में हो जाए अथवा अमुक वस्तु हमें प्राप्त हो जाए। आकांक्षा। इच्छा। कामना। २. साहित्य में, पूर्व-राग की दस दशाओं में से एक, जिसमें प्रिय से मिलने की चाह होती है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अभिलाषी (षिन्)  : वि० [सं० अभि√लष्+णिनि] [स्त्री० अभिलाषिणी] अभिलाषा करने वाला। (एस्पायरेन्ट)
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अभिलाषुक  : वि० [सं० अभि√लष्+उकच्]=अभिलाषी।
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अभिलास  : पुं०=अभिलाषा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अभिलासा  : स्त्री० दे० ‘अभिलाषा’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अभिलिखित  : भू० कृ० [सं० अभि√लिख्(लिखना)+क्त] जिसका अभिलेखन हुआ हो। (दे० ‘अभिलेखन’)
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अभि-लीन  : वि० [सं० प्रा० स०] १. जो अच्छी तरह किसी में लीन हो। २. अनुरक्त। आसक्त। ३. चिपका या लगा हुआ। ४. पसंद किया हुआ।
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अभिलेख  : पुं० [सं० अभि√लिख् (लिखना)+घञ्] १. किसी घटना, विषय, व्यक्ति आदि से संबंध रखनेवाली बातें जो लिखित हों और उसकी प्रमाण हों। २. अभिदेश, निर्देश, स्मृति आदि के लिए लिखकर रखी हुई बातें। ३. न्यायालयों आदि की उक्ति प्रकार से लिखकर रखी हुई सब कारवाइयाँ। (रेकार्ड, उक्त सभी अर्थों के लिए)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
अभिलेख-अधिकरण  : पुं० [ष० त०] शासन का वह अधिकरण (न्यायालय का सा अधिकार रखने वाला विभाग) जिसे अभिलेखों की लिपि या प्रतिलिपि संबंधी त्रुटियाँ और भूलें सुधारने का अधिकार होता है। (कोर्ट आँफ रेकार्डस)
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अभिलेखन  : पुं० [सं० अभि√लिख्+ल्युट्-अन] [वि० अभिलिखित] १. लिखने अथवा उकरने (किसी चीज पर कुछ खोदने) का काम। २. अभिदेश, स्मृति आदि के विचार से किसी विषय की सब मुख्य-मुख्य बातें लिखना या किसी रूप में अंकित करना। (रेकार्डिंग)
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अभिलेखन-यंत्र  : पुं० [ष० त०] वह यंत्र जो कही हुई बातों का अभिलेख सुरक्षित रखने के लिए तैयार करता है। (रिकार्डिंग मशीन)
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अभिलेख-न्यायालय  : पुं०=अभिलेख-अधिकरण।
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अभिलेख-पाल  : पुं० [ष० त०] किसी न्यायालय, कार्यालय आदि के अभिलेखों की देख-करने और उन्हें यथा-स्थान रखनेवाला कर्मचारी। (रेकार्ड कीपर)
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अभिलेखालय  : पुं० [सं० अभिलेख-आलय, ष० त०] ऐसा भवन या स्थान जहाँ अभिलेख प्रस्तुत किये जाते हैं अथवा सुरक्षित रखे जाते हैं। (रेकार्ड रूम)
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अभिलेखित  : भू० कृ० [सं० अभिलेख+इतच्] =अभिलिखित।
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अभिलोपन  : पुं० [सं० अभिलोप+णिच्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिलुप्त] १. लेख आदि इस प्रकार काटना या मिटाना कि पढ़ा न जा सके। २. इस प्रकार नष्ट करना कि कोई चिन्ह बाकी न रहें। (आब्लिटरेशन)
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अभिवंचन  : पुं० [सं० अभि√वञ्च्(ठगना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिवंचित] १. वंचित या रहित करना। २. ठगना।
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अभिवंदन  : पुं० [सं० अभि√वन्द् (स्तुति)+ल्युट्-अन] [वि० अभिवंदनीय, भू० कृ० अभिवंदित] १. प्रणाम। नमस्कार। २. प्रशंसा। स्तुति।
