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नारी विमर्श की कहानियाँ >> बुत जब बोलते हैं

बुत जब बोलते हैं

सुधा अरोड़ा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9324
आईएसबीएन :9789352210077

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

कथाकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुधा अरोड़ा हमारे समय का एक जाना-पहचाना नाम है ! लेखन इनके लिए जुनून तो है ही मिशन भी है ! सुधा जी के लेखन में निरंतर ताजगी दिखाई देती है ! समकालीन मुद्दों पर उनके लेखन की पक्षधरता अचंभित करती है ! बुत जब बोलते है उनकी ताजा कहानियों को संकलन है ! सुधा अरोड़ा की कहानियां शाश्वत मूल्यों के साथ-साथ समकालीन परिस्थिति से संवाद भी करती चलती हैं और अपने को निरंतर बदलते समाज से जोड़े रखती है-कुरीतियों और अवमूल्यन के खिलाफ बेबाक-बयानी करती हुई और सच समर्थन में अपनी आवाज बुलंद करती हुई ! इन कहानियों के पत्र विविध वर्गों से आते हैं ! यहाँ स्त्रियों के अलावा मूक कामगार भी है, मौन बालश्रमिक भी और जटिल सामाजिक विसंगारियों से जूझती बुजुर्ग और युवा स्त्रियाँ भी !

सुधा अरोड़ा की कहानियां देह-विमर्श की तीखी आवाजों के बीच स्त्री जीवन के किसी मार्मिक हिस्से को अभिव्यक्त करती कर्णप्रिय लोकगीत-सी लगती हैं ! इनका उद्देश्य घरेलू-हिंसा और पुरुष की व्यावहारिक व् मानसिक क्रूरता के आघात झेल कर ठूंठ हो चुके स्त्री मन में फिर से हरितिमा अंखुआने और जीवन की कोमलता उभारने की संवेदना का सिंचन करना है ! उधड़ा हुआ स्वेटर कहानी को खुले मन से मिली पाठकों की स्वीकृति साबित करती है कि ऐसी संवेदनात्मक कहाँनियों का लिखा जाना कितना जरूरी है ! इन कहानियों में लेखिका दर्दमंद स्त्रियों की दरदिया बनकर अगर एक हाथ से उनके घाव खोलती है तो दूसरे हाथ से उन्हें आत्मसाक्षात्कार के अस्त्र भी थमाती है जिससे ये स्त्रियाँ भावनात्मक आघात और संत्रास से टूटती नहीं बल्कि मजबूत बनती हैं ! राग देह मल्हार की बेनू और भागमती पंडाइन का उपवास की भागमती ऐसी ही स्त्रियाँ हैं जिनका स्वर व्यंग्यात्मक और चुटीला होते हुए भी संवेदना को संजोये रहता है ! अपने समय के साथ मुठभेड़ में हमेशा अगुआ रही इस वरिष्ठ लेखिका के नये संकलन का पाठकों की दुनिया में स्वागत होगा, इस उम्मीद के साथ....

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