शब्द का अर्थ
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क्रय :
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पुं० [सं०√क्री (खरीदना)+अच्] मोल लेने या खरीदने की क्रिया या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
क्रयण :
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पुं० [सं०√क्री+ल्युट-अन] खरीदने का काम। खरीद। |
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क्रय-पंजी :
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स्त्री० [ष० त०] बही या रोजनामचा, जिसमें प्रतिदिन का खरीद का ब्योरा हो। (परचेजेज जर्नल) |
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क्रय-प्रपंजी :
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स्त्री० [ष० त०] वह बही, जिसमें क्रय पंजी से समय-समय पर खरीदी गई वस्तुओं का अलग-अलग विवरण तैयार किया जाता है। (परचेजेज लेजर) |
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क्रय-लेख्य :
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पुं० [ष० त०] खरीदने बेचने के प्रमाणस्वरूप लिखा जाने वाला लेख्य। बैनामा। (सेल डीड) |
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क्रय-लेख्यपत्र :
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पुं० [ष० त०] पदार्थ के क्रय-विक्रय का सूचक लेख्य। बैनामा। |
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क्रय-विक्रय :
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पुं० [द्व० स०] खरीदने और बेचने का कार्य या व्यापार। |
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क्रयविक्रयानुशय :
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पुं० [सं० क्रयविक्रय-अनुशय, स० त०] वह मुकदमा या विवाद जो चीजों के खरीदे या बेचे जाने की बातों से संबंध रखता हो। |
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क्रय-विक्रयिक :
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पुं० [सं० क्रय-विक्रय+ठन्-इक] चीजें खरीदकर बेचने वाला। रोजगारी। व्यापारी। |
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क्रयारोह :
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पुं० [क्रय-आरोह, ब० स०] वह स्थान जहाँ क्रय की हुई वस्तुएँ बेचने के लिए रखी जाती हैं। बाजार। हाट। |
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क्रयिक :
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वि० [सं० क्रय+इक] खरीदनेवाला। पुं० व्यवसायी। व्यापारी। |
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क्रयिभ :
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वि० [सं०] वस्तु के क्रय-विक्रय पर लगनेवाला कर (कौ०)। |
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क्रयी यिन :
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पु० [सं० क्रय+इनि] १. क्रय करने या खरीदनेवाला व्यक्ति। खरीददार। ग्राहक। २. व्यापारी। |
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क्रय्य :
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वि० [सं० क्री+यत्, नि० सिद्धि] (पदार्थ) जो खरीदा जाने को हो अथवा खरीदे जाने के योग्य हो। |
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