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अभिवंदनीय  : वि० [सं० अभि√वन्द्+अनीयर] जिसका अभिवंदन करना उचित हो।
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अभिवंदित  : भू० कृ० [सं० अभि√वन्द्+क्त] १. जिसकी अभिवंदना की गई हो। २. प्रसंशित। स्तुत।
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अभिवंद्य  : वि० [सं० अभि√वन्द्+ण्यत्]=अभिवंदनीय।
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अभिवक्ता (क्त)  : पुं० [सं० अभि√वच्(बोलना)+तृच्] वह जो न्यायालय में किसी पक्ष की ओर से उसके विविध अथवा व्यावहारिक पक्ष का समर्थन करे। वकील। (प्लीडर)
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अभिवचन  : पुं० [सं० अभि√वच्+ल्युट्-अन] १. प्रतिज्ञा। इकरार। २. विधिक-प्रतिनिधि अथवा अभिवक्ता द्वारा न्यायालय के समक्ष वे कथन जो अपने नियोजक की ओर से कहता है। (प्लींडिंग)
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अभिवर्तन  : पुं० [सं० अभि√वृत्(बरतना)+ल्युट्-अन] १. किसी ओर या आगे बढ़ना। २. आक्रमण। चढ़ाई।
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अभिवर्धन  : पुं० [सं० अभि√वृध्+णिच्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिवर्धित] १. बढ़ाने की क्रिया या भाव। २. अधिक उपयोगी या फलप्रद बनाने के उद्देश्य से किसी छोटे या साधारण रूप को बड़े या विकसित रूप में लाना। (डेवेलपमेंट)
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अभिवर्धित  : भू० कृ० [सं० अभि√वृध्+णिच्+क्त] जिसका अभिवर्धन हुआ हो।
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अभिवांछा  : स्त्री० [सं० अभि√वाञ्छ्(चाहना)+अ-टाप्] अभिलाषा। आकांक्षा।
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अभिवांछित  : वि० [सं० अभि√वाञ्छ्+क्त] चाहा हुआ। इच्छित।
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अभिवाद  : पुं० [सं० अभि√वद् (बोलना)+घञ्] १. प्रणाम। वंदना। २. प्रशंसा। स्तुति। ३. दे० ‘अभिवादन’।
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अभिवादक  : वि० [सं० अभि√वद्+णिच्+ण्युल्-अक] अभिवादन करनेवाला।
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अभिवादन  : पुं० [सं० अभि√वद्+णिच्+ल्युट्-अन] १. श्रद्धापूर्वक किया जाने वाला प्रणाम या नमस्कार। २. प्रशंसा। स्तुति। (क्व०)
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अभिवादित  : भू० कृ० [सं० अभि√वद्+णिच्+क्त] जिसका अभिवादन किया गया हो।
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अभिवाद्य  : वि० [सं० अभि√वद्+णिच्+यत्] जिसका अभिवादन करना उचित या आवश्यक हो। अभिवादन या अधिकारी का पात्र।
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अभिवास  : पुं० [सं० अभि√वस्(आच्छादन)+णिच्+घञ्] १. ढकने का परदा। आवरण। २. ओढ़ने का कपड़ा। चादर।
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अभिवासन  : पुं० [सं० अभि√वस्+णिच्+ल्युट्-अन] ओढ़ने या ढकने की क्रिया या भाव।
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अभिवृद्धि  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] १. बहुत अधिक उन्नति या समृद्धि। २. =अभिवर्द्धन।
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अभिव्यंजक  : पुं० [सं० प्रा० स०] अभिव्यंजन करने वाला। (एक्सप्रेसिव) पुं० चित्रों, मूर्तियों आदि में वे चिन्ह, रेखाएँ आदि जो किसी विशिष्ट भाव आदि की द्योतक हों।
