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चमत्कारिक जड़ी-बूटियाँ

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : निरोगी दुनिया प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9413
आईएसबीएन :0000000

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क्या आप जानते हैं कि सामान्य रूप से जानी वाली कई जड़ी बूटियों में कैसे-कैसे विशेष गुण छिपे हैं?

जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां


जब हम किसी चीज का प्रयोग करते हैं तो हमें उसके बारे में अनेक बातों की जानकारी अवश्य होनी चाहिये। इस पुस्तक में जड़ी-बूटियों एवं वृक्षों के अनेक उपायों एवं प्रयोगों के बारे में बताया गया है। जड़ी-बूटियों तथा वृक्षों का धार्मिक महत्व क्या है, वास्तु में इनका प्रयोग कैसे करें और औषधीय चिकित्सा में विभिन्न रोगों में प्रयोग कैसे किया जाये, इन सबके बारे में जानना अत्यन्त आवश्यक है। इनमें भी धार्मिक एवं औषधीय प्रयोगों के बारे में बहुत सी बातों की जानकारी होने से विषय को समझने में बहुत आसानी होती है। इस बारे में जो कुछ जानना आवश्यक होता है उसके बारे में अनेक अध्यायों में विस्तार से जानकारी दी गयी है किन्तु कुछ अध्यायों में इनका विस्तार से उल्लेख नहीं हुआ है।

इस बारे में किसी पाठक को समस्या न हो, इसलिये इस अध्याय में कुछ आवश्यक एवं विशेष जानकारियां दी जा रही हैं:-

जड़ को प्राप्त कैसे करें

किसी विशेष वृक्ष अथवा पौधे की जड़ का प्रयोग विभिन्न उपायों में किया जाता है। आप उस जड़ को प्राप्त कैसे करें, यह एक जिज्ञासा का विषय है जिसे स्पष्ट किया जाना आवश्यक है। जब भी आपको जड़ प्राप्त करनी हो उसके एक दिन पूर्व आप एक लोटा स्वच्छ जल, दो अगरबत्ती, कुछ पीले रंग में रंगे चावल लेकर उस वृक्ष के समक्ष जायें। वृक्ष की जड़ों के आस-पास सफाई करें। इसमें झाडू का प्रयोग नहीं करना है। सफाई के पश्चात् लोटे का जल जड़ पर अर्पित करें। अगरबत्ती लगायें। इसके पश्चात् पीले चावल जड़ों के ऊपर डाल दें। फिर हाथ जोड़कर मानसिक रूप से निवेदन करें कि हे वृक्षदेव, मैं आपको अपने साथ ले जाने के लिये कल प्रात: आऊँगा। कृपया मेरे साथ चलकर मेरा कल्याण करें। ऐसा आप अपनी सुविधा के अनुसार अन्य प्रकार से भी निवेदन कर सकते हैं। यहाँ स्पष्ट कर दें कि पीले चावल आमंत्रण के लिये दिये जाते हैं। पहले जब भी कोई मांगलिक कार्य किया जाता था, तब किसी को आमंत्रित करते समय सम्मान सहित आमंत्रण के रूप में पीले चावल दिये जाते थे। आप भी जड़ को अपने घर आने का आमंत्रण दे रहे हैं, इसलिये पीले चावल अवश्य अर्पित करें। इसके पश्चात् आप वापिस घर लौट आयें। भीतर जाने से पूर्व अपने हाथ-पांव अवश्य धो लें। दूसरे दिन प्रात: स्नान-ध्यान से निवृत होकर एक लोटा स्वच्छ जल तथा अगरबत्ती लेकर वृक्ष के समीप जायें। अपने साथ में एक नुकीली लकड़ी का टुकड़ा भी ले जायें। वृक्ष की जड़ों में जल चढ़ायें। अगरबती लगायें और पुन: मानसिक रूप से निवेदन करें कि हे देव, मैं आज आपको अपने साथ ले जाने के लिये आया हूँ, कृपया मेरे साथ चलकर मेरा कल्याण करें। इसके पश्चात् लकड़ी से धीरे-धीरे मिट्टी को हटायें। जड़ दिखाई देने पर उसे लकड़ी की सहायता से तोड़ लें। खोदी गई मिट्टी को पुन: समतल कर दें। प्रणाम करें और जड़ को लोटे में डालकर वापिस आ जायें। भीतर जाने से पूर्व अपने हाथ-पांव ठीक से धो लें। इसके पश्चात् बताई गई विधि के अनुसार जड़ का प्रयोग करें। इसमें दो बातों का विशेष ध्यान रखें। जड़ को निकालते समय हमेशा लकड़ी के टुकड़े का ही प्रयोग करें। कभी भी लोहे की चीज से जड़ नहीं निकालें। इसका क्या कारण है? अधिकांश पाठकों तथा लेखकों को भी मालूम नहीं है कि इसमें लोहे की किसी चीज से जड़ निकालना वर्जित क्यों है? इसे भी स्पष्ट किया जा रहा है। लोहे को कठोर धातुमाना गया है। अधिकांश हथियारों में लोहे का प्रयोग होता है, इसलिये इसे कठोरता एवं दुष्टता का प्रतीक माना जाता है। लकड़ी कोमल होती है, इसलिये यह विनम्रता की सूचक है। जब आप किसी को अपने कल्याण एवं अपनी सहायता के लिये घर आने को आमंत्रित करते हैं तो आमंत्रण का भाव विनम्रता से भरा होना चाहिये। कठोरता की मूरत बनकर आप किसी को आमंत्रित नहीं कर सकते। इसलिये जड़ को खोदने के लिये हमेशा लकड़ी के प्रयोग का ही निर्देश दिया जाता है। दूसरी विशेष बात यह है कि जड़ प्राप्त करने की क्रिया करते समय आप अपने इष्ट के किसी भी मंत्र का मानसिक जाप करते रहें। मंत्र जाप से आपके भीतर उत्साह का संचार होता रहेगा। इससे निश्चित रूप से आपका कार्य सफल होगा।

