समकालीन कविताएँ >> धूप के खरगोश धूप के खरगोशभावना कुँअर
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
डॉ. भावना कुँअर ने अपने प्रथम हाइकू संग्रह ‘तारों की चूनर’ के द्वारा हाइकु-जगत् को अपने साहित्य-कर्म से केवल अवगत ही नहीं कराया; वरन् यह सिद्ध भी कर दिखाया कि हाइकु जैसे लघु कलेवर के छन्द में भी गरिमापूर्ण काव्य प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रकृति के अवगाहन से लेकर हदय को अन्तरंग अनुभूतियों की सरस प्रस्तुति तक। वही आश्वस्ति ‘धूप के खरगोश’ में भी रूपायित होती है। कुछ लोग पिछले 23-24 साल से पूरी हठधर्मिता और सकीर्णता के साथ केवल संरचना (स्ट्रक्चर) को ही सर्वस्व समझकर कुछ भी तिनटंगिया घोड़ा दौड़ाकर, उसे हाइकु के नाम से अभिहित कर दे रहे थे। डॉ. सुधा गुप्ता या डॉ. शैल रस्तोगी जैसे हाइकुकार कम ही नज़र आ रहे थे। युवा पीढ़ी की इस सशक्त कवयित्री ने हाइकु को संरचना के प्रत्यय से आगे बढ़ाकर हाइकु की आत्मा (स्पिरिट) तक पहुँचाया।
इस संग्रह में जहाँ प्रकृति के मनोरम बिम्ब हैं, वही मर्मस्पर्शी अनुभूतियों भी पाठक को रससिक्त कर देती हैं। पहले साठ में हाइकु के शाब्दिक धरातल तक पहुँचते हैं; लेकिन बार-बार पढ़कर चिन्तन अनुभव के धरातल पर उतरते ही पता चलता है कि लघुकाय छन्द में अनुस्यूत भाव बहुत गहरे हैं और विभिन्न आयाम लिये हुए हैं। बहुरंगी प्रकृति हो या प्रेम की गहनता हो, परदु:ख कातरता हो या सामाजिक सरोकार हों, भावनात्मक सम्बन्थ हों या सांसारिक रिश्ते डॉ. भावना के कैमरे का फोकस बहुत सधा हुआ और स्पष्ट नज़र आता है। कैमरा तो बहुतों के सास होता है, पर उसे सही बिन्दु पर फ़ोकस करना सबके बस की बात नहीं। हाइकु की बनावट और बुनावट के इन्द्रधनुषी अर्थों को खोलते हुए, जीवन के सूक्ष्म पर्यवेक्षण और उसमें अन्तर्हित अर्थ तक पहुँच, जीवन की आँच में तपे बिना नहीं होती। पाठकों को रचनात्मक आत्मीयता से अभिभूत करने वाली भावों की यह आँच भावना जी में है; जिसकी पुष्टि ‘धूप के खरगोश’ संग्रह बखूबी करता है।
इस संग्रह में जहाँ प्रकृति के मनोरम बिम्ब हैं, वही मर्मस्पर्शी अनुभूतियों भी पाठक को रससिक्त कर देती हैं। पहले साठ में हाइकु के शाब्दिक धरातल तक पहुँचते हैं; लेकिन बार-बार पढ़कर चिन्तन अनुभव के धरातल पर उतरते ही पता चलता है कि लघुकाय छन्द में अनुस्यूत भाव बहुत गहरे हैं और विभिन्न आयाम लिये हुए हैं। बहुरंगी प्रकृति हो या प्रेम की गहनता हो, परदु:ख कातरता हो या सामाजिक सरोकार हों, भावनात्मक सम्बन्थ हों या सांसारिक रिश्ते डॉ. भावना के कैमरे का फोकस बहुत सधा हुआ और स्पष्ट नज़र आता है। कैमरा तो बहुतों के सास होता है, पर उसे सही बिन्दु पर फ़ोकस करना सबके बस की बात नहीं। हाइकु की बनावट और बुनावट के इन्द्रधनुषी अर्थों को खोलते हुए, जीवन के सूक्ष्म पर्यवेक्षण और उसमें अन्तर्हित अर्थ तक पहुँच, जीवन की आँच में तपे बिना नहीं होती। पाठकों को रचनात्मक आत्मीयता से अभिभूत करने वाली भावों की यह आँच भावना जी में है; जिसकी पुष्टि ‘धूप के खरगोश’ संग्रह बखूबी करता है।
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