शब्द का अर्थ
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					घमंका					 :
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					पुं० [अनु०] १. आघात आदि से उत्पन्न होनेवाला घम् शब्द। २. घूँसा। मुक्का।				 | 
			
			
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					घमंड					 :
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					पुं० [?] अहं भावना का वह अनुचित तथा उग्र रूप जिसमें मनुष्य अपने बुद्धि-बल सामर्थ्य आदि को बहुत अधिक महत्व देता हुआ दूसरों को अपने सामने तुच्छ या नगण्य समझने लगना। अभिमान। शेखी। क्रि० प्र०-करना।-टूटना।–होना।				 | 
			
			
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					घमंडी					 :
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					वि० [हिं० घमंड] [स्त्री० घमंडिन] जिसे घमंड हो। घमंड करनेवाला।				 | 
			
			
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					घम					 :
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					पुं० [अनु०] कोमल तल पर कड़ा आघात लगने से उत्पन्न होनेवाला शब्द। जैसे–पीठ पर घम से मुक्का लगना।				 | 
			
			
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					घमकना					 :
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					अ० [अनु० घम] १. घम-घम शब्द होना। २. जोर का शब्द करना। गरजना। जैसे–बादलों का घमकना। स० १. घम-घम शब्द उत्पन्न करना। २. ऐसा आघात करना जिसमें घम शब्द हो। जैसे–मुक्का घमकना।				 | 
			
			
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					घमका					 :
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					पुं० [अनु०] १. आघात आदि से उत्पन्न होनेवाला घम शब्द। घमंका। २. दे० ‘उमस’।				 | 
			
			
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					घमकाना					 :
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					स० [हिं० घमकना] १. घम घम शब्द उत्पन्न करना २. बजाना।				 | 
			
			
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					घमखोर					 :
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					वि० [हिं० घाम+फा० खोर(खानेवाला)] १. घाम या धूप खानेवाला। २. जो धूप में रह सके या धूप सह सके।				 | 
			
			
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					घमघमा					 :
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					पुं० [हिं० घाम=धूप] दिन का ऐसा समय जिसमें धूप निकली हो।				 | 
			
			
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					घमघमाना					 :
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					अ० [अनु० घम घम] घम-घम शब्द होना। स० [अनु०] घम-घम शब्द उत्पन्न करते हुए कोई आघात या प्रहार करना। जैसे–दस-पाँच घूँसे या मुक्के घमघमाना।				 | 
			
			
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					घमर					 :
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					पुं० [अनु०] १. नगाड़े, ढोल आदि का भारी शब्द। २. गंभीर ध्वनि।				 | 
			
			
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					घमरा					 :
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					पुं० [सं० भृंगराज] भृंगराज नाम की बूटी। भँगरैया।				 | 
			
			
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					घमरौल					 :
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					स्त्री० [अनु० घम-घम] घाल-मेल की ऐसी स्थिति जिसमें किसी चीज या बात का कुछ भी पता न चले। बहुत बड़ी अव्यवस्था। गड़बड़ी।				 | 
			
			
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					घमस					 :
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					स्त्री० दे० ‘घमसा’।				 | 
			
			
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					घमसा					 :
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					पुं० [हिं० घाम] १. वर्षा काल की वह गरमी जोहवा न चलने के कारण होती है। उमस। २. घनापन। घनता।				 | 
			
			
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					घमसान					 :
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					वि० पुं०=घमासान।				 | 
			
			
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					घमाका					 :
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					पुं० [अनु० घम] भारी आघात से होनेवाला घम शब्द।				 | 
			
			
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					घमाघम					 :
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					क्रि० वि० [अनु०] घम-घम शब्द के साथ। भारी आघात करते हुए। जैसे–उसने घमाघम चार घूँसे लगा दिये। स्त्री०=घमाघमी।				 | 
			
			
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					घमाघमी					 :
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					स्त्री० [अनु०] १. निरंतर घम-घम होनेवाली ध्वनि या जोर का शब्द। २. गहरी या भारी मार-पीट। ३. ऐसी भीड़-भाड़ जिसमें खूब धक्कम-धक्का होता हो। ४.धूम-धाम।				 | 
			
			
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					घमाना					 :
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					अ० [हिं० घाम] सरदी से बचने के लिए घाम या धूप में बैठना। धूप खाना या सेंकना। स० सुखाने आदि के लिए कोई चीज धूप में रखना। धूप दिखाना।				 | 
			
			
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					घमायल					 :
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					वि० [हिं० घमाना] घाम या धूप की गरमी से पका हुआ (प्रायः फलों के लिए)				 | 
			
			
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					घमासान					 :
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					पुं० [अनु० घम+सान (प्रत्यय)] घोर और भीषण मार-काट अथवा युद्ध। गहरी और भारी लड़ाई। वि० बहुत ही घोर, भीषण या विकट (उपद्रव या मार-काट) जैसे–घमासान युद्ध।				 | 
			
			
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					घमाह					 :
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					पुं० [हिं० घाम] ऐसा बैल जो गरमी में हल जोतने से जल्दी थक जाता हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					घमीला					 :
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					वि० [हिं० घाम-धूप] घाम खाया हुआ। घाम से मुरझाया हुआ।				 | 
			
			
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					घमूह					 :
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					स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जो प्रायः करील आदि की झाड़ियों के पास होती और चारे के काम आती है।				 | 
			
			
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					घमोई					 :
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					स्त्री० [देश०] बाँस का एक प्रकार का रोग जिससे बाँस की जड़ों में बहुत से पतले और घने अंकुर निकलकर उसकी बाढ़ और नये किल्लों का निकलना रोक देते हैं। २. दे० ‘घमोय’।				 | 
			
			
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					घमोय					 :
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					स्त्री० [देश०] गोभी की तरह का एक छोटा पौधा जिसके पत्ते कटावदार तथा काँटों से भरे होते हैं। भड़भाड़। स्वर्णक्षीरी।				 | 
			
			
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					घमौरी					 :
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					स्त्री०=अँभौरी।				 | 
			
			
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					घम-निधि					 :
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					पुं०=सूर्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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