शब्द का अर्थ
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चक्र :
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पुं० [सं०√क-(करना)+क, नि० द्वित्व] १, गाड़ी का वर्त्तुलाकार पहिया। विशेष दे० ‘चक्कर’। २. कुम्हार का चाक। ३. कोई वर्त्तुलाकार चीज। ४. छोटे पहिए के आकार का एक प्राचीन अस्त्र। ५. चक्की। ६. कोल्हू। ७. पानी का भँवर। ८. हवा का बवंडर। चक्रवात। ९. दल। समुदाय। १॰. एक प्रकार का सैनिक व्यूह। ११. गाँवों, शहरों का समूह। मंडल। १२. मंडलाकार घेरा। जैसे–राशि-चक्र। १३. ऐसे गोल या चौकोर खाने जो रेखाओं आदि से घिरे हों। जैसे–कुंडली चक्र। १४. सामुद्रिक में हाथ की वह रेखा जो गोलाई में घूमी हो। १५. समय की वह अवधि जिसमें कुछ निश्चित प्रकार की घटनाएँ आदि क्रमशः घटती अथवा अवस्थाएं बदलती हों और फिर उतने ही समय में जिनकी पुनरावृत्ति होती हो। (साइकिल) जैसे–अर्थशास्त्र में व्यापार चक्र। (ट्रेड साइकिल)। १६. फेरा चक्कर। १७. चकवा। १८. तगर का फूल। १९. योग के अनुसार मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर आदि शरीरस्थ कमल या पद्य। २॰. एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक फैला हुआ प्रदेश। आसमुद्रांत भूमि। २१. दिशा। प्रातं। २२. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक भगण, तीन नगण और अंत में लघु, गुरु होते हैं। २३. धोखा। २४. (क) शरीर विज्ञान या दैहिकी के अनुसार जीवधारियों के शरीर के अन्दर की वह रचना जो तंतु-जाल के रूप में होती और कुछ विशिष्ट प्रक्रियाएँ करती हैं। (प्लेक्सस) (ख) योग शास्त्र के अनुसार शरीर के उक्त विशिष्ट अंग जो आधुनिक विज्ञान वेत्ताओं के अनुसार कुछ विशिष्ट जीवनरक्षिणी और विकासकारिणी गिल्टियों के आस-पास पड़ते हैं।(प्लेक्सस)। विशेष-पहले इनकी संख्या ६ मानी गई थी जिससे ‘षट्-चक्र’ (दे०) पद बना, पर आगे चलकर हठ योग में जब इनकी संख्या ८. मानी गई जिससे ये अष्टचक्र या अष्टकमल (दे०) कहलाने लगे। और भी आगे चलकर कुछ लोगों ने इनमें ‘ललना-चक्र’ नामक नवाँ और ‘गुरु-चक्र’ नामक दसवाँ चक्र भी बढ़ा दिया है। २५. अपना संघटन दृढ़ करने के लिए राजनीतिक, सामाजिक आदि कार्य करनेवालों का किसी स्थान पर एकत्र होकर विचार-विनिमय प्रदर्शन करना। जमाव। (रैली)। २६. गुप्त रूप से कहीं आड़ में रहकर की जानेवाली कारवाई। अभिसंधि। जैसे–यह सारा चक्र आप ही का चलाया हुआ है। २७. (संख्या के विचार से) बंदूक, राइफल आदि से गोली चलाने की क्रिया। (राउण्ड) जैसे–पुलिस ने चार चक्र गोलियाँ चलाई। २८. धातु का एक विशेष प्रकार का टुकड़ा जो प्रायः सैनिकों को कोई वीरता-पूर्ण काम करने पर पदक या तमगे के रूप में दिया जाता है। जैसे–महावीर चक्र, वीर चक्र आदि। |
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चक्रक :
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पुं० [सं० चक्र√कै (प्रतीति होना)+क] १. नव्य न्याय में एक प्रकार का तर्क। २. एक प्रकार का साँप। वि० पहिये के आकार का। गोलाकार। |
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चक्र-कारक :
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पुं० [ष० त० ] १. नखी नामक गंध द्रव्य। २. हाथ के नाखून। |
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चक्र-कुल्या :
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स्त्री० [ष० त०] चक्रपर्णी लता। पिठवन। |
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चक्र-क्रम :
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पुं० [उपमि० स०] कुछ विशिष्ट घटनाओं का कई विशिष्ट अवसरों पर क्रमशः तथा बराबर रहने का क्रम। चक्र की तरह बार-बार घूमकर आनेवाला क्रम। (साइक्लिक आर्डर) जैसे–गरमी, बरसात और सरदी का चक्र क्रम। |
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चक्र-गज :
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पुं० [स० त०] चकवँड़। |
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चक्र-गति :
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स्त्री० [ष० त०] १. किसी केन्द्र के चारों ओर अथवा अपने ही अक्ष पर घूमने की क्रिया या भाव० २. दे० ‘चक्र क्रम’। |
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चक्र-गर्त्त :
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पुं०=चक्र-तीर्थ। |
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चक्र-गुच्छ :
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पुं० [स० त०] अशोक (वृक्ष)। |
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चक्र-गोप्ता(प्तृ) :
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पुं० [ष० त०] १. सेनापति। २. राज्य का रक्षक अधिकारी। ३. रथ और उसके चक्र आदि की रक्षा करनेवाला योद्धा। |
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चक्र-चर :
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वि० [सं० चक्र√चर् (चलना)+ट, उप० स०] चक्कर या चक्र में चलनेवाला। पुं० तेली। |
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चक्र-जीवक :
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पुं० [सं० चक्र√जीव् (जीना)+ण्वुल्-अक, उप० स० त०] कुम्हार। |