यंत्र निर्माण कैसे करें

यंत्रों के प्रभाव एवं महत्व के बारे में सभी बहुत अच्छी प्रकार से जानते हैं। इस पुस्तक के कुछ अध्यायों में यंत्र प्रयोग के उल्लेख आये हैं। प्राय: यंत्र भोजपत्र एवं ताम्रपत्र पर ही बनाये जाते हैं किन्तु भोजपत्र के अभाव में सामान्य कागज पर भी इसका निर्माण किया जा सकता है। यंत्र लेखन के लिये आमतौर पर अष्टगंध की स्याही का ही प्रयोग किया जाता है किन्तु इस पुस्तक के कुछ अध्यायों में वर्णित विशेष वृक्ष अथवा पौधे की जड़ अथवा पत्तों के रस का प्रयोग बताया गया है ताकि यंत्र में उसका प्रभाव आ सके। अगर केवल किसी वृक्ष की जड़ अथवा पत्र रस से लेखन के बारे में बताया गया है तो आप उसमें केसर का उपयोग भी कर सकते हैं। अगर जड़-पत्र रस के अतिरिक्त उसमें अन्य द्रव्य मिलाने का उलेख है और आपको वह प्राप्त नहीं हो रहे हैं तो रस में भी केसर मिलाकर लेखन किया जा सकता है। कलम के लिये मुख्य रूप से अनार की टहनी की कलम के बारे में ही बताया जाता है। अगर सहजता से यह उपलब्ध न हो तो आप चमेली की टहनी प्रयोग कर सकते हैं। यह भी न मिले तो पीपल वृक्ष की टहनी की कलम बनाकर यंत्र लेखन करें। यंत्र लेखन के पश्चात् इसे सिद्ध करना आवश्यक है। इसके लिये अपने आवास के एकांत एवं साफ स्थान का चुनाव करें। स्थान शुद्धि करके दीवार के पास बाजोट को इस प्रकार से रखें कि आपका मुँह उत्तर अथवा पूर्व दिशा की तरफ रहे। यंत्र लेखन की समस्त सामग्री अपने पास में रखें और यंत्र लेखन करें। लेखन से पूर्व अपने इष्ट का स्मरण अवश्य करें। लेखन के पश्चात् इसे बाजोट पर रख दें। बाजोट पर एक लोटा स्वच्छ जल का रखें, अगरबत्ती लगायें। अब आप अपने इष्ट की एक, तीन अथवा पाँच माला मंत्रजाप करें। अगर किसी देव अथवा देवी की कृपा प्राप्ति के लिये यंत्र का निर्माण किया जा रहा है तो उसके मंत्र का जाप करें और फिर जैसा बताया गया है, वैसा प्रयोग करें। अपने मन में इस बात का विश्वास रखें कि आपको इसका लाभ अवश्य प्राप्त होगा।

