शब्द का अर्थ
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तंत :
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पुं० [सं० तंतु] १. तंतु। ताँत। २. निरन्तर चलता रहनेवाला क्रम। ३. सूत्र। ४. किसी बात के लिए मन में होनेवाली ऐसी उतावली जो लगन या लौ की सूचक हो। ५. प्रबल इच्छा या कामना। ६. अधीनत। वश। क्रि० प्र०–लगना। ७. दे० तंतु। पुं० [सं० तंत्र] १.ऐसा बाजा जिसमें बजाने के लिए ताल लगे होते हैं। जैसे–बीन, सितार आदि। २. क्रिया। ३. तंत्र-शास्त्र। ४. किसी के अधीन या वशवर्ती होना। वि० जो तौल में ठीक या बराबर हो। पुं०=तत्त्व।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तंत-मंत :
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पुं०=तंत्र-मंत्र। |
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तंतरी :
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पुं० वि०=तंत्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तंति :
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स्त्री० [सं०√तंन् (विस्तार)+क्तिन्] १. डोरी। तांत। अथवा इसी तरह की कोई और वस्तु। २. कतार। पंक्ति। ३. विस्तार। ४. गाय। गौ। ५. बुनकर। जुलाहा। |
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तंतिपाल :
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पुं० [सं० तंति√पाल् (पालन)+णिच्+अण्] १. सहदेव का वह नाम जिससे वह अज्ञातवास के समय विराट के यहाँ प्रसिद्ध थे। २. गौओं का पालन और रक्षा करनेवाला व्यक्ति। |
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तंतिसर :
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पुं० [सं० तंत्री स्वर] ऐसे बाजे जिसमें बजाने के लिए तार लगे हों। जैसे–सारंगी सितार आदि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तंतु :
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पुं० [सं०√तंन् (विस्तार)+तुन्] १. ऊन, रेशम, सूत आदि का बटा हुआ डोरा। तागा। २. सूत की तरह के वे पतले लंबे रेशे जिनके योग से प्राणियों, वनस्पतियों आदि के भिन्न-भिन्न अंग बने होते हैं। ३. धातु का वह विशिष्ट प्रकार का बहुत ही महीन तार जो बिजली के लट्टुओं, निर्वात नलियों आदि में लगा रहता है और जो विद्युतधारा से तपकर चमकने और प्रकाश देने लगता है। (फिलामेन्ट) ४. पौधों का वह पतला अंग जो आस-पास की टहनियों आदि से अगकर चक्कर खाता हुआ उनका आश्रय लेता रहे। ५. मकड़ी का छाता पद–तंतु कीट।(दे०) ६. चमडे की बटी हुई डोरी। ताँत। ७. अष्ट-पाद जाति की मछली जो बहुत ही घातक और हिंसक होती है। ८. फैलाव। विस्तार। ९. बाल-बच्चे। औलाद। संतान। १॰. किसी प्रकार की परम्परा। निरंतर चलनेवाला क्रम। जैसे–वंश या यज्ञ का तंतु। पुं०-तंत्र।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तंतुक :
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पुं० [सं० तंतु√कै (प्रतीत होना)+क] १. सरसों। २. रस्सी। |
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तंतुका :
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स्त्री० [सं० तंतुक+टाप्] नाड़ी। |
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तंतुकाष्ठ :
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पुं० [मध्य० स०] जुलाहों की एक प्रकार की लकड़ी या ब्रुश जिससे ताना साफ किया जाता है। तूली। |
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तंतुकी :
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स्त्री० [सं० तंतुक+ङीष्] नाड़ी। |
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तंतुकीट :
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पुं० [मध्य० स०] १. मकड़ी। २. रेशम का कीड़ा। |
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तंतु-जाल :
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पुं० [ष० त०] शरीर के अन्दर जाल के रूप में फैली हुई नसें। (वैद्यक)। |
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तंतुण, तंतुन :
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पुं० [सं०√तंन्+तुनन्] मगर नामक जल-जंतु। |
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तंतु-नाग :
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पुं० [उपमि० स०] मगर नामक जल-जंतु। |
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तंतु-नाभ :
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पुं० [ब० स० अच्] मकड़ा। |
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तंतु-निर्यास :
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पुं० [ब० स०] ताड़ का वृक्ष। |
