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यौगिक एवं प्राकृतिक चिकित्सा

प्रखर प्रज्ञानन्द सरस्वती

प्रकाशक : हिन्दी सेवा सदन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :496
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9507
आईएसबीएन :818852199x

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आज का मनुष्य पहले की अपेक्षा अधिक अशान्त और असन्तुष्ट है। मनुष्य स्वयं कार्य न करके मशीनों द्वारा बैठे-बैठे ही सारे कार्य करने का प्रयास करता है। उसमें उसे कोई शारीरिक श्रम करना ही नहीं पड़ता। परिणामतः आम दैहिक तापों से पीड़ित है। वो अपने शरीर की आन्तरिक व्याधि से ही अनजान है। निरन्तर कार्य व्यक्ति को यह सोचने का समय नहीं देता कि क्या उसके लिये नुकसानदेह है जो उसके जीवन और उसकी आने वाली पीढ़ियों पर प्रभाव डाल रहा है। शारीरिक श्रम की कमी अधिक खान-पान, असन्तुलित भोजन, अधिक कार्य, गलत आदतें, विलासतापूर्ण जीवन आदि कुछ ऐसी बातें हैं जिनको आधुनिक जीवन शैली ने जन्म दिया है।

वस्तुतः भौतिक सम्पन्नता मनुष्य को समृद्धि तो दे सकती है, परन्तु मुख्य आधार तो स्वास्थ्य है, जिस पर जीवन निर्भर करता है।

यह पुस्तक उन लोगों को ही प्रेरित करने के उद्देश्य से ही प्रस्तुत की जा रही है। इसमें आमतौर पर होने वाली उन समस्याओं का समाधान है जो मानवता को चिरकाल से पीड़ित किये हुए है। इसका लक्ष्य आम दैहिक तापों से पीड़ित अथवा उनसे सम्बन्धित लोगों को यह बताना है कि उस अभेद्य दीवार, जो उन्हें चारों ओर से घेरे हुए है, उससे बाहर निकलने का एक रास्ता है। वस्तुतः यही जानकारी सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसी ऊर्जा है जो मन में प्रविष्ट होकर एक सशक्त विचार बन जब अभ्यास में उतरती है तो उन तकलीफों से उबरने का समर्थ साधन सिद्ध होती है।

इस बहुप्रतीक्षित पुस्तक में बीमारी के मूल सिद्धान्त, आधुनिक चिकित्सा प्रणाली एवं यौगिक चिकित्सा प्रणाली पर तुलनात्मक प्रभाव चर्चा करने का प्रयास बहुत सरल भाषा में किया गया है जो सभी को, चाहे वह डॉक्टर, योग चिकित्सक, स्वयं मरीज अथवा उत्सुक व्यक्ति की समझ में आ सके। इसमें मोटे तौर पर प्रत्येक आम बीमारी के सभी कारणों , लक्षणों एवं उसके शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक महत्वों को जो उस बीमारी के मूल में हैं, यौगिक दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया गया है। प्रत्येक बीमारी से मुक्त होने के यौगिक अभ्यास को भी बताया गया है।

वस्तुतः योग एवं औषधियाँ रोग को नियंत्रित करने में एक-दूसरे के सम्पूरक तो होती हैं फिर भी पूर्ण स्वास्थ्य को स्थिति योग ही ला सकती है क्योंकि योग सिर्फ क्रियाओं का अभ्यास मात्र नहीं है, प्रत्युत एक सम्पूर्ण जीवन शैली है। अतः केवल औषधियों से पूर्ण स्वास्थ्य कभी उचित जीवन-शैली ही स्वास्थ्य का मूल मंत्र है।

यह सर्वविदित है कि स्वास्थ्य बहुआयामी अवस्था का रूप है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक सभी स्तरों पर सन्तुलन ही स्वास्थ्य है। अतः केवल शारीरिक स्तर का इलाज मात्र एक चौथाई इलाज है। इस प्रकार समकालीन प्रचलित चिकित्सा-प्रणाली अधूरी है। योग, इस स्थिति में एक सम्पूर्णता का विकल्प लेकर प्रस्तुत होता है। यौगिक विचारधारा सभी पक्षों को उचित महत्व देती है।

यह पुस्तक सभी के लिये लाभकारी सिद्ध हो ऐसी मंगलमय कामना के साथ !

- स्वामी प्रखर प्रज्ञानन्द

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