विशेष- कुछ यंत्र प्रयोग किसी प्रकार की बाधा मुक्ति के लिये किये जाते हैं। इसके लिये प्राय: काली स्याही का प्रयोग किया जाता है। इसमें भी कपूर अथवा किसी जड़ विशेष द्वारा तैयार काजल द्वारा यंत्र लिखा जाता है। अगर किसी जड़ का काजल बनाना है तो इसके लिये पर्यात मात्रा में तिल का तेल लें। इसे मिट्टी के दीपक में डालें। इसी में बताई गई जड़ को भी डालें। रूई की एक मोटी बाती बनायें और दीपक में लगा दें। इसके पश्चात् दीपक के तीन तरफ ईट आदि रखकर ऐसी व्यवस्था करें कि इसके ऊपर एक बड़ा दीपक उलटा करके रखा जा सके। ऊँचाई केवल इतनी हो कि दीपक जलाने पर बाती की लौ ऊपर उलटे रखे दीपक के साथ लगे। ऐसे में दीपक में लौ के कारण काली तह जम जायेगी। यही काजल है। यंत्र लेखन के समय इसमें विशेष वृक्ष अथवा पौधे के पते का रस मिलाकर थोड़ा पतला कर लें और यंत्र लेखन करें। इस प्रकार के यंत्र लेखन हमेशा दक्षिण दिशा की तरफ मुँह करके बनायें। विधि पूर्वानुसार ही होगी।

जड़ का प्रभाव

सुख-शांति, समृद्धि, ग्रह पीड़ा मुक्ति तथा अन्य अनेक प्रकार की समस्याओं में विभिन्न वृक्षों की जड़ों का प्रयोग किया जाता है। ग्रह पीड़ा निवारण में जड़ों को रत्रों का विकल्प माना गया है। जो व्यक्ति रत्न धारण नहीं कर सकता वह विशिष्ट वृक्ष की जड़ को धारण करके रल के समान लाभ प्राप्त कर सकता है। इसका तात्पर्य है कि जड़ों में बहुत अधिक प्रभाव एवं ऊर्जा होती है। इसे और अधिक स्पष्ट किया जा रहा है। समस्त वृक्षों एवं पौधों का जीवन उसकी जड़ों पर निर्भर करता है। जड़ों के द्वारा पोषण प्राप्त करके ही एक छोटे से बीज से निकला पौधा कुछ समय पश्चात् ही विशाल वृक्ष का रूप ले लेता है। इसका तात्पर्य है कि जड़ों में ही विशाल वृक्ष का जीवन सत्व छिपा होता है। इसी कारण से वृक्षों तथा पौधों की जड़ों का अत्यधिक महत्व है। जब आप किसी वृक्ष अथवा पौधे की जड़ को घर लाकर उसे पूर्ण विधि-विधान से पूजास्थल अथवा धन रखने के स्थान पर स्थापित करते हैं तो इसके प्रभाव से आपके यहाँ आर्थिक समस्यायें कम आती हैं। अगर आती हैं तो उनका समाधान भी शीघ्र हो जाता है, इससे सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। इसका यह प्रभाव आपको तभी प्राप्त होगा जब आप सही तथा मर्यादापूर्ण आचरण करते हैं। घर में कलह नहीं होनी चाहिये। अगर घर में कलह होती रहती है, व्यवहार एवं आचरण मर्यादाहीन है तो आप चाहे किसी भी वृक्ष की जड़ लेकर, उसे कितने ही विधि-विधान से स्थापित कर लें, आपको इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। इसलिये आप शुद्ध आचरण से विशिष्ट वृक्ष की जड़ को स्थापित करते हैं तो निश्चित ही आपको इसका लाभ प्राप्त होगा।