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चक्र-जीवी(विन्) :
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पुं० [सं० चक्र√जीव्+णिनि, उप० स०] = चक्रजीवक। |
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चक्र-ताल :
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पुं० [मध्य० स०] संगीत में एक प्रकार का चौदह ताला ताल। |
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चक्रतीर्थ :
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पुं०[मध्य० स०] १. दक्षिण भारत का वह तीर्थ स्थान जहाँ ऋष्टमूक पर्वतों के बीच में तुंगभद्रा नदी घूमकर बहती हैं। २. नैमिषारण्य का एक सरोवर। |
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चक्र-तुंड :
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पुं० [ब० स०] गोल मुँहवाली एक प्रकार की मछली। |
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चक्र-दंड :
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पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार की कसरत जिसमें जमीन पर दंड करके झट दोनों पैर समेट लेते हैं और फिर दाहिने पैर को दाहिनी ओर और बाएँ पैर को बाई ओर चक्कर देते हुए पेट के पास लाते हैं। |
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चक्र-दंती :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. दंती वृक्ष। २. जमाल गोटा। |
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चक्र-दंष्ट्र :
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पुं० [ब० स०] सूअर। शूकर। |
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चक्रधर :
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वि० [सं० चक्र√धृ (धारण)+अच्, उप० स०] चक्र धारण करनेवाला। जिसके पास या हाथ में चक्र हो। पुं० १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. ऐंद्रजालिक। बाजीगर। ४. किसी छोटे भू-भाग का अधिकारी या शासक। ५. साँप। ६. गाँव का पुरोहित। ७. नटराग से मिलता जुलता षाडव जाति का एक राग जो संध्या समय गाया जाता है। |
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चक्रधारा :
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स्त्री० [ष० त०] चक्र की परिधि। |
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चक्रधारी(रिन्) :
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वि० पुं० [सं० चक्र√धृ (धारण)+णिनि, उप० स०]=चक्कर। |
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चक्र-नख :
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पुं० [ब० स०] व्याघ्र नख नामक ओषधि। बघनखा। |
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चक्र-नदी :
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स्त्री० [मध्य० स०] गंडकी नदी। |
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चक्र-नाभि :
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स्त्री० [ष० त०] पहिये का वह मध्य भाग जिसके बीच में से अक्ष या धुरा होकर जाता है। |
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चक्र-नाम :
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पुं० [ब० स०] १. माक्षिक धातु। सोनामक्खी। २. चकवा या चक्रवाक पक्षी। |
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चक्र-नायक :
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पुं० [ष० त०] व्याघ्र नख नाम की ओषधि। |
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चक्र-नेमि :
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स्त्री० [ष० त० ] पहिये का घेरा या परिधि। |
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चक्र-पर्णी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] पिठवन। |
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चक्र-पाणि :
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पुं० [ब० स०] हाथ में चक्र धारण करनेवाले विष्णु। |
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चक्र-पाद :
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पुं० [ब० स०] १. गाड़ी। रथ। २. हाथी। |
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चक्र-पादक :
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पुं० चक्रपाद (दे०)। |
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चक्र-पानि :
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पुं०=चक्रपाणि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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चक्र-पाल :
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पुं० [सं० चक्र√पाल् (रक्षा)+णिच्, उप० स०] १. वह जो चक्र धारण करे। २. किसी प्रदेश का शासक या सूबेदार। ३. गोल आकृति। वृत्त। ४. संगीत में शुद्ध राग का एक भेद। |
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चक्र-पूजा :
