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गीता प्रेस, गोरखपुर >> बालचित्र रामायण सम्पूर्ण

बालचित्र रामायण सम्पूर्ण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 962
आईएसबीएन :81-293-0475-9

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प्रस्तुत है बालचित्र रामायण सम्पूर्ण....

BaalChitra Ramayan Sampoorna a hindi book by Hanuman Prasad Poddar - बालचित्र रामायण सम्पूर्ण - हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भगवान् श्रीरामचन्द्र हमारी भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो राम का नाम न जानता हो। छोटे बच्चे राम की जीवन-लीलाओं को जान लें तथा बोलचाल की बोली में लीला की तुकबंदी याद कर लें तो उनको सहज ही राम के जीवन की जानकारी हो सकती है और वे स्वयं पदों को बोलकर तथा दूसरों को सुनाकर आनन्द पा सकते हैं। उनके जीवन-निर्माण में भी इससे बड़ी सहायता मिल सकती है। इसी उद्देश्य से यह चित्रों में रामचरित्र छापा गया है। आशा है, इससे हमारे बालक लाभ उठायेंगे। इसमें लीला के 16 रंगीन चित्र हैं। किस चित्र में कौन-सी लीला है, यह उसके नीचे के पद में लिखा गया है।


होली पर्व 2010 वि.

हनुमानप्रसाद पोद्दार

बालचित्र रामायण सम्पूर्ण

नृप दशरथ की गोदी राम।  
कौशल्या की भरत ललाम।।
गोद सुमित्रा लक्ष्मण लाल।
शत्रु शमन कैकयी निहाल।।
अनमन राम दुखी सब माता।
आये गुरु वसिष्ठ सुखदाता।।
रक्षा बाँधि धरे सिर हाथ।
दीन्ह असीम मुदित रघुनाथ।।
जागहु लाल जाय बलि मैया।
जागीं चिड़िया जागीं गैया।।
बन्दी द्वार सुयश सब गावैं।
उठहु राम मैया सुख पावैं।।
भरत, शत्रुहन, लक्ष्मण राम।
खेल रहे नृप दशरथ-धाम।।
तीनों माता भर आनन्द।
देख रही हैं रघुकुलचन्द।।
मातु कौशिला शीश झुकाये।
हरि पूजे, नैवैद्य चढ़ाये।।
हाथ जोड़ माँगे वरदान।
राम सुखी हों, हे भगवान।।
मन्दिर भोजन करते राम।
मैया चकित देख यह काम।।
अभी पालने था पौढ़ाया।
कैसे लाल यहाँ चल आया।।
माता गई पालने पास।
सोये राम वहाँ सुख-रासि।।
माता चकित न जानै भेद।
इनका भेद न जानैं वेद।।
भरत शत्रुहन लक्ष्मण राम।
पढ़ने आये गुरुकुल धाम।।
रुचिर ब्रह्मचारीका वेष।
धन्य धन्य है भारत देश।।
चारों कुँवर चढ़ाये बाण।  
किया लक्ष्य पर शर सन्धान।।
धनुर्वेद की लेते शिक्षा।
यह क्षत्रिय की पावन दीक्षा।।
खल मारीच सुबाहु सताये।
विश्वामित्र महामुनि आये।।
राम लखन नृप हम कहँ दीजे।
राखैं यज्ञ जगत यश लीजै।।
पितु आज्ञा से श्रीरघुनाथ।
मुनि सँग गये अनुज के साथ।।
मार्ग मिली ताड़का कराल।
एक बाण से बींधा भाल।।
जला सुबाहू राक्षस नीच।
गिरा सिन्धु-तट जा मारीच।।
मारे गये दैत्य सब घोर।
मुनि मख राखा अवधकिशोर।।
राम लखन त्रिभुवन के भूप।
इनकी श्रद्धा अमल अनूप।।
जिनका ध्यान देवपति धरते।
वे गुरु की पद सेवा करते।।
शाप विवश वह गौतम नारी।
शिला अहिल्या थी बेचारी।।
राम चरण-पंकज-रज पाई।
मिटा शाप भई नारि सुहाई।।
राम लखन ये दोनों भाई।
देखत जनक नगर सुखदाई।।
लगे प्रेमबस बालक साथ।
सबका मन रखते रघुनाथ।।


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