गीता प्रेस, गोरखपुर >> भले का फल भला भले का फल भलागीताप्रेस
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प्रस्तुत है भले का फल भला, लोक सेवा व्रत की एक आदर्श कथा।
प्रकाशक का निवेदन
मूल पुस्तक किन्हीं बौद्ध महानुभावके द्वारा पाली भाषामें लिखी गयी थी। इसका अंग्रेजी-अनुवाद श्रीपाल चारस (Paul Carus) नामक एक बौद्धधर्मके प्रेमी सज्जनने किया। अमेरिकामें यह पुस्तक गुजराती-अनुवाद करके प्रकाशित किया। उसका हिंदी-अनुवाद श्रीनाथुरामजी प्रेमीने, पुनः गुजराती-अनुवाद श्रीपद्मावती देसाईने और उसका फिरसे हिंदी-अनुवाद श्रीश्यामजी गणात्रा महोदयने किया, जो श्रीरामकृष्ण-सेवासमिति, अहमदाबादके द्वारा प्रकाशित किया गया। प्रस्तुत पुस्तक उसी का संशोधित संस्करण है। संशोधन श्रीपद्मावती देसाईजी की गुजराती पुस्तक के आधार पर किये गये हैं। श्रीरामकृष्ण-सेवासमिति, अहमदाबादने कृपापूर्वक पुस्तक के प्रकाशन की अनुमति दी। इसके लिये हम समिति के आभारी हैं।
पुस्तककी छोटी-सी आख्यायिका बहुत ही शुभ प्रेरणादायक है। इसके प्रथम गुजराती-अनुवादक श्रीलालनजी लिखते हैं कि प्रसिद्ध रशियन महात्मा टालस्टायने इस पुस्तकपर अपनी सम्मति प्रकट करते हुए लिखा था कि 'इस पुस्तकने मेरे जीवनमें अद्भुत परिवर्तन किया है।'
इस पुस्तकको पढ़कर हाईकोर्टमें लड़ते हुए दो व्यापारी सज्जनोंने समझौता कर लिया, मामला उठा लिया और दोनोंने आकर लालनजीके प्रति कृतज्ञता प्रकट की। अतएव इस पुस्तकका विशेषरूपसे प्रचार होना चाहिये। उत्साही सज्जनोंको स्थान-स्थानपर इसकी प्रतियाँ वितरण करनी चाहिये।
विनीत—प्रकाशक, गीताप्रेस
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नोट-सम्वत् २०६२ से 'श्रमण नारद' के नामसे पूर्वप्रकाशित इस पुस्तकका नाम 'भलेका फल भला' कर दिया गया है।
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