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स्त्री० [स० त०] १. तांत्रिकों की एक प्रकार की पूजा-विधि जिसमें बहुत से उपासक एक चक्र या मंडल के रूप में बैठकर तांत्रिक क्रियाएँ करते हैं। २. दे० ‘चरकपूजा’। |
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चक्र-फल :
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पुं० [ब० स०] एक प्राचीन अस्त्र जिसका फल गोलाकार होता था। |
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चक्र-बंध :
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पुं० [ब० स०] कविता-रचना का एक प्रकार जिसमें उसके शब्द खानों में भरे जाते हैं। |
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चक्र-बंधु :
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पुं० [ष० त० ] १. सूर्य। २. अँगूठी। ३. समूह। |
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चक्र-बांधव :
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पुं० [ष० त० ] चक्र-बंधु (दे०)। |
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चक्र-भृत् :
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पुं० [सं० चक्र√भृ (धारण)+क्विप्, उप० स०] १. चक्र नामक अस्त्र धारण करनेवाला व्यक्ति। २. विष्णु। |
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चक्र-भेदिनी :
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स्त्री० [सं० चक्र√भिद् (विदारण)√णिनि-ङीष्,उप० स०] रात्रि। रात। |
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चक्र-भोग :
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पुं० [ष० त०] ज्योतिष में ग्रह की वह गति जिसके अनुसार वह एक स्थान से चलकर फिर उसी स्थान पर पहुँचता है। |
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चक्र-भ्रम :
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पुं० [सं० चक्र√भ्रम् (घूमना)+अच्, उप० स०] खराद। |
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चक्र-भ्रमर :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार का नृत्य। |
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चक्र-मंडल :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार का नृत्य जिसमें नाचनेवाला किसी केन्द्र के चारों ओर नाचता हुआ घूमता है। |
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चक्र-मंडली(लिन्) :
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पुं० [सं० चक्र-मंडल, उपमि० स०+इनि] अजगर साँप की एक जाति। |
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चक्र-मर्द :
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पुं० [सं० चक्र√मृद् (मर्दन)+अण्, उप० स०] चकवँड़। |
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चक्र-मीमांसा :
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स्त्री० [ष० त०] वैष्णवों की चक्र-मुद्रा धारण करने की विधि। |
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चक्र-मुख :
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वि० [ब० स०] गोल मुँहवाला। पुं० सूअर। |
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चक्र-मुद्रा :
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पुं० [मध्य० स०] शरीर के विभिन्न अंगों पर दगवाया या लगवाया जानेवाला चक्र के आकार का चिन्ह्र। |
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चक्र-यंत्र :
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पुं० [उपमि० स०] ज्योतिष संबंधी वेध करने का एक प्रकार का यंत्र। |
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चक्र-यान :
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पुं० [मध्य० स०] ऐसी गाड़ी जिसमें पहिये लगे हों। |
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चक्र-रद :
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पुं० [ब० स०] सूअर। |
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चक्र-रिष्टा :
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स्त्री० [ब० स०] बक। बगला। |
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चक्र-लक्षणा :
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स्त्री० [ब० स०] गुरुच् या गुड्ची नामक लता। |
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चक्र-लिप्ता :
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स्त्री० [ष० त० ] ज्योतिष में राशि-वक्र का कलात्मक भाग अर्थात् २१ ६॰॰ भागों में से एक भाग। |
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चक्र-लेखित्र :
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पुं०[मध्य० स०(लेखित्र) ?] एक प्रकार का छोटा उपकरण जिसकी लेखनी की नोक पर लगे हुए छोटे से चक्र द्वारा एक विशेष प्रकार के कागज पर बनाये हुए अक्षरों की सहायता से किसी लेख आदि की प्रतिलिपियाँ तैयार की जाती है। (साइक्लोस्टाइल) |
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चक्र-वर्तिनी :