सिद्ध तेल

आयुर्वेद चिकित्सा में सिद्ध तेल का बहुत अधिक महत्व है। यह तेल विभिन्न वृक्षों अथवा पौधों की मूल, तने की छाल, पत्तों अथवा फूलों के द्वारा तैयार किया जाता है। इस पुस्तक में औषधीय चिकित्सा के वर्णन में अनेक स्थानों पर सिद्ध तेल का उल्लेख हुआ है। इसे तैयार करना अत्यन्त आसान है, इसे आप स्वयं घर पर तैयार कर सकते हैं। इसके लिये प्राय: तिल के तेल का ही उपयोग किया जाता है। जिस वृक्ष की जड़ अथवा पत्तों आदि से इसे सिद्ध करना है, उसे ताजी अवस्था में ही प्राप्त कर लें। उदाहरण के लिये आपको वृक्ष की जड़ अथवा पत्तों से तेल को सिद्ध करना है तो इसके लिये 500 ग्राम की मात्रा में तिल का तेल लें। जड़ अथवा पते, जो भी लेने हैं, उन्हें 50 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट लें। इन्हें हल्का ही कूटें ताकि इनका रस भीतर ही रहे। इसके पश्चात् तेल को गर्म करें और उसमें जड़ अथवा पत्तों को डालकर पकायें। इन्हें इतना पकायें कि इनके भीतर का सारा रस जल जाये। इसके पश्चात् आंच को बंद कर दें। ठण्डा होने पर तेल को छान कर शीशी में भर लें। प्राय: इस प्रकार का सिद्ध तेल पीड़ाशमन के लिये मालिश के काम आता है।जिस अध्याय में सिद्ध तेल के उपयोग के बारे में जो निर्देश दिया जाये, उसी अनुरूप करें।

