शब्द का अर्थ
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वज्र :
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वि० [सं०√वज् (गति)+रन्] १. बहुत अधिक कठोर। बहुत कड़ा या सख्त। २. बहुत अधिक उग्र या तीव्र। जैसे–वज्राग्नि। ३. जिस पर सहसा और किसी प्रकार का प्रभाव न पड़ सकता हो। बहुत बढ़ा-चढ़ा। जैसे–वज्र मूर्ख। वज्र बधिर। पुं० १. पुराणानुसार भाले के फल के समान एक शस्त्र जो इन्द्र का प्रधान अस्त्र कहा गया है,और जो दधीचि ऋषि की हड्डियों से बनाया गया था। कुलिश। २. आकाश से गिरनेवाली बिजली। क्रि० प्र०–गिरना। पड़ना। मुहावरा–वज्र पड़े=ईश्वर के प्रकोप से सर्वनाश हो (स्त्रियों का शाप) ३. बौद्ध साधकों और सिद्धों की परिभाषा में, शून्य अर्थात् परम तत्व की संज्ञा जो उसकी अभेद्यता, दृढ़ता आदि गुणों के आधार पर उसे दी गई थी। ४. उक्त के आधार पर बौद्धों में चक्राकार चिन्ह की संज्ञा। ५. फलित ज्योतिष में २२ व्यतीतपात योगों में से एक व्यतीतपात योग। ६. वास्तु-कला में ऐसा खंभा जिसके बीच का भाग अठकोना हो। ७. पुराणानुसार विष्णु के चरण का एक चिह्र। ८. श्रीकृष्ण के पोते और अनिरूद्ध के पुत्र का नाम। ९. हीरा। १॰. फौलाद नाम का लोहा। ११. बरछा। भाला। १२. अबरक। १३. कोकिलाक्ष वृक्ष। १४. सफेद कुश। १५. काँजी। १६. धात्री। धौ। १७. थूहड़। सेहुँड़। १८. अकलबीर नाम का पौधा। १९. वज्रपुष्प। |
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वज्र-कंटक :
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पुं० [सं० ब० स०] १. थूहड़-सेहुंड़। २. कोकिलाक्ष वृक्ष। |
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वज्र-कंद :
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पुं० [सं० ब० स०] १. जंगली सूरन। २. शकर कंद। ३. ताड़ के पेड़ का फूल। |
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वज्रक :
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पुं० [सं० वज्र+कन्] १. हीरा। २. वज्रक्षार। ३. सूर्य का एक उपग्रह। ४. वैद्यक में चर्मरोग के लिए विशेष प्रकार से तैयार किया जानेवाला तेल। |
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वज्र-कांति :
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स्त्री० [सं० ब० स०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। |
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वज्र-कालिका :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] बुद्ध की माता माया देवी का एक नाम। |
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वज्र-कीट :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार की कीड़ा जो पत्थर को काटकर उसमें छेद कर देता है। बनरोहू। |
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वज्र-कूट :
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पुं० [सं० ष० त०] हिमालय की एक चोटी। |
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वज्र-केतु :
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पुं० [सं० ब० स०] मार्कडेय पुराण के अनुसार एक राक्षस जो नरक का राजा था। |
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वज्र-क्षार :
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पुं० [सं० मध्य० स०] वैद्यक में एक रसौषध जिसका व्यवहार गुल्म, शूल, अजीर्ण, शोध तथा मंदाग्नि आदि उदर रोगों से होता है। |
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वज्र-गोप :
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पुं० [सं०] वीर बहूटी नाम की कीड़ा। इंद्रगोप। |
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वज्र-ज्वाला :
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स्त्री० [सं०] कुंभकर्ण की पत्नी का नाम। |
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वज्र-डाकिनी :
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स्त्री० [सं०] महायान शाखा के तांत्रिक बौद्धों की उपास्य डाकिनियों का एक वर्ग, जिसके अन्तर्गत ये आठ डाकिनियाँ कही गई है-लास्या, माला, गीता, नृत्या, पुष्पा, धूपा, दीपा और गंधा। इसकी पूजा तिब्बत में होती है। |
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वज्र-तुंड :
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पुं० [सं० ब० स०] १. गणेश। २. गरूड। ३. गिद्ध। ४. मच्छड़। थूहड़। सेहुँड़। |
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वज्र-दंत :
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पुं० [सं० ब० स०] १. चूहा। २. सूअर। |
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वज्र-दंती :
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स्त्री० [सं० वज्र+दंत] एक प्रकार का पेड़ या पौधा। |
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वज्र-दंष्ट्र :
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पुं० [सं० ब० स०] इंद्रगोप नाम का कीड़ा। वीरबहूटी। |
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वज्र-द्रुम :
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पुं० [सं० उपमित० स०] थूहड़ का वृक्ष। सेहुंड़। |
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वज्र-धर :
