| शब्द का अर्थ | 
					
				| चमार					 : | पुं० [सं० चर्मकार; प्रा० चम्मारअ; बँ० चामार; उ० ने० चमार, सि० चमारु, सिंह० सोम्मारु, पं० चम्यार; मरा० चांभार] १. एक जाति जो चमड़े के जूते, मोट आदि बनाती तथा उनकी मरम्मत करती है। २. एक जाति जो गलियों आदि में झाड़ू देती है। ३. उक्त जातियों का पुरुष। ४. नीच प्रकृतिवाला आदमी। | 
			
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				| चमारनी					 : | स्त्री०=चमारी। | 
			
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				| चमारिन					 : | स्त्री०=चमारी। | 
			
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				| चमारी					 : | स्त्री० [हिं० चमार] १. चमार जाति की स्त्री। २. गलियों में और सड़कों पर झाड़ू देनेवाली स्त्री। ३. चमार का काम या पेशा। ४. चमारों की सी वृत्ति या स्वभाव। वि० १. चमार संबंधी। चमार का। २. चमारों की तरह का। स्त्री० [?] कमल का वह फूल जिसमें कमलगट्टे के जीरे खराब हो जाते हैं। | 
			
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