हास्य-व्यंग्य >> महापुरुष महापुरुषहरिपाल त्यागी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘साहित्य के व्यंग्यात्मक रूप को लंबे समय तक हल्के ढंग से लिया जाता रहा है। इसके लिए अधिक जिम्मेदार वे व्यंग्य-लेखक हैं, जो इसे हल्का-फुल्का मानकर लिखते रहे हैं। भाषा की बात छोड़ भी दें, अपने आस-पास के जीवन और विभिन्न समाजों के अंतर्विरोधों में दिलचस्पी लेने और दिलों में झाँक कर देखने वाले कितने हैं। थोड़े-बहुत उलट-फेर के साथ लिखित पुस्तकों से उठाई गई भाषा और उनमें से ही निकाली गई ‘रचनात्मकता’ कुछ देर के लिए रोब भले ही झाड़ ले, लेकिन बासी कढ़ी के छौंक-बघार कोई कितने दिन चलाएगा? अच्छा यही होगा, अपनी रोटी खुद कमा कर उसके स्वाद-गंध से दूसरों को भी परिचित बनाया जाए। अपनत्व और जुडाव तो तभी संभव होगा। संतोष यही है कि कुछेक लेखकों ने अपनी रचनात्मकता से हिंदी जगत को यथासमय संतुष्ट और समृद्ध भी किया है।’’
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