गीता प्रेस, गोरखपुर >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँगीताप्रेस
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प्रस्तुत है पौराणिक कथाएँ.....
सुनीथाकी कथा
अभिभावक उपेक्षा न करेंअभिभावकोंको चाहिये कि वे अपनी संतान की सँभाल में तनिक भी उपेक्षा न आने दें। इनके द्वारा की गयी थोड़ी भी उपेक्षा संतानके लिये घातक बन जाती है।
सुनीथा मृत्यु देवताकी कन्या थी। बचपनसे ही वह देखती आ रही थी कि उसके पिता धार्मिकोंको सम्मान देते हैं और पापियोंको दण्ड। सहेलियोंके साथ खेलनेमें प्रायः वह इन्हीं बातोंका अनुकरण किया करती थी। एक बार वह सहेलियोंके साथ खेलती हुई दूर निकल गयी। वहाँ एक सुन्दर गन्धर्वकुमार सरस्वतीकी आराधनामें लीन था। उसपर दृष्टि पड़ते ही सुनीथा उसपर कोड़े बरसाने लगी। भोलेपनसे इसे वह खेल ही समझती रही। वह प्रतिदिन आती और निरपराध गन्धर्वकुमारको सताती। एक दिन गन्धर्वकुमारको क्रोध हो गया, वह बोला-'भले लोग मारनेवालेको मारते नहीं और गाली देनेवालेको गाली नहीं देते। यही धर्मकी मर्यादा है।'
सुनीथामें सत्यवादिता आदि सभी गुण कूट-कूटकर भरे थे। उसने अपने पितासे सारी घटना ज्यों-की-त्यों सुना दी। भोली होनेसे वह गन्धर्वकुमारकी बातें समझ न पाती थी, उन्हें समझानेके लिये उसने पिताजीसे आग्रह किया। मृत्युने अपनी पुत्रीकी जिज्ञासापर चुप्पी साध ली, जो अच्छी न थी। पुराणने इसे 'दोष' माना है, क्योंकि मारनेवालेको मारना नहीं चाहिये और गाली देनेवालेको गाली नहीं देनी चाहिये-इन वाक्योंका अर्थ जो बच्ची नहीं समझ पाती और अभिभावकसे समझना चाहती है, उसे न समझाना अवश्य अनर्थकारक हो सकता है।
हुआ भी ऐसा ही। पिताके चुप्पी साध लेनेसे सुनीथाका वह पापाचार रुका नहीं। सखियोंके साथ गन्धर्वकुमारके पास जाना और कोड़ोंसे उसे पीटना उसका प्रतिदिनका कार्य हो गया। कोई कबतक सहेगा! एक दिन गन्धर्वकुमारने शाप देते हुए कहा-'विवाह हो जानेपर तुम्हारे गर्भसे ऐसा पुत्र उत्पन्न होगा जो देवताओं एवं ब्राह्मणोंकी निन्दा किया करेगा और घोर पापाचारमें लग जायगा।'
इस बार भी सुनीथाने सच-सच बातें पिताको सुना दी। शापकी बात सुनकर पिताको बहुत दुःख हुआ। उन्होंने इस बार समझाया-'निर्दोष तपस्वीको पीटना अच्छा काम नहीं है। ऐसा तुमने क्यों किया? तुमसे भारी पाप हो गया है। तुम्हें शाप भी लग गया है। अतः अब तुम पुण्य-कर्मोंका अनुष्ठान करो, सत्संगति करो और विष्णुके ध्यानमें लग जाओ।'
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