शब्द का अर्थ
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बुद्धि :
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स्त्री० [सं०√बुध्+क्ति्न] १. शरीर का वह तत्त्व या शक्ति जिसके द्वारा किसी चीज या बात के विषय में आवश्यक ज्ञान प्राप्त होता है और जिसकी सहायता से तर्क वितर्क-पूर्वक सब प्रकार के अन्तर-सम्बन्ध आदि समझ में आते हैं। ज्ञान या बोध प्राप्त करने और निश्चय विचार आदि करने की शक्ति। अक्ल। समझ। मनीषा घी। विशेष—दार्शनिक दृष्टि से यह मन में भिन्न तत्त्व या शक्ति है। हमारे यहाँ इसे अन्तःकरण की चार वृत्तियों में से एक वृत्ति माना है, पर पाश्चात्य विद्वान् इसका अधिष्ठान मस्तिष्क में मानते हैं। सांख्यकार ने इसे २५ तत्वों के अन्तर्गत दूसरा तत्त्व माना है। २. एक प्रकार का छंद जिसके चारों पदों में कम से १६, १४, १४, १३, मात्राएँ होती है। इसे लक्ष्मी भी कहते हैं। ३. उक्त वृत्त का चौदहवा भेद जिसे सिद्धि भी करते हैं। ४. छप्पय छंद का ४२ वाँ भेद। |
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समानार्थी शब्द-
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बुद्धि-कृत :
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भू० कृ० [तृ० त०] सोच-समझकर किया हुआ। |
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बुद्धि-कौशल :
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पुं० [ष० त०] १. बहुत ही समझ-बूझकर तथा ठीक ढंग से काम करने की कला। २. चतुराई। |
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बुद्धि-गम्य :
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वि० [तृ० त०] बुद्धि के द्वारा जिसे जाना या समझा जा सकता हो। |
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बुद्धि-ग्राह्य :
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वि० [तृ० त०] बुद्धि द्वारा ग्रहण किये जाने के योग्य। जिसे बुद्धि ठीक मान सके। |
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बुद्धि-चक्षु (स्) :
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पुं० [ब० स०] धृतराष्ट्र। |
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बुद्धिजीवी (विन्) :
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वि० [सं० बुद्धि√जीव् (जीना)+णिनि] १. बुद्धि-पूर्वक काम करनेवाला। विचारशील। २. जिसकी जीविका दिमागी कामों से चलती हो। जैसे—वकील, मंत्री आदि। |
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बुद्धितत्त्व :
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पुं०=दे० ‘महत्त्व’। (सांख्य) |
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बुद्धि-दौर्बल्य :
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पुं० [सं०] बुद्धि के बहुत ही दुर्बल होने की अवस्था, भाव या रोग। बालिश्य (एमेन्शिया) |
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बुद्धिद्यूत :
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पुं० [तृ० त०] शतरंज का खेल। |
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बुद्धि-पर :
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वि० [पं० त० ] जो बुद्धि की पहुँच से परे हो। |
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बुद्धि-प्रामाण्य-वाद :
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पुं० [ष० त०] यह सिद्धान्त कि वही बात ठीक मानी जानी चाहिए जो बुद्धि-ग्राह्य हो। |
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बुद्धि-भ्रंश :
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पुं० [ष० त० या ब० स०] दे० ‘मनोभ्रंश’। |
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बुद्धिमत्ता :
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स्त्री० [सं० बुद्धि+मतुप्+तल्, टाप्] बुद्धिमान होने की अवस्था या भाव। समझदारी। अक्लमंदी। |
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बुद्धिमानी :
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स्त्री० [हिं० बुद्घिमान्+ई (प्रत्य०)] १. बुद्धिमान् होने की अवस्था या भाव। बुद्धमत्ता। २. बुद्धिमान् का किया हुआ कोई कार्य। |
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बुद्धि-मोह :
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पुं० [ष० त०] वह स्थिति जिसमें बुद्धि कुछ गड़बड़ा तथा चकरा गई हो। |
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बुद्धि-योग :
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पुं० [ष० त०] पर-ब्रह्य के साथ होनेवाला बौद्धिक संपर्क। |
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बुद्धि-वाद :
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पुं० [ष० त०] १. यह दार्शनिक मत या सिद्धान्त कि मनुष्य को समस्त ज्ञान बुद्धि द्वारा ही प्राप्त होते है। (इन्टलेकचुअलिज्म) २. आज-कल यह मत या सिद्धान्त कि धार्मिक आदि विषयों में वही बातें मानी जानी चाहिए जो बुद्घि और युक्ति की दृष्टि से ठीक सिद्ध हों। (रैशनलिज़्म) |
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बुद्धिवादी (दिन्) :
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वि० [सं० बुद्धि√वद् (बोलना)+णिनि, दीर्घ, नलोप] बुद्धि-वाद सम्बन्धी। पुं० बुद्धिवाद का अनुयायी। (इन्टलेकचुअलिस्ट) |
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बुद्धि-विलास :
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पुं० [ष० त०] १. बौद्धिक कामों में लगकर मन बहलाना। २. कल्पना। |
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बुद्धिशाली (लिन्) :
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वि० [सं० बुद्धि√शाल् शोभित होना+णिनि] बुद्धिमान्। |
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बुद्धि-शील :
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वि० [ब० स०] बुद्धिमान्। |
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बुद्धि-सख :
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पुं० [ब० स०] १. मंत्री। २. परामर्शदाता। |
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बुद्धि-सहाय :
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पुं० [स० त०] १. मंत्री। वजीर। २. परामर्शदाता। |
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बुद्धि-हत :
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वि० [ब० स०] जिसकी बुद्धि नष्ट या भ्रष्ट हो हई हो। |
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बुद्धिहा (हन्) :
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वि० [सं० बुद्धि√हन् (मारना)+क्विप्, दीर्घ, नलोप] (पदार्थ) जो बुद्घि का नाश करता हो। जैसे—मदिरा। |
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बुद्धि-हीन :
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वि० [तृ० त०] [भाव, बुद्घिहीनता] जिसमें बुद्धि न हो। निर्बुद्धि। |
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