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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अध्यात्मविषयक पत्र

अध्यात्मविषयक पत्र

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 987
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत पुस्तक में अध्यात्म पर पूछे गये प्रश्न तथा उनके उत्तर।

Adhyatmvishyak Patra-A Hindi Book by Jaydayal Goyandaka - अध्यात्मविषयक पत्र - जयदयाल गोयन्दका

प्रस्तुत हैं इसी पुस्तक के कुछ अंश


अध्यात्मविषयक पत्र


(1)

प्रेमपूर्वक हरिस्मरण आपका पत्र यथासमय मिल गया था। समय कम मिलने के कारण उत्तर देने में विलम्ब हुआ। आपके प्रश्नों का उत्तर नीचे लिखा जाता है।
(1)    भगवन्नामकौमुदी-जैसे प्रामाणिक ग्रन्थों में जो नाम की महिमा कही गयी है, वह मेरी समझ में झूठ नहीं है, परंतु वह साधारण मनुष्यों की समझ में नहीं आ सकती; क्योंकि अविश्वास के पर्दे के कारण उस प्रभाव से उनका सम्बन्ध नहीं होता। नाम के माहात्म्य में विश्वास न करना जब कौमुदीकार के मत में नामापराध है और नामापराध के कारण उसका फल नहीं होता, इस युक्ति से भी बिना विश्वास के लिये हुए नाम में समस्त पापों को नाश करने की शक्ति सिद्ध नहीं होती। ‘भगवान् के नाम में पापों को नाश करने की जितनी शक्ति है, उतने पाप करने में कोई पापी भी समर्थ नहीं है।’ यह बिलकुल ठीक है; परंतु इस माहात्म्य के आधार पर जान-बूझकर किये हुए पापों का नाश ‘नाम महाराज’ नहीं करते। वे यदि ऐसा करें तो नाम पापों का नाशक सिद्ध न होकर पाप करवाने वाला सिद्ध होगा। यह उक्ति प्रेम और निरन्तरता की शर्त पर न होने पर भी विश्वास की शर्त तो सबके साथ है ही।
गीता अध्याय 9, श्लोक 30 के कथनानुसार यह सिद्ध नहीं होता कि दुराचार एकदम छोड़ने पर ही नाम-जप सार्थक होता है—यह बिलकुल ठीक है।

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