| शब्द का अर्थ | 
					
				| चवर-ढार					 : | पुं० [हिं० चँवर+ढारना] चँवर डुलानेवाला सेवक। | 
			
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				| चव					 : | वि०=चौ। पुं० १.=चौ। २.=चव्य। | 
			
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				| चवदसु					 : | वि० चौदह। स्त्री० चौदस (चतुर्दशी)। | 
			
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				| चवना					 : | अ० [सं० च्यवन] चूना। टपकना। स० चुआना या टपकाना। उदाहरण–लता विटप माँगे मधु चवहीं।–तुलसी। | 
			
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				| चवन्नी					 : | स्त्री० [हिं० चौ (चार का अल्पा)+आना+ई (प्रत्य०)] एक सिक्का जिसका मूल्य २५ नये पैसे अथवा पुराने चार आने के बराबर होता है। | 
			
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				| चवर					 : | पुं०=चँवर। | 
			
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				| चवरा					 : | पुं० [सं० चवल] लोबिया। पुं०=चौरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| चवर्ग					 : | पुं० [ष० त०] [वि० चवर्गीय] नागरी वर्णमाला के च से ञ तक के अक्षरों का समूह। | 
			
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				| चवल					 : | पुं० [सं०√चर्व् (चबाना)+अलच्, पृषो०] लोबिया। | 
			
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				| चवा					 : | स्त्री० [सं० चौ+वात] चारों ओर से एक साथ चलनेवाली वायु। उदाहरण–सुणि सुन्दरि संच्चउ चवा।–ढोलामारू। | 
			
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				| चवाइन					 : | स्त्री० ‘चवाई’ का स्त्री रूप। उदाहरण–जदपि चवाइन चीकनी चलति चहूँ दिसि सैन।–बिहारी। | 
			
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				| चवाई					 : | वि० [हिं० चवाव] [स्त्री० चवाइन] १. बदनामी की चर्चा फैलाने वाला। कलंकसूचक प्रवाद फैलानेवाला। २. दूसरों की बुराई करने वाला। निंदक। स्त्री० १. चारों ओर फैली हुई निंदा। २. झूठी अफवाह या खबर। | 
			
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				| चवाउ					 : | पुं०=चवाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| चवायनि					 : | स्त्री० चवाइन। | 
			
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				| चवालीस					 : | वि० चौवालीस। | 
			
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				| चवाव					 : | पुं० [हिं० चौवाई] १. चारों ओर फैलनेवाली चर्चा। प्रवाद। अफवाह। २. उक्त प्रकार की निंदा। | 
			
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				| चवि					 : | स्त्री० [सं०√चर्व् (चबाना)+इन्, पृषो० सिद्धि]=चविका। | 
			
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				| चविक					 : | पुं० [सं० चवि+कन्] एक प्रकार का पेड़। | 
			
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				| चविका					 : | स्त्री० [सं० चविक+टाप्] चव्य नाम की ओषधि। | 
			
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				| चवैया					 : | पुं०=चवाई। | 
			
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				| चव्य(का)					 : | पुं० [सं०√चर्व+ण्यत्, पृषो० चव्य+कन्-टाप्] चाब नाम की ओषधि। दे० ‘चाव’। | 
			
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				| चव्यजा					 : | स्त्री० [सं० चव्य√जन् (उत्पत्ति)+ड-टाप्] गजपीपल। | 
			
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				| चव्या					 : | स्त्री० [सं० चव्य+टाप्]=चव्य। | 
			
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