शब्द का अर्थ
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दाल :
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स्त्री० [सं० दालि] १. अरहर, उरद, चना, मसूर, मूँग आदि अन्न जिनके दाने अन्दर से दो दलों में विभक्त होते हैं, और जिन्हें उबाल कर खाते हैं, या जिनसे पकौड़ी, बरी आदि बनाते हैं। क्रि० प्र०—दलना। मुहावरा—(किसी की) दाल गलना=किसी का प्रयोजन सिद्ध होना। मतलब निकलना। जैसे—ये बातें किसी और से करना यहाँ तुम्हारी दाल नहीं गलेगी। २. हलदी, मसाला आदि के साथ पानी में उबाला हुआ कोई उक्त दला हुआ अन्न जो भात, रोटी आदि के साथ सालन की तरह खाया जाता है। पद—दाल-दलिया, दाल-रोटी। (देखें) मुहावरा—दाल चप्पू होना=एक का दूसरे से उसी प्रकार गुथ या लिपट जाना जिस प्रकार बरतन में दाल निकालने के समय चप्पू (कलछी) के साथ लिपट जाती है। दाल में कुछ काला होना=ऐसी अवस्था होना जिससे खटके या संदेह की कोई बात हो। जूतियों दाल बाँटना=आपस में खूब लड़ाई-झगड़ा और थुक्का-फजीहत होना। ३. चेचक, फोड़े, फुन्सी आदि के ऊपर का चमड़ा जो सूखकर छूट जाता है। खुरंड। पपड़ी। क्रि० प्र०—छूटना।—बँधना। ४. सूर्यमुखी शीशे में से होकर आयी हुई किरणों की वह गोलाकार छाया जो दाल के आकार की हो जाती है और जिससे आग पैदा होने लगती है। मुहावरा—दाल बँधना=धूप में रखे हुए सूर्यमुखी शीशे का ऐसी स्थिति में होना कि उसकी किरणों का समूह एक केन्द्र में स्थित होकर दाल का का-सा रूप बना दें। ५. अंडे की जरदी (अपने पीले रंग और द्रव रूप के कारण) पुं० [सं० दल+अण्] १. पेड़ के खोंडर में मिलनेवाला शहद। २. कोदों नाक कदन्न। पुं० [?] पंजाब और हिमालय मे होनेवाला तुन की जाति का एक पेड़ जिसकी लकडी बहुत मजबूत होती है। |
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दालचीनी :
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स्त्री०=दारचीनी। |
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दाल-दलिया :
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पुं० [हिं०] गरीबों के खाने का रूखा-सूखा भोजन। जैसे—जो कुछ दाल-दलिया मिल जाय, वही खाकर गुजर कर लेते हैं। |
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दालन :
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पुं० [सं०√दल् (नाश करना)+णिच्+ल्युट्—अन] दाँत का एक रोग। |
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दालना :
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स०=दलना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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दालभ्य :
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पुं०=दाल्भ्य। |
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दाल-मोठ :
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स्त्री० [हिं० दाल+मोठ=एक कदन्न] घी, तेल आदि में तली तथा नमक, मिर्च लगी हुई मोठ (अथवा चने मूँग या मसूर आदि) की दाल जिसकी गिनती नमकीन खानों में होती है। |
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दाल-रोटी :
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स्त्री० [हिं० पद] १. नित्य का साधारण भोजन। जैसे—किराए की आमदनी से ही उनकी दाल-रोटी चलती है। पद—दाल-रोटी से खुश=जिसे साधारण भोजन मिलने में कोई कष्ट न होता हो। २. जीविका या उसका साधन। मुहावरा—दाल-रोटी चलना=जीविका निर्वाह होना। |
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दालव :
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पुं० [सं०√दल् (दलन करना)+उन्, दलु+अण्] एक तरह का स्थावर विष। |
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दाला :
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स्त्री० [सं०√दल्+घञ् (कर्मणि)+टाप्] महाकाल नामक लता। |
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दालान :
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पुं० [फा०] किसी भवन या मकान के अन्तर्गत वह लंबी वास्तु-रचना जिसके तीन ओर दीवारें, ऊपर छत और सामनेवाला भाग बिलकुल खुला होता है। बरामदा। |
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दालि :
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स्त्री० [सं०√दल्+इन्, नि० सिद्धि] १. दाल। २. देवदाली लता। ३. अनार। दाड़िम। |
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दालिद :
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पुं०=दारिद्र्य। (दरिद्रता)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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दालिम :
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पुं० [सं० दाडिम, नि० लत्व] दाड़िम। अनार। |
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दाली :
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स्त्री० [सं० दालि+ङीष्] देवदाली नामक पौधा। |
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दाल्भ्य :
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वि० [सं० दल्भ+यञ्] दल्भ ऋषि के गोत्र का। पुं० वृक मुनि का दूसरा नाम। |
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दाल्मि :
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पुं० [सं०√दल् (नाश करना)+णिच्+मि (बा०)] इंद्र। |
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