गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान से अपनापन भगवान से अपनापनस्वामी रामसुखदास
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इस पुस्तक में श्रीरामसुखदास जी के द्वारा वृन्दावन में दिये गये कुछ कल्याणकारी प्रवचनों का संग्रह है।
प्रस्तुत हैं इसी पुस्तक के कुछ अंश
भगवान से अपनापन
वास्तव में हम सब परमात्मा के हैं और यह संसार भी परमात्मा का है; परन्तु
जब हम इस पर कब्जा करना चाहते हैं, इसको अपना मान लेते हैं, तब हम इससे
बँध जाते हैं। हमारी यह एक धारणा रहती है कि हमारे अधिकार में जितनी
वस्तुएँ और व्यक्ति आ जाएँगे, उतने हम बड़े बन जाएँगे, उन वस्तुओं और
व्यक्तिय़ों के मालिक बन जाएँगे; परन्तु यह धारणा बिलकुल गलत है
जिन रुपये, परिवार आदि को हम अपना मान लेते हैं, उनके हम पराधीन हो जाते हैं। परवश हो जाते हैं। वहम तो यह होता है कि हम उनके मालिक बन गये, पर बन जाते है उनके गुलाम यह बात खूब समझने की है, केवल सुनने-सुनाने की नहीं है। आप स्वयं विचार करें। जिन मकानों को आप अपने मकान मानते हैं, उन मकानों की ही आपको चिन्ता होती है। जिन मकानों को आप अपना नहीं मानते, उनकी चिन्ता आपको नहीं होती। जिस परिवार को आप अपना मानते हैं, उसके बनने-बिगड़ने का आप पर असर होता है; और जिसको आप अपना नहीं मानते, उसके बनने-बिगड़ने का आप पर असर नहीं होता। ऐसे ही रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद आदि वस्तुओं को आप अपनी मान लेते हैं, उनकी जिम्मेवारी, उनकी चिन्ता, उनके संचालन आदि का भार आप पर आ जाता है। जिनको आप अपना नहीं मानते, उनसे आपका बन्धन नहीं होता। इस युक्ति पर आप विचार करें।
जिन रुपये, परिवार आदि को हम अपना मान लेते हैं, उनके हम पराधीन हो जाते हैं। परवश हो जाते हैं। वहम तो यह होता है कि हम उनके मालिक बन गये, पर बन जाते है उनके गुलाम यह बात खूब समझने की है, केवल सुनने-सुनाने की नहीं है। आप स्वयं विचार करें। जिन मकानों को आप अपने मकान मानते हैं, उन मकानों की ही आपको चिन्ता होती है। जिन मकानों को आप अपना नहीं मानते, उनकी चिन्ता आपको नहीं होती। जिस परिवार को आप अपना मानते हैं, उसके बनने-बिगड़ने का आप पर असर होता है; और जिसको आप अपना नहीं मानते, उसके बनने-बिगड़ने का आप पर असर नहीं होता। ऐसे ही रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद आदि वस्तुओं को आप अपनी मान लेते हैं, उनकी जिम्मेवारी, उनकी चिन्ता, उनके संचालन आदि का भार आप पर आ जाता है। जिनको आप अपना नहीं मानते, उनसे आपका बन्धन नहीं होता। इस युक्ति पर आप विचार करें।
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