शब्द का अर्थ
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डाक :
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स्त्री० [हिं० डाँकना] १. डाँकने की क्रिया या भाव। २. सवारी का ऐसा प्रबन्ध जिसमें हर पड़ाव पर बराबर जानवर या यान आदि बदले जाते हों। मुहावरा–डाक बैठना=शीघ्र यात्रा के लिए स्थान-स्थान पर सवारी बदलने की चौकी नियत करना। डाक लगना=(क) शीघ्र संवाद पहुँचाने या यात्रा करने के लिए मार्ग में स्थान-स्थान पर आदमियों या सवारियों का प्रबन्ध होना। (ख) किसी चीज के आने या जाने का क्रम बराबर चलता रहना। डाक लगाना=डाक बैठाना। ३. पत्रों, बंडलों आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने की सरकारी व्यवस्था। ४. उक्त व्यवस्था द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने या पहुँचाया जानेवाला पत्र या सामग्री। स्त्री० [अनु०] कै। वमन। स्त्री० [सं० डक्क या बं० डाकिबा] १. पुकार। २. नीलाम की बोली। पुं० [अं०] बंदरगाह का वह विशिष्ट अंश जहाँ जहाजों पर का माल लादा उतारा जाता है। गोदी। |
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समानार्थी शब्द-
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डाक-गाड़ी :
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स्त्री० [हिं०] वह रेल-गाड़ी जो साधारण गाड़ियों से बहुत तेज चलती है केवल बड़े-बड़े स्टेशनों पर रुकती है तथा जिसमें डाक लाने ले जाने की भी व्यवस्था होती है। |
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डाकघर :
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पुं=डाकखाना। |
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डाक-चौकी :
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स्त्री० [हिं०] १. प्राचीन तथा मध्य काल में वह स्थान जहाँ कई स्थानों या प्रदेशों के हरकारे चिट्टियाँ लाते थे, तथा अन्य स्थानों से आई हुई चिट्टियाँ छांटकर ले जाते थे। २. वह स्थान जहाँ डाक के घोड़े, सवारियाँ आदि आगे जाने के लिए बदली जाती थी। |
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डाकना :
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स० [हिं० डाँकना] फाँदना। लाँघना। अ० कै करना। वमन करना। स० [हिं० डाक] १. पुकारना। २. नीलाम के समय दाम की बोली बोलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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डाक-बँगला :
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पुं० [हिं०] वह सरकारी भवन जो मुख्य रूप से दौरे पर जानेवाले सरकारी अधिकारियों के ठहरने के लिए बने होते हैं। |
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डाक-महसूल :
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पुं० [हिं० डाक+अ० महसूल] डाक के द्वारा कोई चीज भेजने का महसूल। |
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डाकर :
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पुं० [देश०] १. सूखे हुए तालों की चिटखी या सूखी मिट्टी। २. कड़ी किंतु उपजाऊ भूमि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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डाक-व्यय :
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पुं० [हिं० डाक+सं० व्यय] वह व्यय जो डाक द्वारा कोई चीज भेजने पर पड़ता हो। डाक-महसूल। |
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डाका :
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पुं० [हिं० डाकना-कूदना वा सं० दस्यु] दल-बल सहित बलपूर्वक तथा डरा-धमकाकर लूट-मार करने के लिए किया जानेवाला धावा। क्रि० प्र–पड़ना।–मारना। |
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डाकाजनी :
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स्त्री० [हिं० डाका+फा० जनी] डाके डालने का काम। |
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डाकिन :
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स्त्री=डाकिनी। |
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डाकिनी :
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स्त्री० [सं० ड(त्रास)√अक् (वक्रगति)+णिनि–ङीप्] १. एक पिशाची या देवी जो काली के गले में समझी जाती है। २. भूत-प्रेत योनि की स्त्री। |
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डाकिया :
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पुं० [हं० डाक+इया (प्रत्यय)] वह सरकारी कर्मचारी जो घर-घर डाक द्वारा आई हुई चिटियाँ आदि पहुँचाने का काम करता है। |
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डाकी :
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स्त्री० [हिं० डाक] वमन। कै। वि० [?] १. बहुत अधिक खानेवाला। २. प्रचंड। |
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डाकू :
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पुं० [हिं० डाकना या सं० दस्यु] वह व्यक्ति जो दूसरों के यहाँ पहुँचकर और उन्हें डरा-धमकाकर या मार-पीटकर उनसे अवैध रूप से धन छीन लेता हो। |
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डाकोर :
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पुं० [सं० ठक्कुर, हिं० ठाकुर] १. ठाकुर। देवता। २. विष्णु। भगवान। (गुजराती)। |
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डाक्टर :
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पुं० [अं०] १. किसी विद्या या विषय का आचार्य या पूर्ण पंडित। २. उक्त प्रकार के आचार्य या पूर्ण पंडित की उपाधि। ३. लोक व्यवहार में वह व्यक्ति जो पाश्चात्य शैली से रोगियों की चिकित्सा करता हो। ४. वह व्यक्ति जिसे उक्त प्रकार की उपाधि मिली हो। |
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डाक्टरी :
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स्त्री० [अं० डाक्टर+ई (प्रत्यय)] डाक्टर होने की अवस्था, पद या भाव। २. डाक्टर का काम या पेशा। ३. पाश्चात्य ढंग की चिकित्सा-प्रणाली या उसका शास्त्र। |
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डाक्तर :
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पुं०=डाक्टर। |
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