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अभिव्यंजन  : पुं० [सं० प्रा० स०] [भू० कृ० अभिव्यंजित, अभिव्यक्त] १. विचारों या भावों को शब्दों या संकेतों द्वारा ठीक तरह से तथा स्पष्ट रूप से प्रकट करने की क्रिया या भाव। २. भाषिक क्षेत्र में, कोई बात शब्दों द्वारा बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त करना। (एक्स्प्रेशन उक्त दोनों अर्थों के लिए)
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अभिव्यंजना  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] वह बात जो अभिव्यंजन के रूप में प्रकट की गई हो।
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अभिव्यंजना-वाद  : पुं० [ष० त०] कला और साहित्य में वह वाद या सिद्धांत जिसमें मनोगत भाव नग्न रूप में व्यक्त करना ही मुख्य उद्देश्य माना जाता है। (एक्सप्रेशनिज्म)
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अभिव्यंजित  : भू० कृ० [सं० प्रा० स०] जिसका अभिव्यंजन हो चुका हो या किया गया हो। अभिव्यंजना के द्वारा प्रकट किया हुआ। (एक्स्प्रेस्ड)
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अभिव्यक्त  : भू० कृ० [सं० प्रा० स०] [भाव० अभिव्यक्ति०] १. जिसकी अभिव्यक्ति की गई हो। २. सामने आया या लाया हुआ।
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अभिव्यक्ति  : स्त्री० [सं० अभि-वि√अञ्ज् (स्पष्ट करना)+क्तिन्] १. प्रकट, प्रकाशित या स्पष्ट करने की क्रिया या भाव। (मैनिफेस्टेशन) २. न्याय शास्त्र में, किसी अप्रत्यक्ष या सूक्ष्म कारण से प्रत्यक्ष या स्थूल कार्य या वस्तु का होनेवाला आविर्भाव। ३.दे० ‘अभिव्यंजना’।
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अभिव्यापक  : वि० [सं० प्रा० स०] अच्छी तरह व्याप्त होने या करने वाला। पुं० १. ईश्वर। २. ऐसा आधार जिसके हर अंग या अंश में आधेय वर्त्तमान हो। जैसे—तिल, जिसके हर अंश में तेल रहता हैं।
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अभिव्याप्त  : वि० [सं० प्रा० स०] जो अच्छी तरह व्याप्त (प्रचलित या फैला हुआ) हो।
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अभिव्याप्ति  : स्त्री० [सं० प्रा० स०] अभिव्याप्त होने की अवस्था या भाव।
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अभिशंसन  : पुं० [सं० अभि√शंस्(कहना)+ल्युट्-अन] =अभिशंसा।
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अभिशंसा  : स्त्री० [सं० अभि√शंस्+अ-टाप्] १. विधिक दृष्टि से किसी अभियोग या अपराध की पुष्टि होना। २. न्यायालय द्वारा उक्त प्रकार से अपराध की घोषणा करने की क्रिया या भाव।
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अभिशंसित  : भू० कृ० [सं० अभि√शंस्+णिच्-क्त] विधिक दृष्टि से जिसपर अपराध सिद्धि या प्रमाणित हुआ हो। (कन्विक्टेड)
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अभिशपन  : पुं० [सं० अभि√शंप्(कोसना)+ल्युट्-अन] १. किसी पर झूठा दोषारोप करना। २. दे० ‘अभिशाप’।
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अभिशप्त  : भू० कृ० [सं० अभि√शंप्+क्त] १. जिस पर मिथ्या आरोप किया गया हो। २. जिसे शाप दिया गया हो। शापित।
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अभिशस्त  : वि० [सं० अभि√शंस्+क्त] भू० कृ० =अभिशंसित।
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अभिशस्ति  : स्त्री० [सं० अभि√शंस्+क्तिन्] १. अभिशाप। २. निन्दा। बदनामी। ३. प्रार्थना। ४. हिंसा। ५. विपत्ति।
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अभिशाप  : पुं० [सं० अभि√शंप्+घञ्] [भू० कृ० अभिशप्त] १. बहुत बड़ा शाप। २. झूठा अभियोग या मिथ्या दोषारोपण।
