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अंक कथा

गुणाकर मुले

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :364
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9436
आईएसबीएन :9788126728060

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

अंको की जिस थाती ने हमें आज इस लायक बनाया है कि हम चाँद और अन्य ग्रहों पर न सिर्फ पहुँच गए बल्कि कई जगह तो बसने की योजना तक बना रहे हैं, उन अंकों का अविष्कार भारत में हुआ था ! वही 1,2,3,4....आदि अंक जो इस तरह हमारे जीवन का हिस्सा हो चुके हैं कि हम कभी सोच भी नहीं पाते कि इनका भी अविष्कार किया गया होगा, और ऐसा भी एक समय था जब ये नहीं थे !

हिंदी के अनन्य विज्ञान लेखक गुणाकर मुले की यह पुस्तक हमें इन्हीं अंकों के इतिहास से परिचित कराती है ! पाठकों को जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया में चीजों को गिनने की सिर्फ यही एक पद्धति हमेशा से नहीं थी ! लगभग हर सभ्यता ने अपनी अंक-पद्धति का विकास और प्रयोग किया ! लेकिन भारत की इस पद्धति के सामने आने के बाद इसी को पुरे विश्व ने अपना लिया, जिसका कारण इसका अत्यन्त वैज्ञानिक और सटीक होना था !

मेक्स मुलर ने कहा था की ‘संसार को भारत की यदि एकमात्र देन केवल दशमिक स्थानमान अंक पद्धति ही होती, और कुछ भी न होता तो भी यूरोप भारत का ऋणी रहता !’ इस पुस्तक में गुणाकर जी ने विदेशी अंक पद्धतियों के विस्तृत परिचय, यथा, मिश्र, सुमेर-बेबीलोन, अफ्रीका, यूनानी, चीनी और रोमन पद्धतियों की भी तथ्यपरक जानकारी दी है !

इसके अलावा गणितशास्त्र के इतिहास का संक्षिप्त परिचय तथा संख्या सिद्धांत पर आधारभूत और विस्तृत सामग्री भी इस पुस्तक में शामिल है ! कुछ अध्यायों में अंक-फल विद्या और अंकों को लेकर समाज में प्रचलित अंधविश्वासों का विवेचन भी लेखक ने तार्किक औचित्य के आधार पर किया है जिससे पाठकों को इस विषय में भी एक नयी और तर्कसंगत दृष्टि मिलेगी !

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