| शब्द का अर्थ | 
					
				| कंटक					 : | पुं० [सं० कंट्+ण्वुल्-अक] १. पेड़-पौधों आदि की डालियों में उगनेवाला ऐसा ठोस नुकीला किन्तु बारीक अंकुर, जो शरीर में चुभ सकता हो। काँटा। २. ऐसी वस्तु, जिसका सिरा नुकीला हो। ३. ऐसी वस्तु, जो लोगों के मार्ग में बाधा या रुकावट उत्पन्न करती हो। ४. कोई ऐसा कार्य या बात, जो दूसरों के सुख-सुभीते, स्वास्थ्य आदि में बाधक हो। दूसरों को कष्ट पहुँचानेवाली बात। (नूएजेन्स) ५. मछली फँसाने की एक प्रकार की टेढ़ी अँकुसी। ६. शरीर में होनेवाला रोमांच। | 
			
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				| कंटक-शोधन					 : | पुं० [ष० त०] १. शरीर आदि में चुभे या धंसे हुए कांटे बाहर निकालना। २. किसी प्रकार की बाधा विघ्न, रूकावट आदि या कोई कष्टदायक तत्त्व दूर करना। | 
			
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				| कंटकाकीर्ण					 : | वि० [सं० कंटक-आकीर्ण,तृ०त०] १. (मार्ग या रास्ता) जो काँटों से भरा हुआ हो। २. जिसमें बहुत-सी कष्ट-प्रद बाधाएँ हों। जैसे—राष्ट्रों की उन्नति (या स्वतंत्रता) का मार्ग बहुत कंटकाकीर्ण होता है। (थार्नी)। | 
			
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				| कंटकार					 : | पुं० [सं० कंटक√ऋ (गति)+अण्] १. शाल्मलि। सेमल। २. एक प्रकार का कीकर या बबूल। ३. कटेरी। भटकटैया। ४. एक प्रकार की मछली, जिसकी रीढ़ के काँटे अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करनेवाले होते हैं। (प्लोटोसस)। | 
			
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				| कंटकारिका					 : | स्त्री० [सं० कंटक√ऋ+ण्वुल्-अक-टाप्, इत्व]=कंटकार। | 
			
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				| कंटकाल					 : | पुं० [सं० कंटक√अल् (पर्याप्त)+अच्] १. कटहल। २. कांटों से घिरा या बना हुआ घर। | 
			
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				| कंटकित					 : | वि० [सं० कंटक+इतच्] १. काँटों से युक्त। काँटेदार। कँटीला। २. जिसके शरीर के बाल खड़े-खड़े हों० जैसे—साही। ३. जिसे रोमांच हुआ हो। | 
			
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				| कंटकिनी					 : | स्त्री० [सं० कंटक+इनि-ङीष्] भटकटैया। | 
			
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				| कंटकी (किन्)					 : | वि० [सं० कंटक+इनि] १. काँटेदार। २. कँटीला। स्त्री० [कंटक+ङीष्] १. एक प्रकार की छोटी मछली। कँटवा। २. खैर का पेड़। ३. मैनफल। ४. बाँस। ५. बार का पेड़। ६. गोखरू। ७. कोई काँटेदार पेड़। | 
			
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