| शब्द का अर्थ | 
					
				| द्वादश					 : | वि० [सं० द्वि-दशन्, मध्य० स०] १. जो संख्या में दस और दो हो। बारह। २. क्रम के विचार से बारह के स्थान पर पड़नेवाला। बारहवाँ। पुं० बारह का सूचक अंक या संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।—१२। | 
			
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				| द्वादशक					 : | वि० [सं० द्वादस+कन्] बारहवें स्थान पर पड़नेवाला। बारहवाँ। | 
			
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				| द्वादश-कर					 : | वि० [ब० स०] जिसके बारह हाथ हों। पुं० १. कार्तिकेय। २. कार्तिकेय के एक अनुचर। ३. बृहस्पति। | 
			
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				| द्वादश-बानी					 : | वि०=बारहवानी (खरा)। | 
			
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				| द्वादश-भाव					 : | पुं० [मध्य० स०] फलित ज्योतिष में जन्म कुंडली के बारह घर जिनके नाम क्रम से तनु, धन आदि फलानुसार रखे गये हैं। | 
			
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				| द्वादश-रात्र					 : | पुं० [द्विगु० स०] बारह दिनों में पूरा होनेवाला एक यज्ञ। | 
			
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				| द्वादश-वर्गी					 : | स्त्री० [द्विगु० स० ङीष्] क्षेत्र, होरा आदि बारह वर्गों का समूह जिसके आधार पर ग्रहों का बलाबल जाना जाता है। (फलित ज्यो०)। | 
			
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				| द्वादश-वार्षिक					 : | वि० [सं० द्वादश-वर्ष द्विगु० स०+ठक्—इक] बारह वर्षों में होनेवाला। पुं० एक प्रकार का व्रत जो ब्रह्म हत्या करने पर उसके पाप से मुक्ति पाने के लिए बारह वर्षों तक जंगल में रहकर किया जाता था। | 
			
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				| द्वादश-शुद्धि					 : | स्त्री० [मध्य० स०] वैष्णव संप्रदाय में तंत्रोक्त बारह प्रकार की शुद्धियाँ। जैसे—देवता की परिक्रमा करने से होनेवाली पदशुद्धि, देवता को स्पर्श करने से होनेवाली हस्त-शुद्धि, नाम कीर्तन से होनेवाली वाक्य-शुद्धि, देव-दर्शन से होनेवाली नेत्र-शुद्धि आदि। | 
			
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				| द्वादशांग					 : | वि० [द्वादश-अंग, ब० स०] जिसके बारह अंग या अवयव हों। पुं० एक प्रकार की धूप जो गुग्गल, चंदन आदि बारह गंध द्रव्यों के योग से बनती हैं। | 
			
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				| द्वादशांगी					 : | स्त्री० [द्वादंश-अंगुल ब० स० ङीष्] जैनों के द्वादश अंग ग्रन्थों का समूह। | 
			
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				| द्वादशांगुल					 : | वि० [द्वांदश-अंगुल, ब० स०] १. जो नाप में बारह अंगुल हो। २. बारह उँगलियोंवाला। पुं० बारह अंगुल की माप। बित्ता। बालिश्त। | 
			
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				| द्वादशांशु					 : | पुं० [द्वादस-अंशु ब० स०] बृहस्पति। | 
			
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				| द्वादशाक्ष					 : | पुं० [द्वादश-अक्षि ब० स०] १. कार्तिकेय। वि० [सं०] जिसकी बारह आँखें हों। पुं० १. कार्तिकेय। २. गौतम बुद्ध। | 
			
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				| द्वादशाक्षर					 : | पुं० [द्वादश-अक्षर ब० स०] विष्णु का एक मंत्र जिसमें बारह अक्षर हैं और जो इस प्रकार हैं—ओं नमो भगवते वासुदेवाय। | 
			
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				| द्वादशाख्य					 : | पुं० [द्वादश-आख्या, ब० स०] बुद्धदेव। | 
			
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				| द्वादशात्मा (त्मन्)					 : | पुं० [द्वादश-आत्मन्, ब० स०] १. सूर्य। २. आक। मदार। | 
			
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				| द्वादशायतन					 : | पुं० [द्वादश-आयतन, मध्य० स०] पाँच ज्ञानेद्रियों, पाँच कर्मद्रियों तथा मन और बुद्धि इन बारह पूज्य स्थानो का समूह। (जैन) | 
			
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				| द्वादशाह					 : | पुं० [द्वादश-अहन् द्विगुस०] १. बारह दिनों का समूह। २. एक यज्ञ जो बारह दिनों में पूरा होता था। ३. मृतक के उद्देश्य से उसकी मृत्यु के बारहवें दिन किया जानेवाला श्राद्ध। | 
			
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				| द्वादशी					 : | स्त्री० [सं० द्वादश+ङीष्] चांद्रमास के किसी पक्ष की बारहवीं तिथि। | 
			
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