| शब्द का अर्थ | 
					
				| चतुष्क					 : | वि० [सं० चतुर+कन्] जिसके चार अंग या पार्श्व हों। चौपहल। पुं० १. चार वस्तुओँ का वर्ग या समूह। २. वास्तु में एक प्रकार का चौकोर मकान। ३. एक प्रकार की छड़ी या डंडा। | 
			
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				| चतुष्कर					 : | पुं० [सं० चतुर-कर, ब० स०] वह जंतु जिसके चारों पैरों के आगे के भाग हाथ के समान हों। पंजेवाले जानवर। जैसे–बंदर। वि० जिसके चार हाथ हों। | 
			
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				| चतुष्करी(रिन्)					 : | वि० [सं० चतुर-कर, द्विगुस+इनि] चतुष्कर। | 
			
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				| चतुष्कर्ण					 : | वि० [सं० चतुर-कर्ण, ब० स०] (बात) जिसे चार कान अर्थात् दो ही आदमी जानते हों। | 
			
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				| चतुष्कर्णी					 : | स्त्री० [सं० चतुष्कर्ण+ङीष्] कार्तिकेय की अनुचरी एक मातृका। | 
			
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				| चतुष्कल					 : | वि० [सं० चतुर-कला, ब० स०] चार कलाओं या मात्राओं वाला। जिसमें चार कलाएँ या मात्राएँ हों। जैसे–छन्दः शास्त्र में चतुष्कल गण, संगीत में चतुष्कल ताल। | 
			
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				| चतुष्की					 : | स्त्री० [सं० चतुष्क+ङीष्] १. एक प्रकार की चौकोर पुष्करिणी। २. मसहरी। ३. चौकी। | 
			
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				| चतुष्कोण					 : | वि० [सं० चतुर-कोण, ब० स०] चार कोणोंवाला। चौकोर। चौकोना। जैसे–चतुष्कोण क्षेत्र। पुं० ज्यामिति में, वह क्षेत्र जिसमें चार कोण हों। (क्वाडैंगिल)। | 
			
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