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वि० [सं० ष० त०] वज्र धारण करनेवाला। पुं० १. इंद्र। वज्रयान के अनुसार गौतम बुद्ध का एक रूप जिसमें वे अपनी प्रबल शक्ति से साधनों में लगे रहते हैं। ३. वह बौद्ध सिद्ध जो वज्र धारण करनेवाला अर्थात् कमल-कुलिश साधना में पारंगत होता था। ४. उल्लू। |
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वज्र-धारक :
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वि० [सं० ष० त०] वज्र धारण करनेवाला। पुं० ऊँची इमारतों पर लगाया जानेवाला एक विशेष प्रकार का यंत्र या धातु का टुकड़ा जो लोहे के तार से जमीन से जुड़ा होता है और जो आकाश से गिरनेवाली बिजली को जमीन के अन्दर ले जाता है और इस प्रकार बिजली के कुप्रभाव से इमारत को बचाता है। तड़ित-संवाहक (लाइटनिंग एरेस्टर)। |
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वज्र-नख :
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पुं० [सं० ब० स०] नृसिंह। |
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वज्र-पतन :
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पुं० [सं० ष० त०] वज्रपात। |
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वज्र-पाणि :
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पुं० [सं० ब० स०] १. इन्द्र। २. ब्राह्मण। ३. एक बोधिसत्व। |
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वज्र-पात :
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पुं० [सं० ष० त०] १. आकाश से बिजली गिरना। २. उक्त बिजली के गिरने से होनेवाला क्षय या नाश। ३. किसी प्रकार का भीषण अनिष्ट या नाश। |
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वज्र-बाहु :
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पुं० [सं० ब० स०] १. इन्द्र। २. रुद्र। ३. अग्नि। |
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वज्र-भृत् :
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पुं० [सं० वज्र√भृ (धारण)+क्पि, तुक्, आगम] इंद्र। |
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वज्र-भैरव :
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पुं० [सं० उपमित० स० या मध्य० स०] बौद्धों की महायान शाखा के एक देवता जिन्हें भूटान में ‘यमांतक शिव’ कहते हैं। इनके अनेक मुख और हाथ कहे गये हैं। |
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वज्र-मणि :
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पुं० [सं० मयू० स०] हीरा। |
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वज्र-मुष्टि :
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पुं० [सं० ब० स०] १. इंद्र। २. जंगली सूरन। ३. बाण चलाने के समय की एक विशेष हस्तमुद्रा। |
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वज्र-यान :
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पुं० [सं० उपमित० स०] बौद्ध धर्म का वह रूप जिसमें देवता, मंत्र, गुह्य साधना, अभिचार आदि तांत्रिक प्रवृत्तियों की प्रधानता है। विशेष—आरंभिक बौद्ध साधक शून्य को ही परमतत्व मानकर उसकी उपासना करते थे, और इसीलिए उसे वज्र (देखें) कहते थे क्योंकि उसमें भी वज्र की सी अभेद्यता और कठोरता थी इसी आधार पर इस साधना मार्ग का यह नाम पड़ा था। |
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वज्र-यानी (निन्) :
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वि० [सं० वज्रयान+इनि] वज्रयान सम्बन्धी। वज्रयान का। पुं० बौद्धों के वज्रयान पन्थ का अनुयायी। |
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वज्र-रद :
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पुं० [सं० ब० स०] सूअर। |
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वज्र-राग :
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पुं० [सं० उपमित० स०] वज्रयानी साधना में, करुणा के कारण उत्पन्न होनेवाला सांसारिक राग (यही राग जब आगे बढ़कर महामुद्रा के प्रति अनुरक्त होता है,तब महाराग कहलाता है)। |
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वज्र-लेप :
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पुं० [सं० उपमित० स०] लेप के काम आनेवाला ऐसा मसाला जिसका लेप करने से दीवार, मूर्ति आदि बहुत मजबूत हो जाती है। |
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वज्र-धारक :
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पुं० [सं० ष० त०] १. जैमिनी, सुमंत, वैशंपायन, पुलस्त्य और पुलह इन पाँचों ऋषियों का स्मरण जो वज्रपात के निवारण के लिए किया जाता है। २. दे० ‘वज्रधारक’। |
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वज्र-वाराही :
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स्त्री० [सं०] १. बुद्ध की माता माया देवी का एक नाम। २. बौद्धों की एक देवी। |
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वज्र-व्यूह :
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पुं० [सं० उपमित० स०] एक प्रकार की सैनिक व्यूह रचना जो दुधारी खड्ग के आकार की होती है। |
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वज्र-शल्य :
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पुं० [सं० ब० स०] साही (जंतु)। |