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तंतु-पर्व(न्) :
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पुं० [ब० स०] तागा अर्थात् राखी बाँधने का पर्व। रक्षा-बंधन। |
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तंतुभ :
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पुं० [सं० तंतु√भा (प्रकाशित होना)+क] १. सरसों। २. गौ का बच्चा। बछड़ा। |
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तंतुमत् :
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पुं०=तंतुमान्। |
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तंतुमान्(मत्) :
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पुं० [सं० तंतु+मतुप्] अग्नि। आग। |
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तंतुर :
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पुं० [सं० तंतु+र] कमल की जड़। भसीड़। मृणाल। |
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तंतुल :
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पुं० [सं० तंतु√लच्] मृणाल। कमलनाल। |
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तंतुवादक :
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पुं० [सं० ष० त०] वह व्यक्ति जो तार वाले बाजे (जैसे–सारंगी, सितार आदि) बजाता हो। |
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तंतुवाप :
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पुं० [सं० तंतु√वप् (बुनना)+अण्] दे० ‘तंतुवाक्य’। |
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तंतुवाय :
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पुं० [सं० तंतु√वेञ् (बुनना)+अण्] १. कपड़े बुननेवाला। जुलाहा। ताँती। बुनकर। २. मकड़ी। |
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तंतुविग्रह :
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स्त्री० [ब० स०] केले का पेड़। |
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तंतु-शाला :
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स्त्री० [मध्य० स०] १. वह स्थान जहाँ तंतु बनाये जाते हों। २. वह स्थान जहाँ कपड़े बुने जाते हों। |
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तंतु-सार :
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पुं० [ब० स०] सुपारी का पेड़। |
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तंत्र :
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पुं० [सं०√तंन् (विस्तार)+ष्ट्रन] १. डोरा या सूत। तंतु। २. चमड़े की डोरी। ताँत। ३. जुलाहा। ४. कपड़े बुनने की सामग्री। ५. कपड़ा। वस्त्र। ६. काम। कार्य। ७. प्रबंध। व्यवस्था। ८. कारण। वजह। ९. उपाय। युक्ति। १॰. दल। समूह। ११. आनन्द। प्रसन्नता। १२. घर। मकान। १३. धन-संपत्ति। १४. कोटि। वर्ग। श्रेणी। १५. उद्देश्य। १६. कुल। वंश। १७. कसम। शपथ। १८. कायदा। नियम। १९. सजावट। २॰. औषध। दवा। २१. प्रमाण सबूत। २२. अधिकार। स्वत्व। २३. अधीनता। परवशता। २४. निश्चित सिद्धान्त। २५. वह पद जिस पर रहकर किसी कर्त्तव्य का पालन किया जाता है। २६. ऐसा प्रबन्ध या व्यवस्था जिसके अनुसार घर-गृहस्थी, राज्य, समाज आदि का नियंत्रण और संचालन किया जाता है। २७. राज्य और उसके अंतर्गत काम करने वाले सभी राजकीय कर्मचारी। २८. व्यवस्था, शासन आदि करने की कोई निश्चित या विशिष्ट प्रणाली या रीति। जैसे–हिन्दू राज-तंत्र, पाश्चात्य समाज तंत्र। ३॰. हिन्दुओं का प्रसिद्ध शास्त्र जो शिव-प्रोक्त कहा जाता है और जिसमें शिव तथा शक्ति की उपासना, पूजन आदि के द्वारा कुछ प्रकार की क्रियाओं और मंत्रों से अनेक प्रकार के लौकिक तथा पारलौकिक उद्देश्य सिद्ध करने के विधान है। विशेष–इस शास्त्र का मुख्य सिद्धान्त यह है कि कलियुग में वैदिक मंत्रों, यज्ञों आदि का नहीं बल्कि तांत्रिक उपासना, विधि और यंत्र-मंत्रों का ही अनुष्ठान होना चाहिए। सब प्रकार के अभिचार, झाड-फूँक पुरश्चरण, भैरवी चक्र-पूजन, उच्चाटन, मारण, मोहन आदि षटकर्म इसी तंत्रसास्त्र के अन्तर्गत आते हैं। यह मुख्यतः शाक्तों का प्रधान शास्त्र है और उसके मंत्र प्रायः एकाक्षरी और अर्थहीन होते हैं। बौद्धों ने हिन्दुओं से यह शास्त्र लेकर चीन तथा तिब्बत में इसका विशेष प्रचार तथा विकास किया था। आधुनिक विद्वान इसे डेढ़ दो हजार वर्षों से अधिक पुराना नहीं मानते। |
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तंत्रक :
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पुं० [सं० तंत्र+कन्] नया कपड़ा। |
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तंत्रकार :