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स्त्री, [सं०चक्र√वृत्त (बरतना)+णिनि, ङीष्, उप० स०] १. किसी दल या समूह की अधीश्वरी। २. जनी या पानड़ी नाम का पौधा जिसकी पत्तियाँ सुगंधित होती हैं। |
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चक्र-वर्ती(र्तिन्) :
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वि० [सं०चक्र√वृत्+णिनि, उप० स०] [स्त्री० चक्र वर्तिनी] (राजा) जिसका राज्य बहुत दूर-दूर तक और विशेषतः समुद्र-तट तक फैला हो। सार्वभौम। पुं० १. ऐसा सम्राट जो दो समुदायों के बीच की सारी भूमि पर एकच्छत्र राज्य करता हो। २. किसी दल का अधिपति। समूह-नायक। ३. बथुआ (साग)। |
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चक्र-वाक :
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पुं० [सं० वाक√वच् (बोलना)+घञ्, ब० स०] [स्त्री० चक्रवाकी] चकवा पक्षी। |
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चक्रवाड़ :
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पुं०=चक्रवाल। |
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चक्र-वात :
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पुं० [सं० उपमि० स०] चक्कर खाती हुई बहुत तेज चलनेवाली हवा। बवंडर। (र्व्हल विंड)। |
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चक्रवान(वत्) :
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पुं० [सं० चक्र+मतुप्] पुराणानुसार चौथे समुद्र के बीच में स्थित माना जाना वाला एक पर्वत जहाँ विष्णु भगवान ने हयग्रीव और पंचजन नामक दैत्यों को मारकर चक्र और शंख दो आयुध प्राप्त किये थे। |
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चक्रवाल :
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पुं० [सं०] १. पुराणानुसार एक पर्वत जो भूमंडल के चारों ओर स्थित तथा प्रकाश और अंधकार (दिन-रात) का विभाग करनेवाला माना गया है। लोकालोक पर्वत। २. घेरा। मंडल। ३. चंद्रमा के चारों ओर दिखाई देनेवाला धुँधले प्रकाश का घेरा या मंडल। |
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चक्र-वृत्ति :
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स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः एक भगण, तीन नगण और अंत में लघु गुरु होते हैं। |
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चक्र-वृद्धि :
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स्त्री० [उपमि० स०] १. ऋण का वह प्रकार जिसमें मूल धन पर ब्याज देने के अतिरिक्त उस ब्याज पर भी ब्याज दिया जाता है जो किसी निश्चित अवधि तक चुकाया नहीं जाता। (कम्पाउंड इन्टरेस्ट) २. गाड़ी आदि भाड़ा। |
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चक्र-व्यूह :
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पुं० [मध्य० स०] १. युद्ध-क्षेत्र में किसी वस्तु या व्यक्ति को सुरक्षित रखने के लिए उसके चारों ओर असंख्य सैनिकों का किसी क्रम या सिलसिले से खड़े होने की अवस्था या स्थिति। २. सेना का ऐसे ढंग से युद्ध-क्षेत्र में खड़ा या स्थित होना कि शत्रु उन्हें सरलता से भेद न सके। |
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चक्र-शल्य :
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स्त्री० [ब० स०] सफेद घुँघची। २. काक-तुडी। कौआ, ठोठी। |
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चक्र-श्रेणी :
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स्त्री० [ब० स०] मेढ़ासीगी। |
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चक्र-संज्ञ :
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पुं० [ब० स०] १. वंग नामक धातु। राँगा। २. चकवा पक्षी। |
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चक्र-संवर :
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सं० [सं० चक्र-सम्√वृ (रोकना)+अच्, उप० स०] एक बुद्ध का नाम। |
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चक्र-हस्त :
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पुं० [ब० स०] विष्णु। |
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चक्राकं :
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पुं० [चक्र-अंक, ष० त०] विष्णु के चक्र का चिन्ह्र जो वैष्णव अपने शरीर के अंगों पर दगवाते हैं। |
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चक्राकं-पुच्छ :
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पुं० [ब० स०] १. मोर। २. मोर का पंख। उदाहरण–उन्मुक्त गुच्छ, चक्रांक-पुच्छू।-निराला। |
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चक्रांकित :
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वि० [चक्र-अंकित, तृ० त०] १. जिस पर चक्र का चिन्ह्र अंकित हो। २. (व्यक्ति) जिसने अपने शरीर पर चक्र का चिन्ह्र दगवाया हो। जिसने चक्र को छाप लीया हो। पुं० वैष्णवों का एक संप्रदाय जिसके लोग अपने शरीर पर चक्र का चिन्ह्र दगवाते हैं। |
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चक्रांग :
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पुं० [चक्र-अंग, ब० स०] १. चकवा पक्षी। २. गाड़ी या रथ। ३. हंस। ४. कुटकी नाम की ओषधि। ५. हिलमोचिका या हुलहुल नाम का साग। |
