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अकर  : वि० [सं० न० त०] १. जो करने योग्य न हो। अनुचित। बुरा। २. जो कुछ न कर रहा हो। अक्रिय। निष्क्रिय ३. जिसके कर (हाथ) न हों। बिना हाथों वाला। कर-विहीन। ४. जिस पर कर (शुल्क) न लगता हो या लगा हो। कर-रहित।
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अकरकरा  : पुं० [अ० अक़रक़ईः, सं० आकरकरभ] उत्तरी अफ्रीका का एक पौधा जिसकी जड़ दवा के काम आती है।
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अकरखना  : स० [सं० आकर्षण] १. आकृष्ट करना। खींचना। २. तानना। ३. चढ़ाना (धनुष पर तीर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अकरण  : वि० [सं० न० ब०] करण या इंद्रियों से रहित। पुं० ईश्वर या परमात्मा का एक नाम। वि० १. [कार्य] जो किये जाने के योग्य न हो। २. अनुचित। बुरा। ३. कठिन। दुष्कर। पुं० [सं० न० त०] १. कुछ भी न करने की क्रिया या भाव। २. जो काम किया जाना चाहिए वह न करना। कर्त्तव्य कर्म न करना। (ओमिशन) ३. किसी किये हुए काम को ऐसा रूप देना कि वह न किये हुए के समान हो जाए।
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अकरणीय  : वि० [सं० न० त०] (काम) जो किये जाने के योग्य न हो। अनुचित। बुरा।
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अकरन  : वि० =अकारण। उदाहरण—कर-कुठार मैं अकरन कोही—तुलसी। वि० [सं० अकरण] १. न किये जाने के योग्य। अकरणीय। उदाहरण—रीतौ भरै, भरौ ढरकावे अकरन करन करै-सूर। २. अनुचित। निन्दनीय। बुरा। ३. कठिन। दुष्कर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अकरनीय  : वि०=अकरणीय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अकरब  : पुं० [अ०] १. बिच्छू। २. वृश्चिक राशि। ३. वह घोड़ा जिसके मुँह पर के सफेद रोओं के बीच में दूसरे रंग के रोएँ हों। (ऐसा घोड़ा दोषयुक्त या खराब माना जाता है।)
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अकरा  : वि० [सं० अक्रय्य] १. जो महँगा अथवा अधिक मूल्य का होने से मोल लेने योग्य न हो। कीमती। २. अधिक मूल्य का महँगा। ३. अच्छा। बढ़िया। श्रेष्ठ। स्त्री० [सं० ] आमलकी। आँवला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अकराथ  : वि०=अकारथ।
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अकराम  : पुं० [अ०करम (=कृपा) का बहु०] कृपा। अनुग्रह। पद—इनाम-अकराम=पारितोषिक और अनेक प्रकार के अनुग्रह।
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अकरार  : पुं० [हिं० अ+अ० करार=निश्चय, स्थिरता आदि] १. निश्चय या स्थिरता का अभाव। वि० जिसका कोई रूप या मर्यादा न हो। अनिश्चित या अ-स्थिर। पुं० १. दे० ‘इकरार’। २. दे० ‘करार’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अकराल  : वि० [सं० न० त०] १. जो कराल या भयंकर न हो। सौम्य। २. सुन्दर। वि० =कराल (भीषण)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अकरावना  : वि० १. डरावना। भयानक। २. मन में घृणा उत्पन्न करनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अकरास  : पुं० [सं० अकर] १. आलस्य। सुस्ती। २. अँगड़ाई।
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अकरासू  : पुं० स्त्री० (हिं० अकरास] जिसे गर्भ हो। गर्भवती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अकरी  : स्त्री० [सं० आ=अच्छी तरह+किरण=बिखरना] १. बीज बोने के लिए लकड़ी का एक प्रकार का चोंगा जो हल में लगा रहता है। २. एक प्रकार का क्षुप या पौधा। वि०=अक्रिय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अकरुण  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें करुणा या दया न हो। करुणा-रहित। २. निर्दय। निष्ठुर।
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अकरूर  : पुं०=अक्रूर।
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अकर्ण  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसके कान न हो। बिना कानोंवाला। २. जिसके कान छोटे हों। ३. बहरा। ४. (नाव) जिसमें पतवार न हो। पुं० साँप।
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अकर्तव्य  : वि० [सं० न० त०] (काम) जो करने योग्य न हो। अनुचित। बुरा। पुं० वह कार्य जिसे करना उचित न हो। अनुचित काम।
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अकर्ता (र्तृ)  : वि० [सं० न० त०] १. जो कर्ता (करनेवाला) न हो। २. जो किसी काम में लगा न हो। सब कर्मों से अलग और आलिप्त। जैसे—सांख्य में पुरुष अकर्ता माना गया हैं।
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अकर्तृक  : वि० [सं० न० ब०] १.जिसका कोई कता या रचयिता न हो। कर्ताविहीन। २. जो (किसी का) किया हुआ न हो।
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अकर्तृत्व  : पुं० [सं० न० त०] १. अकर्ता होने की अवस्था या भाव। २. कर्तृव्य (या उसके अभिमान) का अभाव।
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अकर्म (र्मन्)  : पुं० [सं० न० त०] १. कर्म का अभाव। काम न करने का भाव। २. कर्म या कार्य का न होना। ३. न करने योग्य काम। अनुचित या बुरा काम।
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अकर्मक क्रिया  : स्त्री० [सं० अकर्मक० ब०, कप् अकर्मिका-क्रिया, क्रम०स०] व्याकरण में, क्रिया के दो मुख्य भेदों में से एक, जिसके साथ कोई कर्म नहीं होता अथवा जिसमें कर्म की अपेक्षा नहीं होती। (इन्ट्रान्जिटिव वर्ब) जैसे—दौड़ना, भटकना, सोना आदि।
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अकर्मण्य  : वि० [सं० कर्मन+यत्, न त०] [भाव० अकर्मण्यता] १. (व्यक्ति) जो कोई काम ठीक तरह से न कर सकता हो। निकम्मा। २. (पदार्थ) जो किसी काम का या उपयोगी न हो। व्यर्थ।
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अकर्मण्यता  : स्त्री० [सं० अकर्ण्यय+तल्-टाप्] अकर्मण्य होने की अवस्था या भाव।
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अकर्मा (र्मन्)  : वि० [सं० न० ब०] १. दे० अकर्ता। २. दे० ‘अकर्मण्य'।
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अकर्मी (र्मिन्)  : पुं० [सं० कर्मन्+इन्, न० त०] (स्त्री० अकर्मिणी] १. अकर्म या बुरा कर्म करने वाला। पापी। २. अपराधी। दोषी।
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अकर्षण  : पुं०=आकर्षण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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