शब्द का अर्थ
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स्नान :
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पुं० [सं०] [वि० स्नात] १. स्वच्छ या शीतल करने के लिए सारा शरीर जल से धोना या जलराशि में प्रवेश करना। नहाना। २. धार्मिक दृष्टि से (क) कुछ दिनों तक बराबर नियमपूर्वक किसी जलाशय में जाकर वहाँ की जानेवाली उक्त क्रिया। जैसे–कार्तिक स्नान, माघ स्नान आदि। (ख) कुछ विशिष्ट अवसरों या पर्वों पर उक्त कार्य के संबंध में किसी तीर्थ या पवित्र स्थान में लगनेवाला मेला। जैसे–कुंभ स्नान, प्रयाग स्नान आदि। ३. धूप, वायु आदि के सामने इस प्रकार बैठना, लेटना या होना कि सारे शरीर पर उसका पूरा प्रभाव पड़े। जैसे–वायु-स्नान, आतप-स्नान। ४. इस प्रकार किसी वस्तु पर किसी दूसरी वस्तु का पड़नेवाला प्रभाव या सार। जैसे–चन्द्रमा की चांदनी में पृथ्वी का स्नान (बाथ)। |
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समानार्थी शब्द-
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स्नान-गृह :
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पुं० [सं०] नहाने का कमरा। गुलसखाना। हमाम। |
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स्नान-तृण :
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पुं० [सं०] कुछ जिसे हाथ में लेकर नहाने का शास्त्रों में विधान है। |
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स्नान–यात्रा :
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स्त्री० [सं०] ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को होनेवाला एक उत्सव जिसमें विष्णु को महास्नान कराया जाता है। इस दिन जगन्नाथजी के दर्शन का बहुत महात्म्य कहा गया है। |
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स्नान-वस्त्र :
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पुं० [सं०] वह वस्त्र जिसे पहनाकर स्नान किया जाता है (बेदिंग सूट)। |
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स्नान-शला :
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स्त्री० [सं०] स्नान-गृह। गुसलखाना। |
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स्नानागार :
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पुं० [सं०] स्नान-गृह। |
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स्नानी (निन्) :
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वि० [सं०] स्नान करनेवाला। स्त्री०=स्नान-गृह। |
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स्नानीय :
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वि० [सं०] १. जो नहाने के योग्य हो। २. जल जिसमें स्नान किया जा सके। |
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स्नानोदक :
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पुं० [सं०] नहाने के काम में आनेवाला जल। नहाने का पानी। |
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