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चक्रांगा :
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स्त्री० [सं० चक्रांग+टाप्] १. काकड़ासिंगी। २. सुदर्शन नाम का पौधा या लता। |
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चक्रांगी :
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स्त्री० [सं० चक्रांग+ङीष्] १. कुटकी नाम की ओषधि। २. हंस की मादा। हंसिनी। ३. हुलहुल नाम का साग। ४. मजीठ। ५. काकड़ासिंगी। ६. मूसाकानी। |
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चक्रांत :
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पुं० [चक्र-अंत, ब० स०] गुप्त अभिसंधि। षड्यंत्र। |
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चक्रांतर :
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पुं० [सं० चक्रांक√रा (लेना)+क] एक बुद्ध का नाम। |
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चक्रांश :
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पुं० [चक्र-अंश, ष० त०] १. किसी चक्र का कोई अंश। २. चंद्रमा के चक्र का ३६॰ वाँ अंश। |
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चक्रा :
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स्त्री०[सं०चक्र+टाप्] १. नागरमोथा। २. काकड़ासिंगी। |
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चक्राक :
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पुं० [सं० चक्र√अक् (गति)+अच्] [स्त्री० चक्राकी०] हंस नामक पक्षी। |
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चक्राकार :
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वि० [चक्र-आकार, ब० स०] चक्र या पहिये के आकार का। मंडलाकार। |
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चक्राट :
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पुं० [सं० चक्र√अट् (गति)+अण्, उप० स०] १. साँप पकड़ने वाला। २. मदारी। ३. बहुत बड़ा चालाक या धूर्त। ४. सोने का दीनार नाम का सिक्का। |
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चक्रानुक्रम :
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पुं० [चक्र-अनुक्रम, उपमि० स०]=चक्र-क्रम। |
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चक्रायुध :
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पुं० [चक्र-आयुध, ब० स०] विष्णु। |
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चक्रावल :
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पुं० [सं०] १. घोड़ो का एक रोग जिसमें पैरों में घाव हो जाता है। २. उक्त रोग से होनेवाला घाव। |
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चक्राह्र :
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पु० [चक्र-आह्रान,ब० स०] १. चकवा पक्षी। चक्रवाक। २. चकवँड़। |
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चक्रिक :
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वि० [सं० चक्र+ठन्-इक] १. चक्र से युक्त। २. चक्र धारण करनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
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चक्रिका :
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स्त्री० [सं० चक्र+टाप्] घुटने की गोल हड्डी। चक्की। |
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चक्रित :
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वि०=चकित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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चक्री (किन्) :
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पुं० [सं० चक्र+इनि] १. वह जो चक्र धारण करे। २. विष्णु। ३. गाँव का पुरोहित। ४. कुम्हार। ५. कुंडली मारकर बैठनेवाला साँप। ६. चकवा पक्षी। ७. गुप्त-चर। जासूस। ८. तेली। ९. बकरा। १॰. चकवँड़। ११. तिनिश नामक वृक्ष। १२. कौआ। १३. व्याघ्र नख या बघनहाँ नामक ग्रंथद्रव्य। १४. गधा। १५. रथ का सवार। रथी। १६. चंद्रशेखर के मत से आर्याछंद का २२. वाँ भेद जिसमें ६ गुरु और ४५ लघु होते हैं। १७. एक प्राचीन वर्ण संकर जाति। १८. चक्रवर्ती राजा। वि० १. (गाड़ी आदि) जिसमें पहिया लगा हो। २. गोलाकार (वस्तु)। ३. चक्र धारण करने वाला (व्यक्ति)। |
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चक्रीय :
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वि० [सं० चक्र+छ-ईय] १. चक्र संबंधी। चक्र का। २. चक्रक्रम के अनुसार होनेवाला। (साइक्लिक)। |
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चक्रेश्वर :
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पुं० [चक्र-ईश्वर, ष० त०] १. चक्रवर्ती। २. तांत्रिकों में चक्र के अधिष्ठाता देवता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चक्रेश्वरी :
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स्त्री० [सं० चक्र-ईश्वरी, ष० त०] जैनों की एक महाविद्या। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |