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पर्यावरण एवं विज्ञान >> पर्यावरण कितने जागरूक है हम

पर्यावरण कितने जागरूक है हम

रश्मि अग्रवाल

प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9471
आईएसबीएन :9789381050514

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अपनी बात

ये ब्रह्मांड जिसमें हम निवास करते हैं, उसमें प्रकृति एक विशिष्ट आवरण है एवं पृथ्वी उसकी आकृति। हमारे चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता, विकटता, विभिन्नता एवं विषमता यत्र-तत्र सर्वत्र विद्यमान है।

हमारी जीवन शैली भी दो चक्रों पर आधारित है। एक चक्र है-परम्परा, जिसमें आस्था और विश्वास रहता है। दूसरा चक्र है- वैज्ञानिक सोच, जिसमें विकास रहता है। किंतु हम विकास और विनाश का सही विभाजन नहीं कर पाए जबकि हम अपनी आदि अवस्था से आधुनिक अवस्था तक किसी-न-किसी रूप में प्रकृति से प्रभावित भी होते रहे हैं। इसलिए प्रकृति ने हमें संवेदनशील मानव बनाया है।

सार्वजनीन और सार्वभौमिक तथ्य यह है कि हमारी सृष्टि का कुशल संचालन एक स्वनिर्धारित प्रक्रिया, नियम और क्रमशः परिवर्तनों के अनुसार हो रहा है। इस सुनिर्धारित व्यवस्था में कुछ भी हेर-फेर, अव्यवस्था, हस्तक्षेप जब होता है तब ही पर्यावरणीय संतुलन विचलित हो जाता है। ऐसे में सिर्फ मानव के लिए ही नहीं, अपितु संपूर्ण प्राणी जगत के सम्मुख स्वस्थ जीवन जीने का प्रश्न खड़ा हो जाता है।

जैसे-प्रकृति पर जीवन के अस्तित्व की रक्षा परिवेश में विद्यमान परिस्थितियों प्रत्येक जीवन को प्रभावित करती हैं। विपदा के कठिन दौर में सूखे सरोवर, विषैली गंगा, मौसम की मार, दम घोंटू माहौल व आध्यात्मिक क्रांति के नाम पर प्रकृति को लूटा जा रहा है।

अपनी पुस्तक ‘पर्यावरण : कितने जागरूक हैं हम’ के माध्यम से मैं सभी देशवासियों से कहना चाहती हूँ कि अगर मानव सभ्यता को बचाना है तो संपूर्ण समाज में पर्यावरणीय विषयों के प्रति गंभीरता दिखाते हुए जनचेतना का संचार करना होगा क्योंकि हम समझदार तो हैं पर जागरूक नहीं हैं। आगामी दुष्परिणामों के प्रति गंभीर नहीं हैं। यदि आज हम प्रकृति परायण बनेंगे तब ही तो आने वाली पीढ़ियों के लिए मनभावन दृश्य, सुंदरता के अस्तित्व छोड़ पाएँगे। इसलिए इसके निवारण के लिए आवश्यक है कि हम प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधनों का समय-समय पर मूल्यांकन करें, उन्हें सुरक्षित रखें, उसके द्वारा अर्जित बहुमूल्य संपदा जो संतुलित पर्यावरण से प्राप्त होती है, को स्वयं का उत्तराधिकारी समझ उपयोग करें व पर्यावरण को संतुलित रखने में पूर्ण सहयोग करें।

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