उपन्यास >> राग दरबारी राग दरबारीश्रीलाल शुक्ल
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वे कॉलिज के फाटक से बाहर निकले। सड़क पर पतलून-कमीज पहने हुए एक आदमी आता हुआ
दीख पड़ा। साइकिल पर था। पास से जाते-जाते उसने प्रिंसिपल साहब को और प्रिंसिपल
साहब ने उसे सलाम किया। उसके निकल जाने पर क्लर्क ने पूछा, “यह कौन चिड़ीमार है
?"
"मलेरिया-इंसपेक्टर है...नया आया है। बी.डी.ओ. का भांजा लगता है। बड़ा फ़ितरती
है। मैं कुछ वोलता नहीं। सोचता हूँ, कभी काम आएगा।"
क्लर्क ने कहा, “आजकल ऐसे ही चिड़ीमारों से काम बनता है। कोई शरीफ़ आदमी तो कुछ
करके देता ही नहीं।"
थोड़ी देर तक दोनों चुपचाप सड़क पर चलते रहे। प्रिंसिपल ने अपनी बात फिर से
शुरू की, "हर आदमी से मेल-जोल रखना जरूरी है। इस कॉलिज के पीछे गधे तक को बाप
कहना पड़ता है।"
क्लर्क ने कहा, “सो तो देख रहा हूँ। दिन-भर आपको यही करते बीतता है।"
वे बोले, “बताइए, मुझसे पहले भी यहाँ पाँच प्रिंसिपल रह चुके हैं। कौनो बनवाय
पावा इत्ती बड़ी पक्की इमारत ?" वे प्रकृतिस्थ हुए, “यहाँ सामुदायिक केन्द्र
बनवाना मेरा ही बूता था। है कि नहीं ?"
क्लर्क ने सिर हिलाकर 'हाँ' कहा।
थोड़ी देर में वे चिन्तापूर्वक बोले, “मैं फिर इसी टिप्पस में हूँ कि कोई
चण्डूल फँसे तो इमारत के एकाध ब्लाक और बनवा डाले जाएँ।"
क्लर्क चुपचाप साथ-साथ चलता रहा। अचानक ठिठककर खड़ा हो गया। प्रिंसिपल साहब भी
रुक गए। क्लर्क बोला, "दो इमारतें बननेवाली हैं।"
प्रिंसिपल ने उत्साह से गरदन उठाकर कहा, “कहाँ ?"
“एक तो अछूतों के लिए चमड़ा कमाने की इमारत बनेगी। घोड़ा-डॉक्टर बता रहा था।
दूसरे, अस्पताल के लिए हैजे का वार्ड बनेगा। वहाँ जमीन की कमी है। कॉलिज ही के
आसपास टिप्पस से ये इमारतें बनवा लें...फिर धीरे-से हथिया लेंगे।"
प्रिंसिपल साहब निराशा से साँस छोड़कर आगे चल पड़े। कहने लगे, “मुझे पहले ही
मालूम था। इनमें टिप्पस नहीं बैठेगा।"
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