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पुं० [सं०] बाजा बजानेवाला। |
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तंत्रण :
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पुं० [सं०√तंत्र् (शासन करना)+ल्युट-अन] १. किसी को अपने तंत्र या शासन में रखना। २. तंत्र के अनुसार चलना या चलाना। |
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तंत्रता :
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स्त्री० [सं० तंत्र+तल्-टाप्] १. किसी तंत्र के अनुसार होनेवाली व्यवस्था। २. ऐसी योग्यता या स्थिति जिसमें एक काम करने पर उसके साथ और भी कई काम आसरे आप हो जायँ। |
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तंत्रधारक :
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पुं० [ष० त०] यज्ञ आदि कार्यों में वह व्यक्ति जो कर्म-कांड की पुस्तक लेकर याज्ञिक आदि के साथ बैठता हो। |
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तंत्र-मंत्र :
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पुं० [द्व० स०] तंत्र शास्त्र के विधानों के अनुसार किये जानेवाले अभिचार, पुरचरण आदि कृत्य। |
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तंत्र युक्ति :
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स्त्री० [ष० त०] सुश्रुत संहिता के अनुसार वह युक्ति जिसके द्वारा किसी वाक्य का आशय समझा जाय। ये २८ प्रकार की कही गई हैं। |
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तंत्रवाय :
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पुं० [सं० तंत्र√वप् (बुनना)+अण्] १. तंतुवाय। ताँती। जुलाहा। २. मकड़ी। ३. ताँत। |
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तंत्रसंस्था :
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स्त्री० [सं० ष० त०] वह संस्था जो तंत्र अर्थात् शासन करती हो। |
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तंत्रस्कंद :
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पुं० [सं०] ज्योतिष सास्त्र का वह अंग जिसमें गणित के द्वारा ग्रहों की गति आदि का निरूपण होता है। गणित ज्योतिष। |
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तंत्रस्थिति :
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स्त्री० [ष० त०] राज्य के शासन की प्रणाली। |
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तंत्र-होम :
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पुं० [तृ० त०] तंत्र शास्त्र के अनुसार होनेवाला होम। |
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तंत्रा :
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स्त्री० [सं०√तंत्र+अ+टाप्] तंद्रा। |
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तंत्रायी(यिन्) :
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पुं० [सं० तंत्र√इ (गति)+णिनि] सूर्य। |
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तंत्रि :
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स्त्री० [सं०√तंत्र+इ] १. तंत्री। २. तंद्रा। |
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तंत्रिका :
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स्त्री० [सं० तंत्री+कन्-टाप्, हृस्व] १. गुडूची। गुरुच। २. ताँत। |
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तंत्रिपाल :
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पुं० [सं० तत्रि√पाल्+णिच्+अण्] तंतिपाल (दे०)। |
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तंत्रि-पालक :
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पुं० [सं० ष० त०] जयद्रथ का एक नाम। |
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तंत्री :
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पुं० [सं० तंत्र+ङीष्] १. वह जो बाजों आदि की सहायता से गाने-बजाने का काम करता हो। २. गवैया। संगीतज्ञ। ३. सैनिक। वि० १. तंत्र-संबंधी। २. जिसमें पतार लगे हों। ३. तंत्र-शास्त्र का अनुयायी। ४. जो किसी तंत्र के अधीन हो। ५. परवश। पराधीन। स्त्री० [सं०√तंन्त्र+ई] १. बीन, सितार आदि बाजों में लगा हुआ तार। २. ऐसे बाजे जिनमें बजाने के लिए तार लगे हो। ३. ताँत। ४. डोरी। रस्सी। ५. शरीर के अन्दर की नस। ६. वीणा। बीन। ७. एक प्राचीन नदी का नाम। ८. गुड्ची। गुरूच। |
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तंत्री-मुख :
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पुं० [ब० स०] तंत्र में हाथ की एक मुद्रा। |
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