सिनेमा एवं मनोरंजन >> अचानक अचानकगुलजार
|
7 पाठकों को प्रिय 96 पाठक हैं |
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
साहित्य में ‘मंजरनामा’ एक मुक्कमिल फार्म है ! यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रूकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें ! लेकिन मंजरनामा का अंदाजे-बयाँ अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इंटरप्रेटेशन हो जाता है ! मंजरनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फार्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंजरनामे की शक्ल दी जाती है ! टी.वी. की आमद से मंजरनामों की जरूरत में बहुत इजाफा हो गया है ! गुलजार की लोकप्रिय फिल्म ‘अचानक’ उनकी सभी फिल्मों की तरह संवेदनशील और सधी हुई फिल्म है जिसको अपने वक्त में बहुत सराहा गया था ! दाम्पत्य-प्रेम, पति-पत्नी के बीच भरोसे और शक, भटकाव, प्रतिहिंसा और पश्चाताप की महीन नक्काशी इस फिल्म की विशेषता है ! इस पुस्तक में उसी फिल्म का मंजरनामा पेश किया गया है ! पाठकों को दर्शक में तब्दील कर देनेवाली एक प्रभावशाली प्रस्तुति !
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book