गीता प्रेस, गोरखपुर >> गीतावली गीतावलीगीताप्रेस
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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान् की बाललीला,भरत-मिलाप,जटायु-उद्धार, विभीषण-शरणागति, सीताजी की वियोग-व्यथा आदि सुललित और करुण भावों का बड़ा ही विशद और मर्मस्पर्शी वर्णन मिलता है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
श्रीराम
श्रीरघुनाथ-कथामृत-पोसित
काव्यकला रति-सी छबि छाई।
ताहि अनेकन भूषन भूषि
बरी तुलसी अति ही हरसाई।।
जीवत सो जुग जोरी खरी
हुलसी हुलसी अति मोद उछाई।
सो हुलसी के हिये को हुलास
हरै हमरे जियकी जड़ताई।।
काव्यकला रति-सी छबि छाई।
ताहि अनेकन भूषन भूषि
बरी तुलसी अति ही हरसाई।।
जीवत सो जुग जोरी खरी
हुलसी हुलसी अति मोद उछाई।
सो हुलसी के हिये को हुलास
हरै हमरे जियकी जड़ताई।।
निवेदन
गीतावली के द्वितीय संस्करण में सम्माननीय प्रो. श्रीविश्वनाथप्रसादजी
मिश्र एम.ए., साहित्य रत्न ने अनुवाद में कई जगह संशोधन करने की कृपा की
थी। तब से इसके कई संस्करण और हो गये और अब यह संशोधित संस्करण पाठकों के
हाथ में है। आशा है कि प्रेमी पाठक इसे भी पहले की भाँति ही अपनाने की
कृपा करेंगे।
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