स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँउमेश पाण्डे
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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?
जंगली झाऊ
जंगली झाऊ के विभिन्न नाम :
हिन्दी में- झाऊ, जंगली सरू, विलायती सरू, मराठी में- सरोबा, सारपूला, महाराष्ट्री में- सरोका झाड़, बंगला में- झाऊ, तामिल में- सिववसी अंग्रेजी में- Iron wood plant (आइरन वूड प्लांट)
लेटिन में - Casuarina equisetifolia (केज्युएराईना इक्वीसेटी फोलियाT)
वानस्पतिक कुल - Casuarinaceae (कैज्युएराईनेसी)
जंगली झाऊ का संक्षिप्त परिचय
यह एक मध्यम श्रेणी का ऊँचा वृक्ष होता है जो कि अनेक उद्यानों मंा शोभा के लिये लगाया जाता है। यह वृक्ष सदाबहार होता है। यह नीलाभ लिये हुये हरे वर्ण का वृक्ष होता है। इसका तना काष्ठीय होता है। उस पर कई शाखायें होती हैं। शाखायें भी काष्ठीय होती हैं। शाखाओं पर पत्तियां लगती हैं। पत्तियां लम्बी-लम्बी सूच्याकार होती हैं। पत्तियों पर खण्डनुमा रचनायें दिखाई देती हैं। वृक्ष पर नर तथा मादा पुष्प अलग-अलग लगते हैं।
झाऊ का ज्योतिषीय प्रयोग
झाऊ की काठ के दो-तीन टुकड़े जो कि 4 अंगुल लम्बे तथा कम से कम अंगूठे की मोटाई जितने मोटे हों, प्राप्त कर लें। अपने स्नान के जल में इन टुकड़ों को डाल दें। पाँच मिनट पश्चात् इन्हें निकाल लें ताकि इन्हें आगे भी काम में लिया जा सके। अब जिस जल में इन लकड़ियों को डुबाया था उस जल से स्नान कर लें। ऐसा नियमित 40 दिनों तक करें। इस प्रयोग के प्रभाव से गुरु ग्रह की पीड़ा शान्त होती है।
जंगली झाऊ का औषधीय महत्त्व
आयुर्वेदानुसार यह वनस्पति शुक्रशोधक, दंतशूलहर, रक्तप्रदर आदि में परम उपकारी, त्वचा शोधक तथा उदर रोगों में लाभकारी है। औषधि हेतु इसके पत्ते, छाल एवं काष्ठ का प्रयोग किया जाता है। इसमें कैस्युरिन नामक रसायन होता है। इसके कुछ प्रमुख औषधीय प्रयोग निम्नानुसार हैं:-
> कभी-कभी हमारी त्वचा पर सफेद दाग हो जाते हैं। ऐसे दाग जो कि गुलाबीपन लिये हुये न हों तथा आकार में बहुत छोटे हों तब झाऊ का प्रयोग करके उन्हें ठीक किया जा सकता है। बड़े तथा अधिक फैल चुके दागों में इसका प्रयोग व्यर्थ है। छोटे दागों पर केवल इसकी छाल को थोड़े से नींबू के रस में घिसकर सम्बन्धित स्थान पर लगाया जाता है।
> दाँतों में कीड़े पड़ जाने पर जब उनकी वजह से दर्द हो तब झाऊ की थोड़ी सी काष्ठ लेकर उसे पर्यात जल में उबाल लें। भली प्रकार से उबालने के पश्चात् इस काढ़े को छान लें।उसे ठण्डा कर लें। इस गुनगुने काढ़े से कुल्ला करने से दाँतों के कीड़े मर जाते हैं तथा दर्द में राहत मिलती है।
> झाऊ की पर्यात मात्रा में लम्बी-लम्बी सुई के समान पत्तियों को लेकर जल के साथ भलीभांति पीस लें। इस पिसी हुई चटनी के समान पदार्थ को जहाँ उदरशूल हो रहा हो वहाँ और उसके आस-पास लेपित कर दें। ऐसा करने से उदरशूल का शमन होता है।
> इसकी छाल के चूर्ण की एक ग्राम मात्रा को बराबर मिश्री के साथ मिलाकर जल के साथ ले लें। ऊपर से एक पाव दूध पी लें। इस प्रयोग को नित्य एक-दो सप्ताह तक करने से शीघ्रपतन में लाभ होता है। इस प्रयोग से वीर्य गाढ़ा होता है।
> प्लीहा सम्बन्धी समस्याओं में झाऊ की काष्ठ का चूर्ण थोड़े से सरसों के तेल में मिलाकर ऊपर से लेप करते हैं। प्रयोग रोग की समाप्ति तक करना पड़ता है।
> झाऊ की छाल को गोमूत्र के साथ घिसकर प्रभावित क्षेत्र के ऊपर लगाने से त्वरित लाभ होता है। प्रयोग के प्रथम दिन से ही लाभ होने लगता है।
> रक्तप्रदर की स्थिति में झाऊ की काष्ठ के काढ़े की पर्यात मात्रा बना लें। इस काढ़े में थोड़ा सा नारियल का तेल तथा थोड़ी सी हल्दी (उदारहणार्थ एक बड़ी तबेली भर के काढ़े में 2 चम्मच नारियल का तेल तथा एक चम्मच हल्दी डालें) मिलाकर इस काढ़े से पेड़ पर बफारा लें अथवा इस काढ़े में कमर डुबोकर बैठ जायें। ऐसा करने से रक्तप्रदर में बहुत लाभ होता है।
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- उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
- जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
- जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
- तुलसी
- गुलाब
- काली मिर्च
- आंवला
- ब्राह्मी
- जामुन
- सूरजमुखी
- अतीस
- अशोक
- क्रौंच
- अपराजिता
- कचनार
- गेंदा
- निर्मली
- गोरख मुण्डी
- कर्ण फूल
- अनार
- अपामार्ग
- गुंजा
- पलास
- निर्गुण्डी
- चमेली
- नींबू
- लाजवंती
- रुद्राक्ष
- कमल
- हरश्रृंगार
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- नकछिकनी
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- सफेद कटेली
- सेमल
- केतक (केवड़ा)
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- मदन मस्त
- बिछु्आ
- रसौंत अथवा दारु हल्दी
- जंगली झाऊ