| शब्द का अर्थ | 
					
				| चिता					 : | स्त्री० [सं०√चि (चयन करना)+क्त-टाप्] १. क्रम से चुनकर रखी या सजाई हुई लकड़ियों का वह ढेर जिस पर मृत शरीर जलाये जाते हैं। चिति। चित्या। चैत्य। मुहावरा–चिता चुनना या सजाना=शव-दाह के लिए लकड़ियाँ क्रम से सजाकर रखना। चिता तैयार करना। चिता पर चढ़नामरने पर जलाये जाने के लिए चिता पर रखा जाना। (स्त्री का) चिता पर चढना=पति के शव के साथ उसकी चिता पर जलने के लिए जाकर बैठना। २. श्मशान। मरघट। | 
			
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				| चिताउनी					 : | स्त्री० १=चेतावनी। २.=चितवन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| चिताना					 : | स०=चेताना (देखें)। अ० [सं० चित्रण] चित्रित होना। उदाहरण–लता सुमन पशु पच्छि चित्र सौ चारू चिताए।–रत्नाकर। स०–चित्रित करना। | 
			
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				| चिता-प्रताप					 : | पुं० [ष० त०] जीते जी चिता पर रखकर जला देने का दंड। | 
			
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				| चिता-भूमि					 : | स्त्री० [ष० त०] मरघट। श्मशान। | 
			
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				| चितारना					 : | स० [सं० चिंतन] १. चित्त या मन में लाना। किसी ओर चित्त या ध्यान देना। उदाहरण–युगै चितारै भी चुगै चुगि चुगि चितारै।–कबीर। २. ध्यान में लाना। याद करना। उदाहरण–रे पपइया प्यारे कब को बैर चितारयौ।–मीराँ। स० चितरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| चितारी					 : | पुं०=चितेरा। | 
			
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				| चितारोहण					 : | पुं० [चिता-आरोहण, ष० त०] १. चिता पर जल मरने के उद्देश्य से चढ़कर बैठना। २. विधवा स्त्री का सती होने के लिए अपने पति के शव के साथ चिता पर बैठना। | 
			
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				| चितावनी					 : | स्त्री०=चेतावनी। | 
			
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				| चिता-साधन					 : | पुं० [ष० त०] चिता के पास या श्मसान पर बैठकर इष्ट सिद्धि के लिए मंत्र आदि जपना। (तंत्र)। | 
			
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