| शब्द का अर्थ | 
					
				| चकल					 : | पुं० [हिं० चक्का](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. किसी पौधे को दूसरी जगह लगाने या खोदकर निकालने की क्रिया या भाव। २. वह मिट्टी जो उक्त प्रकार से पौधे को उखाड़कर दूसरी जगह ले जाने पर उसकी जड़ में लिपटी रहती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| चकलई					 : | स्त्री० [हिं० चकला] चकला (चौडा या सपाट) होने की अवस्था या भाव। विस्तार। | 
			
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				| चकला					 : | पुं० [सं० चक्र, हिं० चक+ला (प्रत्यय)] १. काठ, पत्थर, लोहे आदि का गोलाकार चिकना खंड जिस पर पूरी या रोटी बेली जाती है। २. वह भू-भाग जो एक ही तल में दूर तक फैला हो और जिसमें कई गाँव या बस्तियाँ हों। पद-चकलेदार (देखें)। ३. व्यभिचार करानेवाली वेश्याओं की बस्ती या मुहल्ला। ४. चक्की। वि० [स्त्री० चकली] अधिक विस्तारवाला। चौड़ा। जैसे–चकला मैदान। | 
			
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				| चकलाना					 : | स० [हिं० चकल] पौधे को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लगाने के लिए मिट्टी समेत उखाड़ना। चकल उठाना। स० [सं० चकला] चकला अर्थात् चौड़ा या विस्तृत करना। | 
			
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				| चकली					 : | स्त्री० [सं० चक्र, हिं० चक्र] १. छोटा चकला जिस पर चंदन आदि घिसते हैं। चौकी हिरसा। २. गड़ारी। घिरनी। | 
			
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				| चकलेदार					 : | पुं० [हिं० चकला+फा० दार] वह अधिकारी जो किसी चकले अर्थात् विस्तृत भू-भाग की मालगुजारी आदि वसूल करता और किसी की ओर से वहाँ की व्यवस्था तथा शासन करता था। | 
			
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				| चकल्लस					 : | स्त्री० [?] १. झगड़ा-बखेड़ा। २. मित्रों में होनेवाली हँसी-मजाक या हास-परिहास। | 
			
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