गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीकृष्ण गीतावली श्रीकृष्ण गीतावलीहनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रस्तुत है श्रीगोस्वामी तुलसीदासद्वारा रचित श्रीकृष्ण गीतावली सरल भावार्थ में।
Shri Krishna Gitavali A Hindi Book by Hanuman Prasas Poddar - श्रीकृष्ण गीतावली - हनुमानप्रसाद पोद्दार
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
निवेदन
‘श्रीकृष्णगीतावली’ गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी का अति
ललित
व्रजभाषा में रचित बड़ा ही रसमय और अत्यन्त मधुर गीति-काव्य है।
इसमें कुल 61 पद हैं, जिनमें 20 बाललीला, 3 रूप-सौन्दर्य के, 9 विरह के, 27 उद्धव-गोपिका-संवाद या भ्रमरगीत के और 2 द्रौपदी-लज्जा-रक्षण के हैं। सभी पद परम सरस और मनोहर हैं। पदों में ऐसा स्वाभाविक सुन्दर और सजीव भावचित्रण है कि पढ़ते-पढ़ते लीला-प्रसंग मूर्तिमान होकर सामने आ जाता है।
गोस्वामीजी के इस ग्रन्थ से यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि श्रीराम-रूप के अनन्योपासक होने पर भी श्रीगोस्वामीजी भगवान् श्रीरामभद्र और भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र में सदा अभेदबुद्धि रखते थे और दोनों ही स्वरूपों का तथा उनकी लीलाओं का वर्णन करने में अपने को कृतकृत्य तथा धन्य मानते थे। ‘विनयपत्रिका’ आदि में भी श्रीकृष्ण का महत्त्व कई जगह आया है, पर श्रीकृष्णगीतावली में तो वह प्रत्यक्ष प्रकट हो गया है।
श्रीकृष्णगीतावली के पदों का भावार्थ भी साथ दे दिया गया है, इससे पदों का भाव समझने में कुछ सुविधा होगी। आशा है कि श्रीकृष्णप्रेमी पाठक-पाठिकाएँ गोस्वामीजी की इस अनूठी रचना से प्रेमपथ के साधन में प्रगति तथा परम आनन्द लाभ करेंगे।
इसमें कुल 61 पद हैं, जिनमें 20 बाललीला, 3 रूप-सौन्दर्य के, 9 विरह के, 27 उद्धव-गोपिका-संवाद या भ्रमरगीत के और 2 द्रौपदी-लज्जा-रक्षण के हैं। सभी पद परम सरस और मनोहर हैं। पदों में ऐसा स्वाभाविक सुन्दर और सजीव भावचित्रण है कि पढ़ते-पढ़ते लीला-प्रसंग मूर्तिमान होकर सामने आ जाता है।
गोस्वामीजी के इस ग्रन्थ से यह भलीभाँति सिद्ध हो जाता है कि श्रीराम-रूप के अनन्योपासक होने पर भी श्रीगोस्वामीजी भगवान् श्रीरामभद्र और भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र में सदा अभेदबुद्धि रखते थे और दोनों ही स्वरूपों का तथा उनकी लीलाओं का वर्णन करने में अपने को कृतकृत्य तथा धन्य मानते थे। ‘विनयपत्रिका’ आदि में भी श्रीकृष्ण का महत्त्व कई जगह आया है, पर श्रीकृष्णगीतावली में तो वह प्रत्यक्ष प्रकट हो गया है।
श्रीकृष्णगीतावली के पदों का भावार्थ भी साथ दे दिया गया है, इससे पदों का भाव समझने में कुछ सुविधा होगी। आशा है कि श्रीकृष्णप्रेमी पाठक-पाठिकाएँ गोस्वामीजी की इस अनूठी रचना से प्रेमपथ के साधन में प्रगति तथा परम आनन्द लाभ करेंगे।
-हनुमानप्रसाद पोद्दार
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