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गीता प्रेस, गोरखपुर >> उपनिषदों के चौदह रत्र

उपनिषदों के चौदह रत्र

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 928
आईएसबीएन :81-293-0543-7

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उपनिषद् हमारी अमूल्य निधि है। उपनिषदों में उस कल्याणमय ज्ञान का अखण्ड और अनन्त प्रकाश है जो घोर क्लेशमयी और अन्धकारमयी भवाटवी में भ्रमते हुए जीव को सहसा उससे निकालकर नित्य निर्बाध ज्योतिर्मयी और पूर्णानन्दमयी ब्रह्मसत्ता में पहुँचा देता है।

Upnishdon Ke Chaudah Ratna -A Hindi Book by Hanuman Prasad Poddar - उपनिषदों के चौदह रत्र - हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रार्थना

उपनिषद् हमारी वह अमूल्य निधि है, जिसने संरक्षित विविध ज्ञान-विज्ञानमयी अचिन्त्य रत्नराशि की निर्मल सच्चिदानन्दमयी ज्योतिका एक कण प्राप्त करने के लिये समस्त संसारके तत्त्वज्ञ श्रद्धापूर्वक सिर उठाये औह हाथ पसारे खड़े हैं। उपनिषदों में उस कल्याणमय ज्ञानका अखण्ड और अनन्त प्रकाश है, जो घोर क्लेशमयी और अन्धकारमयी भवाटवीमें भ्रमते हुए जीवनको सहसा उससे निकालकर नित्य निर्बाध ज्योतिर्मयी और पूर्णानन्दमयी ब्रह्म सत्ता में पहुँचा देता है।

आनन्द की बात है कि आज उन्हीं उपनिषदों से चुनी हुई कुछ कथाएँ पाठकों को भेंट की जा रही हैं। लगभग दस वर्ष पूर्व बम्बई में ‘उपनिषदोनी बातों’ नामक एक गुजराती पुस्तक देखी थी, तभी हिन्दी में भी वैसी कथाएँ लिखने का मन हुआ था और उसी समय कुछ कथाएं लिखी गयी थीं। उनमें से कुछ तो बिलकुल गुजरात की शैली पर ही थीं, कुछ अन्य प्रकार से। वे ही कथाएं अब पाठकों को पुस्तक रूप में मिल रही हैं। इसके लिए गुजराती पुस्तक के लेखक और प्रकाशक महोदय का मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।

 इस छोटी-सी पुस्तक से हिन्दी के पाठकों ने यदि लाभ उठाया तो सम्भव है आगे चलकर उपनिषदों की ऐसी ही चुनी हुई अन्यान्य कथाओं के प्रकाशन की चेष्टा की जाय। भूल-चूक के लिए क्षमा करें और कृपापूर्वक सूचना दे दें, जिससे यदि नया संस्करण हो तो उस समय उचित सुधार कर दिया जाय। आशा है, पाठक इस प्रर्थना पर ध्यान देंगे।

विनीत
हनुमान प्रसाद पोद्दार


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