शब्द का अर्थ
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पिपीलिक :
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पुं०=पिपीलक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिका :
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स्त्री० [सं० पिपीलक+टाप्, इत्व] १. च्यूँटी या चींटी नाम का छोटा कीड़ा। २. च्यूँटियों की तरह एक के पीछे एक चलने की प्रवृत्ति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिका भक्षी (क्षिण) :
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पुं० [सं० पिपीलिका√भक्ष् (खाना)+ णिनि] दक्षिण अफ्रीका का एक जंतु जिसका बहुत लंबा थूथन और बहुत बड़ी जीभ होती है। इसके दाँत नहीं होते यह अपने पंजों से चीटियों के बिल खोदता है और उन्हें खाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिका-मार्ग :
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पुं० [ष० त०] योग की साधना में से दो मार्गो में से एक जिसके द्वारा साधक क्रमशः धीरे-धीरे आगे बढ़ता और षट् चक्रों को बेधता हुआ अपने प्राण ब्रह्माण्ड तक पहुँचाता है। इसकी तुलना में दूसरा अर्थात् विहंगम मार्ग (देखें) श्रेष्ठ समझा जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिकोद्वाप :
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पुं० [पिपीलिका-उद्वाप, ष० त०] वल्मीक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिक :
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पुं०=पिपीलक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिका :
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स्त्री० [सं० पिपीलक+टाप्, इत्व] १. च्यूँटी या चींटी नाम का छोटा कीड़ा। २. च्यूँटियों की तरह एक के पीछे एक चलने की प्रवृत्ति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिका भक्षी (क्षिण) :
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पुं० [सं० पिपीलिका√भक्ष् (खाना)+ णिनि] दक्षिण अफ्रीका का एक जंतु जिसका बहुत लंबा थूथन और बहुत बड़ी जीभ होती है। इसके दाँत नहीं होते यह अपने पंजों से चीटियों के बिल खोदता है और उन्हें खाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिका-मार्ग :
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पुं० [ष० त०] योग की साधना में से दो मार्गो में से एक जिसके द्वारा साधक क्रमशः धीरे-धीरे आगे बढ़ता और षट् चक्रों को बेधता हुआ अपने प्राण ब्रह्माण्ड तक पहुँचाता है। इसकी तुलना में दूसरा अर्थात् विहंगम मार्ग (देखें) श्रेष्ठ समझा जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिपीलिकोद्वाप :
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पुं० [पिपीलिका-उद्वाप, ष० त०] वल्मीक। |
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समानार्थी शब्द-
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