क्वाथ या काढ़ा

आयुर्वेदिक चिकित्सा में काढ़े का बहुत अधिक महत्व है। इसमें विशिष्ट वृक्षों एवं पौधों की जड़, छाल, पते, पुष्प तथा फल आदि का प्रयोग किया जाता है। अगर इन पांचों तत्वों का प्रयोग किया जाता है तो इसे पंचांग का काढ़ा कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कहीं-कहीं जड़ का तो कहीं पत्र-पुष्प आदि के काढ़े का उल्लेख मिलता है। काढ़े का तात्पर्य है वृक्ष अथवा पौधों की जड़-छाल आदि को पानी में इतना उबाला जाये कि डाले गये पानी का तीन अंश जल जाये और केवल एक अंश शेष रहे। इसके पश्चात् इसे छानकर निर्देशानुसार सेवन किया जाता है। वृक्षों एवं पौधों को हम वर्षों से जीवनदाता तथा जीवनरक्षक के रूप में देखते आये हैं। वृक्षों पर लगने वाले फलों के द्वारा हमें पोषण प्राप्त होता था, इसलिये इन्हें जीवनदाता अथवा पालनहार के रूप में अभिव्यक्त किया जाता रहा है। इसके विभिन्न अंग चाहे वह जड़ हो, छाल हो, पत्ते, पुष्प अथवा फल हों, वे सभी चिकित्सकीय प्रयोग में लाये जाने के कारण यह हमारे जीवन की रोगों से रक्षा करने वाले भी हैं। प्रारम्भिक काल से ही व्यक्ति के समक्ष जिस प्रकार की चुनौतियां आयीं, उसने उसी अनुरूप अपने रास्तों की खोज कर ली। जीवन के साथ ही भूख, रोग और मौत का सम्बन्ध बन गया था। मौत पर तो उसका कोई जोर नहीं था, इसलिये इसे भगवान के नाम पर छोड़ दिया गया कि जब वह उचित समझेगा, तभी किसी व्यक्ति को उठा लेगा। भूख मिटाने के लिये उसने अथक प्रयास किये, खोज कार्य किये और परिणामस्वरूप फलों एवं माँस को उसने इसके लिये उपयुक्त माना। माँस के लिये उसे शिकार करना पड़ता था, जिसमें कई बार खतरों का सामना करना पड़ जाता था, कई बार वह स्वयं हिंसक जानवरों का शिकार बन जाता था। इसलिये वृक्षों पर लगने वाले फल ही उसके जीवन का आधार बने। इसी के साथ-साथ रोगों से लड़ने के लिये भी वृक्षों का सहारा लिया गया। विभिन्न रोगों को दूर करने के लिये इनके पत्तों अथवा जड़ आदि का प्रयोग किया जाने लगा होगा। बाद में यही उपक्रम काढ़े में बदल गया। सम्पूर्ण वृक्ष ही औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है इसलिये काढ़े के माध्यम से इस गुण अथवा सत्व को देर तक जल में उबाल कर बाहर निकाल लिया जाता है। इसके बाद जड़ एवं पत्ते आदि को छान कर फेंक देते हैं। इस काढ़े को पीने से अनेक रोगों में चमत्कारिक लाभ की प्राप्ति होती है। यह जानना आवश्यक होगा कि काढ़े को कैसे तैयार किया जाना चाहिये। अगर पंचांग का काढ़ा लेना है तो इसके पाँचों अंगों को समान मात्रा में लेकर सुखा कर कूट लें। जब इसे तैयार करना हो तो दो कप जल लेकर उसमें इस मिश्रण की दो चम्मच मात्रा लेकर उबालें। जब तीन भाग जल भाप बनकर उड़ जाये और शेष एक भाग बचे तो उसे छानकर हल्का गर्म सेवन करें। आमतौर पर काढ़े का स्वाद कसैला होता है, इसलिये सम्भव है कि पीने में कुछ समस्या आये, इसलिये आवश्यकता के अनुसार इसमें मिश्री मिला लें। पंचांग के अलावा अगर केवल जड़ अथवा छाल आदि का काढ़ा लेना हो तो इसे भी इसी प्रकार तैयार कर लें। काढ़े का सेवन करते समय एक बात का ध्यान रखना चाहिये कि सेवन के पश्चात् कुछ समय आराम अवश्य करें ताकि काढ़ा शरीर के भीतर जाकर अपना प्रभाव दे सके। काढ़े का सेवन करने के साथ ही कभी भी तुरन्त बाहर खुले में नहीं जायें अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि की सम्भावना रहेगी। विभिन्न रोगों के उपचारार्थ काढ़े के मिश्रण बाजार में उपलब्ध हो जाते हैं।

विशेष- इस पुस्तक में बताये गये औषधीय प्रयोग पूरी तरह से निरापद हैं। सामान्य रोगों में इनका प्रयोग करना कभी अहितकर नहीं होता है किन्तु गम्भीर रोगों में स्वयं अपनी चिकित्सा करने के स्थान पर तुरन्त योग्य चिकित्सक से परामर्श करना चाहिये। आज से काफी समय पूर्व व्यक्ति भरपूर परिश्रम करता था, फिर भरपूर खाना खाता था और फिर रात को गहरी नींद सोता था। इससे उसके भीतर रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बहुत अधिक होती थी। इस कारण व्यक्ति को बहुत कम रोग हुआ करते थे और अगर रोग होते भी थे तो लिये गये उपचार से शीघ्र ही दूर हो जाते थे। आज परिस्थितियां बदल गई हैं। व्यक्ति श्रम से बचना चाहता है,पौष्टिक आहार के स्थान पर बाजार के तले-भुने तथा फास्ट फूड को खाने के प्रति । रुचि अधिक रहती है, अनेक प्रकार की तनाव एवं चिंता के कारण वह रात को ठीक से नींद नहीं ले पाता। स्वास्थ्य के तीन आधार स्तम्भ- श्रम, आहार एवं निद्रा को उसने ध्वस्त कर दिया है। इससे उसकी रोग-प्रतिरोधक शक्ति कम हुई है। परिणामस्वरूप रोगों के आक्रमण बढेव हैं। इन रोगों के उपचार के लिये योग्य चिकित्सक द्वारा चिकित्सा ही करवानी चाहिये। इसमें विलम्ब नहीं करना चाहिये। पुस्तक में औषधीय प्रयोग आपकी जानकारी तथा वृक्षोंपौधों के महत्व को बताने के लिये दिये गये हैं। इसलिये किसी भी प्रयोग को करने से पूर्व योग्य आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श ले लेना उचित रहेगा।