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अभिशापन  : पुं० [सं० अभि√शंप्+णिच्+ल्युट्-अन] अभिशाप देने की क्रिया या भाव।
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अभिशापित  : भू० कृ० [सं० अभि√शंप्+णिच्+क्त] =अभिशप्त।
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अभिशासक  : पुं० [सं० अभि√शास्(शासन करना)+ण्वुल्-अक] अच्छी तरह शासन करनेवाला अधिकारी।
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अभिशासन  : पुं० [सं० अभि√शास्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अभिशासित] अच्छी तरह और पूरा नियंत्रण रखते हुए प्रबंध व्यवस्था या शासन करने की क्रिया या भाव० (गवर्नेस)
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अभिशासित  : वि० [सं० अभि√शास्+णिच्+क्त] जिसका अभिशासन हुआ हो या हो रहा हो।
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अभिशून्यन  : पुं० [सं० अभिशून्य, प्रा० स०+णिच्+ल्युट्-अन] १. शून्य करना। २. निरर्थक, रद्द या व्यर्थ करना।
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अभिषंग  : पुं० [सं० अभि√सञ्ज्(सटना या मिलना)+घञ्] १. किसी काम या बात में किसी के संग या साथ होना। २. कोसना। ३. झूठा अभियोग या दोषारोपण। ४. गले लगाना। आलिंगन। ५. शपथ। कसम। ६. भूत-प्रेत का आविर्भाव या आवेश। ७. पराजय। हार।
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अभिषंगी (गिन्)  : पुं० [सं० अभि√सञ्ज्+णिनि] वह जो किसी बुरे या अनुचित काम में किसी का साथ दें। वि० साथ लगा रहनेवाला।
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अभिषद्  : स्त्री० [सं० अभि√सद्(गति आदि)क्विप्] किसी विशिष्ट वर्ग के सब दलों, प्रतिनिधियों आदि की वह संस्था या निकाय जो उन सब के सम्मिलित उद्देश्य की सिद्धि तथा माँगों की पूर्ति के संघठित किया जाए। (सिडिकेट) जैसे—व्यापारिक या साहित्यिक अभिषद्।
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अभिषद  : पुं० [सं० अभि√सु(स्थापन)+अप्] १. यज्ञ। २. यज्ञ के समय होने वाला स्नान। ३. सोम का रस निकलवाना। ४. शराब चुआना। आसवन। ५. काँजी।
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अभिषावक  : पुं० [सं० अभि√सु+ण्वुल्-अक] यज्ञ-कार्य के लिए सोमरस निचोड़ने वाला पुरोहित।
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अभिषिक्त  : भू० कृ० [सं० अभि√सिच्(सींचना)+क्त] १. जिसका या जिस पर अभिषेक हुआ हो। २. सिंचा या सींचा हुआ।
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अभिषेक  : पुं० [सं० अभि√सिच्+घञ्] [वि० अभिषिक्त] १. जल छिड़कना। २. ऊपर से जल डालकर किया जाने वाला स्नान। ३. बाधा, शान्ति या मंगल के लिए मंत्र पढ़कर जल छिड़कना। मार्जन। ४. विधिपूर्वक मंत्र छिड़ककर राज-गद्दी पर बैठना। ५. यज्ञादि के पीछे शांति के लिए किया जानेवाला स्नान। ६. शिवलिंग के ऊपर छेदवाला घड़ा लटकाकर धीरे-धीरे पानी टपकाना।
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अभिषेक्ता (तृ)  : पुं० [सं० अभि√सिच्+तृच्] १. अभिषेक का कृत्य करनेवाला व्यक्ति। २. राज्य-गुरु।
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अभिषेक्य  : वि० [सं० अभि√सिच्+तृच्] १. अभिषेक का अधिकारी या पात्र। २. जिसका अभिषेक होने को हो।
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अभिषेचन  : पुं० [सं० अभि√सिच्+ल्युट्-अन] अभिषेक करने की क्रिया या भाव।
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अभिषेचनीय  : वि० [सं० अभि√सिच्+अनीयर्] =अभिषेक्य।
