शब्द का अर्थ
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					विधि					 :
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					स्त्री० [सं०] १. कोई काम करने का ठीक ढंग या रीति, क्रिया व्यवस्था आदि की प्रणाली। मुहावरा— (किसी काम या बात की) विधि बैठना=लगाई हुई युक्ति या ठीक या सफल सिद्ध होना। जैसे—यदि तुम्हारी विधि बैठ गई तो काम होने में देर न लगेगी। २. आपस में होनेवाली अनुकूलता या संगति। मुहावरा— (आपस में) विधि बैठना=अनुकूलता मेल-मिलाप या संगति होना। जैसे—अब तो उन लोगों में विधि बैठ गई है। विधि मिलना=अनुरूपता होना। जैसे—जन्मकुंडली की विधि मिलना। ३. ऐसी आज्ञा या आदेश जिसका पालन अनिवार्य या आवश्यक हो। ४. धर्म-ग्रन्थों, शास्त्रों आदि में बतलाई हुई ऐसी व्यवस्था जिसे साधारणतः सब लोग मानते हों। पद—विधि निषेध=ऐसी बातें जिनमें यह कहा गया हो कि अमुक अमुक काम या बातें करनी चाहिए और अमुक-अमुक काम या बातें नहीं करनी चाहिए। ५. आचार-व्यवहार। पद—गति-विधि=आगे, बढ़ने पीछे हटने आदि के रूप में होनेवाली चाल-ढाल या रंग-ढंग। जैसे—पहले कुछ उसके रोजगार की गतिविधि तो देख लो, तब उनके साथ साझेदारी करना। ६. तरह। प्रकार। भ्रांति। उदाहरण—एहि विधि राम सबहिं समुझावा। तुलसी। ७. व्याकरण में वह स्थिति जिसमें किसी से काम करने के लिए कहा जाता है। जैसे— (क) तुम वहाँ जाओ। (ख) यह चीज यहीं रखनी चाहिए। ८. साहित्य में एक अर्थालंकार जिसमें किसी सिद्ध विषय का फिर से विधान किया जाता है। जैसे—वर्षा काल में ही मेघ, मेघ है। ९. आज-कल राज्य या शासन के द्वारा चलाये या बनाये हुए वे सब नियम, विधान आदि जिसका उद्देश्य सार्वजनिक हितों की रक्षा करना होता है और जिनका पालन सबके लिए अनिवार्य तथा आवश्यक होता है। कानून। (लाँ)। पुं० सृष्टि की रचना करनेवाला ब्रह्मा।				 | 
			
			
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					विधिक					 :
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					वि० [सं०] [भाव० विधिकता] १. विधि संबंधी। २. विधि के रूप में होनेवाला। ३. (कार्य) जिसे करने में कोई कानूनी अड़चन न हो। ४. जो विधि के विचार से न्याय-संगत हो। (लीगल)।				 | 
			
			
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					विधिकता					 :
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					पुं० [सं०] १. विधिक होने की अवस्था या भाव। २. कानून के विचार से होनेवाली अनुरूपता।				 | 
			
			
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					विधिक-प्रतिनिधि					 :
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					पुं० [सं०] वह प्रतिनिधि जिसे किसी की ओर से न्यायालय में कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त हो (लीगल रिप्रेज़ेटेटिव)।				 | 
			
			
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					विधिकर्ता					 :
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					पुं० [सं०] वह जो विधि या कानून बनाता हो। (लॉ-मेकर)।				 | 
			
			
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					विधिक व्यवहार					 :
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					पुं० [सं०] वह कार्य या प्रक्रिया जो किसी व्यवहार या मुकदमे में विधि या कानून के अनुसार होती है। (लीगल प्रोसीडिंग)।				 | 
			
			
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					विधिक-साध्य					 :
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					स्त्री० [सं०] विधिक-निर्णय (दे०)।				 | 
			
