नारी विमर्श >> जिप्सी जिप्सीइलाचन्द्र जोशी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
यह उपन्यास अपनी भाषिक संरचना से कथा-उद्देश्य की जमीन पर जिस तरह आंतरिक और बाह्य क्रियात्मकता के साथ रचा गया है, वह अपने-आप में एक उदाहरण है, और यह उदाहरण उपन्यासकार इलाचंद्र जोशी की एक बड़ी विशेषता है ! इस उपन्यास की धुरी है एक खानाबदोश लड़की जिसके कथा-आयतन में सम्मोहन, प्रेम, चेतना, कुंठा और उत्तेजना, फिर तमाम स्थितियों तथा संघर्षो की विस्तृत और अन्तहीन घटनाएँ अपनी गहरी जड़ो के साथ मानव-सभ्यता में अपना कालबोध प्रतीत होती हैं !
उपन्यास में लेखक ने स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान का कैनवास रचते व्यक्ति, समाज-वर्ग और धर्म, विचार, व्यवस्था तथा राजनीति के बीच की खाइयों और उसकी परिणति-प्रक्रिया पर भी अपनी पैनी नजर बनाये रखी है ! बहुमुखी प्रतिभा के विशिष्ट रचनाकार इलाचंद्र जोशी ने जिस दृष्टि और कलात्मकता के साथ अपनी इस कृति में अपने पात्रों के मनोलोक और उनके अपने बाहरी संसार से टकराव को सघनता से रचा है, उससे कोई भी संवेदनशील पाठक अछूता नहीं रह सकता !
उपन्यास में लेखक ने स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान का कैनवास रचते व्यक्ति, समाज-वर्ग और धर्म, विचार, व्यवस्था तथा राजनीति के बीच की खाइयों और उसकी परिणति-प्रक्रिया पर भी अपनी पैनी नजर बनाये रखी है ! बहुमुखी प्रतिभा के विशिष्ट रचनाकार इलाचंद्र जोशी ने जिस दृष्टि और कलात्मकता के साथ अपनी इस कृति में अपने पात्रों के मनोलोक और उनके अपने बाहरी संसार से टकराव को सघनता से रचा है, उससे कोई भी संवेदनशील पाठक अछूता नहीं रह सकता !
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