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अभिषेच्य  : वि० =अभिषेक्य।
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अभिषोता (तृ)  : पुं० [सं० अभि√सु+तृच्] दे० ‘अभिषावक’।
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अभिष्यंद  : पुं० [सं० अभि√स्यन्द्(बहना)+घञ्] १. बहने की क्रिया या भाव। स्राव। २. एक रोग जिसमें आँखे लाल हो जाती है। और उनमें से पानी बहता है।
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अभिष्यंदी (दिन्)  : वि० [सं० अभि√स्यन्द्+णिनि] १. चूने या रसनेवाला। २. दस्त लानेवाला। रेचक।
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अभिसंदोह  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. अदला-बदला। परिवर्तन। २. पुरुष की जननेंद्रिय। लिंग।
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अभिसंघ  : पुं० [सं० अभि-सम्√धा(धारण करना)+क] १. धोखा देनेवाला। २. ईर्ष्या करनेवाला। ३. निंदक।
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अभिसंधक  : वि० [सं० अभिसंधायक] अभिसंधि करनेवाला।
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अभिसंधान  : पुं० [सं० अभि-सम्√धा+ल्युट्-अन] १. धोखा। जाल। २. प्रयत्न का उद्देश्य या लक्ष्य।
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अभिसंधि  : स्त्री० [सं० अभि-सम्√धा+कि] [वि० अभिसंधित] १. कई बातों या वस्तुओं का एक स्थान पर आकर मिलना। २. किसी को कष्ट पहुँचाने, धोखा देने, उपद्रव खड़ा करने आदि के लिए कई व्यक्तियों का आपस में परामर्श करके कोई कुचक्र रचना या योजना बनाना। दुरभिसंधि। षड्यंत्र। (कॉन्सपिरेसी)
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अभिसंधिता  : स्त्री० [सं० अभिसंधि+णिच्+क्त-टाप्] =कलहांतरिता नायिका।
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अभिसंपात  : पुं० [सं० अभि-सम्√पत्(गिरना)+घञ्] १. लड़ाई-झगड़ा। संघर्ष। २. पतन।
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अभिसंयोग  : पुं० [सं० अभि-सम्√युज्(जोड़ना)+घञ्] बहुत निकट का संबंध या लगाव।
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अभिसंस्कार  : पुं० [सं० अभि-सम्√कृ(करना)+घञ्] १. अभिवृद्धि। २. विचार या भावना। (बौद्ध)
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अभिसक्त  : वि० [सं० अभि-षक्त] १. जिसके सब अंग इतनी दृढ़ता से मिले हों कि सहसा या सहज में अलग न किये जा सकते हों। २. जो किसी से चिमट या सट जाने पर छुड़ाया न जा सके। (टेनेशस)
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अभिसक्ति  : स्त्री० [सं० अभि+षक्ति] अभिसक्ति होने की अवस्था या भाव। (टेनेसिटी)
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अभिसमय  : पुं० [सं० अभि-सम्√इ(गति)+अच्] [वि० अभिसामयिक] १. आपस में होनेवाला किसी प्रकार का निश्चय या समझौता। २. बौद्ध दर्शन में धर्म के प्रति रुचि और उसका ज्ञान। ३. दो या दो से अधिक राष्ट्रों या राज्यों के पारस्परिक समान हित या व्यवहार से संबंध रखनेवाले विषयों पर उनमें आपस में होने वाला वह समझौता, जिसका पालन उन सब के लिए समान रूप से विधि या विधान के रूप में आवश्यक होता है। जैसे—डाक विभाग का युद्ध संचालन संबंधी अभिसमय। ४. परस्पर युद्ध करनेवाले राष्ट्रों के सैनिक अधिकारियों का युद्ध स्थगित करने अथवा इसी प्रकार की दूसरी बातों के संबंध में होनेवाला समझौता जिसका पालन सभी पक्षों के लिए आवश्यक होता है। ५. किसी प्रथा या परपाटी के मूल में रहनेवाला सब लोगों का वह समझौता या सहमति जिसे मानक रूप में मानना सब के लिए आवश्यक होता है। जैसे—कला, काव्य या संविधान संबंधी अभिसमय। ६. उक्त प्रकार की बातें निश्चित करने के लिए आधिकारिक रूप से होनेवाला कोई सम्मेलन या सभा (कन्वेन्शन उक्त सभी अर्थों के लिए) ७. दे० ‘रूढ़ि’।