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वज्र-शाखा :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] जैन मत के अन्तर्गत एक सम्प्रदाय जिसका प्रवर्तन वज्रस्वामी ने किया था। |
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वज्र-श्रृंखला :
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स्त्री० [सं० ब० स०] सोलह महाविद्यालयों में से एक (जैन)। |
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वज्र-संघात :
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पुं० [सं० ष० त०] १. भीमसेन। २. वास्तु-रचना में, पत्थर जोड़ने का एक मसाला जिसमें आठ भाग सीसा, दो भाग काँसा और एक भाग पीतल होता था। |
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वज्र-समाधि :
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स्त्री० [सं० उपमित० स०] बौद्ध धर्म के अनुसार एक प्रकार की समाधि। |
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वज्र-सार :
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वि० [सं० ष० त०] अत्यन्त कठोर। पुं० हीरा। |
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वज्र-हस्त :
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पुं० [सं० ष० त०] इंद्र। वि० जिसके हाथ में वज्र या बहुत ही भीषण अस्त्र हो। |
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वज्र-हृदय :
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वि० [सं० ब० स०] १. (व्यक्ति) जिसका हृदय अत्यन्त कठोर हो। २. बेरहम। |
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वज्रांग :
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पुं० [सं० वज्र-अंग, ब० स०] १. हनुमान। २. साँप। |
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वज्रांगी :
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स्त्री० [सं० वज्रांग+ङीष्] १. कौडिल्ला (पक्षी) २. हड़जोड़ी नामक लता जिसकी पत्तियाँ बाँधने पर दरद दूर हो जाता है (वैद्यक)। |
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वज्रा :
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स्त्री० [सं०√वज्र (गति)+रक्-टाप्] १. दुर्गा। २. स्नही। थूहर। ३. गुड़च। |
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वज्राख्य :
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पुं० [सं० वज्र-आख्या, ब० स०] एक प्रकार का बहुमूल्य पत्थर। |
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वज्राघात :
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पुं० [सं० वज्र-आघात, ष० त०] १. आकाश से गिरनेवाली बिजली का आघात। २. बहुत ही कठोर तथा बड़ा आघात। ३. बिजली के तार आदि का स्पर्श होने पर लगनेवाला आघात। |
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वज्राचार्य :
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पुं० [सं० वज्र-आचार्य, ष० त०] नैपाली बौद्धों के अनुसार तान्त्रिक बौद्ध आचार्य जिसे तिब्बत में लामा कहते हैं। यह गृहस्थ होता है और अपनी स्त्री आदि के साथ बिहार में रह सकता है। |
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वज्राभ :
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पुं० [सं० वज्र-आभा, ब० स०] एक कीमती पत्थर। |
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वज्राभ :
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पुं० [सं०] काला अभ्रक। |
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वज्रायुध :
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पुं० [सं० वज्र-आयुध, ब० स०] इंद्र। |
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वज्रासन :
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पुं० [सं० वज्र-आसन, मध्य० स०] १. हठयोग के चौरासी आसनों में से एक जिसमें गुदा और लिंग के मध्य के स्थान को बाएँ पैर की एड़ी से दबाकर उसके ऊपर दाहिना पैर रखकर पलथी लगाकर बैठते हैं। २. गया में बोधिद्रुम के नीचेवाली वह शिला जिस पर बैठकर बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त किया था। |
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वज्रजित् :
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पुं० [सं० वज्रिन√जि (जीतना)+क्विप्स, तुक्, आगम] गरुड़। |
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वज्री (ज्रिन्) :
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पुं० [सं० वज्र+इनि०] १. इंद्र। २. उल्लू। ३. बौद्ध। संन्यासी। |
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वज्रेश्वरी :
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स्त्री० [सं० वज्र-ईश्वरी, ष० त०] १. एक देवी। (बौद्ध)। २. एक प्रकार का तान्त्रिक अनुष्ठान जिसे वज्रवाहनिका भी कहते हैं। इसमें वज्र बनाकर मन्त्रों द्वारा अभिषेक पूजन और हवन करते हैं। कहते है कि इसमें शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। |
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वज्रोली :
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स्त्री० [सं०] उंगलियों की एक विशिष्ट मुद्रा (हठयोग) |
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