			
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					विधिज्ञ					 :
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					पुं० [सं०] १. वह जो विधि-विधान आदि का अच्छा ज्ञाता हो। २. कानून का ज्ञाता ऐसा व्यक्ति जो दूसरों के व्यवहारों के संबंध में न्यायालय में प्रतिनिधि के रूप में काम करता हो। (लायर)। ३. वह जो काम करने का ठीक ढंग जानता हो।				 | 
			
			
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					विधितः					 :
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					अव्य० [सं०] १. विधि या रीति के अनुसार। २. कानून के अनुसार (बाई लाँ) ३. कानून की दृष्टि में या विचार से (डी० जूरी, लाँ-फुली)।				 | 
			
			
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					विधि-दर्शक					 :
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					पुं० [सं०] विधिदर्शी (दे०)।				 | 
			
			
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					विधिदर्शी					 :
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					पुं० [सं०] यज्ञ में वह व्यक्ति जो यह देखने के लिए नियुक्त होता था कि होता, आचार्य आदि विधि के अनुसार कर्म कर रहे हैं या नहीं।				 | 
			
			
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					विधिना					 :
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					पुं०=विधना (ब्रह्मा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					विधि-निषेध					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] साहित्य में आक्षेप अलंकार का एक भेद जिसमें कोई काम करने की विधि या अनुमति देने पर भी प्रकारांतर से उसका निषेध किया जाता है। जैसे—आप जाते हैं तो जाइए, अगले जन्म में मैं आपके दर्शन करूँगी। (अर्थात् आपके दर्शन की लालसा में प्राण दे दूँगी।)				 | 
			
			
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					विधि-पत्नी					 :
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					स्त्री० [सं०] सरस्वती।				 | 
			
			
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					विधिपाट					 :
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					पुं० [सं०] मृदंग के चार वर्णों में से एक वर्ण। शेष तीन वर्ण ये हैं—पाट, कूटपाट और खंडपाट।				 | 
			
			
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					विधिपुत्र					 :
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					पुं० [सं० विधि+पुत्र] ब्रह्मा के पुत्र, नारद।				 | 
			
			
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					विधिपुर					 :
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					पुं० [सं० विधि+पुर] ब्रह्मलोक।				 | 
			
			
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					विधि-भंग					 :
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					पुं० [सं०] १. विधि अर्थात् कानून का उल्लंघन करने की क्रिया या भाव। नियम तोड़ना। (ब्रीच आँफ लाँ)।				 | 
			
			
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					विधि-भेद					 :
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					पुं० [सं०] साहित्य में उपमा अलंकार का एक दोष जो उस समय माना जाता है, जब उपमेय और उपमान के गुण, धर्म आदि का मेल ठीक से नहीं बैठता।				 | 
			
			
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					विधिरानी					 :
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					स्त्री० [सं० विधि+हिं० रानी] ब्रह्मा की पत्नी, सरस्वती।				 | 
			
			
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					विधिलोक					 :
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					पुं० [सं०] ब्रह्मलोक।				 | 
			
			
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					विधिवत्					 :
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					अव्य० [सं०] १. विधिपूर्वक। विधितः २. जिस प्रकार होना चाहिए उसी प्रकार।				 | 
			
			
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					विधि-वधू					 :
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					स्त्री० [सं०] ब्रह्मा की पत्नी, सरस्वती।				 | 
			
			
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					विधि-वादपद					 :
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					पुं० [सं०] विधिक क्षेत्रों में वह वादपद जिसका संबंध व्यवहार या मुकदमे के केवल विधिक या कानूनी पक्ष से हो। तथ्य वादपद से भिन्न (इश्यू आप लॉ)।				 | 
			
			
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					विधि-वाहन					 :
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					पुं० [सं०] ब्रह्मा की सवारी, हंस।				 | 
			
			
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					विधिविहित					 :
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					वि० [सं० तृ० त०] शास्त्रीय विधियों आदि में कहा या बतलाया हुआ। विधि में जैसा विधान हो, वैसा।				 | 
			
			
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					विधिषेध					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] विधि और निषेध।				 | 
			
			
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