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अभिसम्मत  : वि० [सं० प्रा० स०] प्रतिष्ठित। सम्मानित।
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अभिसर  : पुं० [सं० अभि√सृ(गति)+ट] १. सखा या सहचर। २. सहायक। ३. अनुचर। दास।
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अभिसरण  : पुं० [सं० अभि√सृ+ल्युट्-अन] १. किसी बिन्दु या स्थान की ओर आगे बढ़ना या उस तक पहुँचना। (कानवर्जेस) २. किसी से मिलने के लिए उसकी ओर आगे बढ़ना या उसके पास जाना। ३. शरण। ४. सहारा।
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अभिसरना  : अ० [सं० अभिसरण] १. कहीं पहुँचने के लिए आगे बढ़ना या चलना। २. नायक या नायिका का अपने प्रिय से मिलने के लिए संकेत स्थल की ओर जाना।
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अभिसर्ग  : पुं० [सं० अभि√सृज्(रचना)+घञ्] १. निर्माण। रचना। २. सृष्टि।
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अभिसर्जन  : पुं० [सं० अभि√सृज्+ल्युट्-अन] १. दान। २. वध।
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अभिसर्ता (तृ)  : पुं० [सं० अभि√सृ(गति)+तृच्] आक्रमण करनेवाला। आक्रामक।
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अभिसाधक  : पुं० दे० ‘अभिकर्त्ता’।
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अभिसाधन  : पुं० दे० ‘अभिकरण’।
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अभिसामयिक  : वि० [सं० आभिसमयिक] १. अभिसमय या समझौते से संबंध रखनेवाला। २. जो किसी चली आई हुई प्रथा या परिपाटी के अनुसार ठीक और मानक माना जाता हो। रूढ़ (कन्वेन्शनल)
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अभिसार  : पुं० [सं० अभि√सृ(गति)+घञ्] १. किसी ओर आगे बढ़ना। २. किसी से मिलने के लिए उसकी ओर जाना। अभिसरण। ३. साहित्य में वह स्थान जहाँ प्रेमी और प्रेमिका गुप्तरूप से पहुँचकर मिलतें है। ४. मेल। मिलाप। उदाहरण—मुखरित था कलरव, गीतों में स्वर लय का होता अभिसार।—प्रसाद। ५. आक्रमण। ६. युद्ध। ७. अनुचर। अनुयायी। ८. सहारा। ९. बल। शक्ति। १. आधुनिक पुंछ और रजौड़ी के आसपास के प्रदेश का पुराना नाम।
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अभिसारक  : वि० [सं० अभि√सृ+ण्वुल्-अक] [स्त्री० अभिसारिका] मिलने के उद्देश्य से किसी के पास जाना। पुं० नायिका से मिलने के लिए गुप्तरूप से संकेत-स्थल पर जानेवाला नायक।
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अभिसारना  : अ० =अभिसरना। स० किसी को कहीं भेजना।
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अभिसारिका  : स्त्री० [अभि√सृ+णिच्+ण्युल्-अक-टाप्, इत्व] नायक से मिलने के लिए गुप्त संकेत-स्थल की ओर जानेवाली नायिका। (साहित्य)
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अभिसारिणी  : स्त्री० [सं० अभि√सृ+णिच+णिनि-ङीष्] १. अभिसरण करने वाली स्त्री। अभि-सारिका। अभिसारिका। २. साथ रहनेवाली स्त्री। ३. अनुचरी। दासी।
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अभिसारी (रिन्)  : वि० [सं० अभि√सृ+णिनि] [स्त्री० अभिसारिणी] १. किसी बिन्दु या स्थान की ओर बढ़ने या उस तक पहुँचनेवाला। अभिसरण करनेवाला। (कानवर्डिग) २. किसी से मिलने के लिए उसकी ओर जानेवाला या उसके पास पहुँचनेवाला। ३. कार्य में सहायता देनेवाला। सहायक। पुं० वह नायक जो नायिका से मिलने के लिए संकेत-स्थल की ओर जा रहा हो।