औषधि स्नान

ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों की भूमिका ही मुख्य होती है। ग्रहों के शुभ प्रभाव में व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती चली जाती है तथा विपरीत प्रभाव में व्यक्ति अनायास ही अनेक प्रकार की समस्याओं से घिर जाता है, दु:ख एवं पीड़ा भोगता है। इन कटों तथा समस्याओं से बचने के लिये अन्य उपायों के साथ-साथ औषधि स्रान का विशेष महत्व है। इसमें अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियों को अपने स्नान के जल में मिलाकर स्नान किया जाता है। इसके लिये आप बताई गई जड़ी-बूटियों को बाजार से प्राप्त कर लें। इन्हें दरदरा कूट लें। एक मिट्टी के पात्र में इन्हें डाल कर इसमें जल भर दें। अब प्रतिदिन इसमें से कुछ जल निकाल कर छान लें। इस जल को अपने स्रान वाले जल में मिलाकर स्नान करें। औषधि वाले पात्र में उतना जल तुरन्त डाल दें जितना आपने निकाला है। इस प्रकार एक बार बनाये गये इस जल को आप तीस दिन तक प्रयोग में ला सकते हैं। इसके पश्चात् पात्र को खाली करके पुन: जड़ी-बूटियों का मिश्रण मिलाकर जल तैयार कर लें। वैसे तो प्रत्येक समस्या के साथ विद्वान ज्योतिषी बताता है कि कितने दिन यह स्नान करना है किन्तु अगर आप कष्ट मुक्ति होने तक औषधि स्रान का प्रयोग करते हैं तो अधिक लाभ की प्राप्ति होगी।

इस प्रकार से इस पुस्तक की उपयोगिता को बढ़ाने के लिये जो आवश्यक जानकारियां हैं, उनके बारे में यहाँ बताया गया है। इसके पश्चात् आप इस पुस्तक में वर्णित उपायों का प्रयोग करके अवश्य लाभ प्राप्त करेंगे। अगर पूर्ण आस्था, विश्वास एवं श्रद्धा से उपाय करते हैं तो निश्चित रूप से लाभ की प्राप्ति होगी क्योंकि ईश्वर का आशीर्वाद केवल उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है जो उसमें श्रद्धा एवं विश्वास रखते हैं।

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    अनुक्रम

  1. उपयोगी हैं - वृक्ष एवं पौधे
  2. जीवनरक्षक जड़ी-बूटियां
  3. जड़ी-बूटियों से संबंधित आवश्यक जानकारियां
  4. तुलसी
  5. गुलाब
  6. काली मिर्च
  7. आंवला
  8. ब्राह्मी
  9. जामुन
  10. सूरजमुखी
  11. अतीस
  12. अशोक
  13. क्रौंच
  14. अपराजिता
  15. कचनार
  16. गेंदा
  17. निर्मली
  18. गोरख मुण्डी
  19. कर्ण फूल
  20. अनार
  21. अपामार्ग
  22. गुंजा
  23. पलास
  24. निर्गुण्डी
  25. चमेली
  26. नींबू
  27. लाजवंती
  28. रुद्राक्ष
  29. कमल
  30. हरश्रृंगार
  31. देवदारु
  32. अरणी
  33. पायनस
  34. गोखरू
  35. नकछिकनी
  36. श्वेतार्क
  37. अमलतास
  38. काला धतूरा
  39. गूगल (गुग्गलु)
  40. कदम्ब
  41. ईश्वरमूल
  42. कनक चम्पा
  43. भोजपत्र
  44. सफेद कटेली
  45. सेमल
  46. केतक (केवड़ा)
  47. गरुड़ वृक्ष
  48. मदन मस्त
  49. बिछु्आ
  50. रसौंत अथवा दारु हल्दी
  51. जंगली झाऊ

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