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मालगुडी का मिठाई वाला

आर. के. नारायण

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9615
आईएसबीएन :9789350641088

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प्राचीनता व आधुनिकता के टकराव का, पुरानी व नई पीढियों के अंतराल का इस उपन्यास में यथार्थ व सजीव चित्रण है। कदम-कदम पर हास्य व व्यंग्य की विविध छटाएँ दर्शनीय हैं।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

साठ साल की उम्र में जगन आज भी अपने-आपको पूरी तरह जवान रखता है और कड़ी मेहनत से अपनी मिठाई की दुकान चलाता है, जिससे वह अच्छा-खासा मुनाफा भी कमा लेता है। आराम से चल रही जगन की ज़िंदगी में उथल-पुथल आ जाती है, जब उसका बेटा माली अमरीका से अपनी नवविवाहिता कोरियन पत्नी के साथ मालगुडी आता है और यहां से शुरू होता है दो पीढ़ियों के विचारों के बीच टकराव। भरपूर कोशिश करने के बाद भी जगन अपने पारम्परिक ख्यालों को नहीं बदल पाता और काम-धन्धे को छोड़कर धार्मिक कार्यों और यात्राओं की तरफ अपना मन लगाने की सोचता है और तभी यह खबर आती है कि उसका बेटा पुलिस की हिरासत में है और उसने अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया है। इस स्थिति से जगन कैसे निकलता है ? पढ़िये इस रोचक उपन्यास में जो आर. के. नारायण के अपने अनूठे ढंग में लिखा गया है।

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