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अभिसूचन  : स्त्री० [सं० अभि√सूच्+णिच्+ल्युट्-अन] १. कोई कार्य करने के लिए विशेष रूप से दी जानेवाली सूचना या आदेश। (एडवाइस) २. दे० ‘अधिसूचन’।
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अभिसेख  : पुं० =अभिषेक।
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अभिस्ताव  : पुं० [सं० अभि√स्तु(स्तुति करना)+घञ्] १. प्रशंसा। स्तुति। २. किसी विषय के औचित्य का समर्थन या किसी व्यक्ति की कुछ प्रशंसा इस उद्देश्य से करना कि अन्य कोई उसे ठीक मानकर उसका उचित उपयोग कर सके। (रिकमेन्डेशन)
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अभिस्थगित  : भू० कृ० [सं० प्रा० स०] जो किसी विशिष्ट कारण या विचार से या कोई शर्त पूरी होने तक के लिए रोक रखा गया हो। (डेफर्ड)
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अभिस्रावण  : पुं० [सं० अभि√स्रु(बहना)+णिच्+ल्युट्-अन] दे० ‘आसवन’।
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अभिस्रावणी  : स्त्री० [सं० अभिस्रावण+ङीष्] दे० =आसवनी।
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अभिहत  : वि० [सं० अभि√हन्(हिंसा)+क्त] १. जिसका अभिघात हुआ हो या किया गया हो। २. मारा-पीटा या दबाया हुआ। ३. गुणन किया हुआ। गुणित।
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अभिहति  : स्त्री० [सं० अभि√हन्+क्तिन्] १. निशाना लगाना। २. मारना। ३. गुणनक्रिया। ४. गुणनफल।
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अभिहर  : वि० [सं० अभि√इ(हरण करना)+अच्] उठा या चुरा ले जानेवाला। पुं० दे० ‘अभिहरण’।
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अभिहरण  : पुं० [सं० अभि√हृ+ल्युट्-अन] १. उठा या छीन ले जानेवाला। २. लूटना। ३. दे० ‘अपनयन’।
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अभिहर्ता (र्तृ)  : पुं० [सं० अभि√हृ+तृच्] अभिहरण करनेवाला।
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अभिहस्तांकन  : पुं० [सं० अभि-हस्त, प्रा० स०, अभिहस्त-अंकन,० त० त०] दे० ‘अभ्यर्पण’।
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अभिहार  : पुं० [सं० अभि√हृ+घञ्] १. उठाने, हटाने या चुराने की क्रिया या भाव। २. अपनयन।
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अभिहास  : पुं० [सं० अभि√हस् (हँसना)+घञ्] जोर की या बहुत अधिक हँसी। अट्टाहस।
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अभिहित  : वि० [सं० अभि√धा(धारण, पोषण)+क्त] १. अभिधा, उल्लेख, कथन, आदि के रूप में आया या लाया हुआ। २. उल्लिखित। कथित। ३. किसी विशिष्ट नाम से प्रसिद्ध या संबोधित। ४. जो वास्तविक नहीं, बल्कि कहने भर को हो। नाम मात्र का। (नाँमिनल) जैसे—अभिहित पूँजी, अभिहित भाड़ा। पुं० १. नाम। २. शब्द।
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अभिहित-संधि  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] ऐसी संधि जिसकी लिखा-पढ़ी न हुई हो। मौखिक निश्चय या संधि। (कौटिल्य)।
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अभिहिति  : स्त्री० [सं० अभि√घञ्+क्तिन्] अभिहित होने की अवस्था या भाव।
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अभिहूति  : स्त्री० [सं० अभि√ह्रे(शब्द)+क्तिन्] १. आवाहन करने, बुलाने अथवा पुकारने की क्रिया या भाव। २. पूजन।
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अभिहोम  : पुं० [सं० प्रा० स०] यज्ञ में आहुति देना। होम करना।
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