लोगों की राय

उपन्यास >> पहली उमंगे

पहली उमंगे

कोन्स्तान्तिन फ़ेदिन

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :360
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9209
आईएसबीएन :9788126704156

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

10 पाठक हैं

पहली उमंगे

पहली उमंगें / कोंस्तान्तिन फ़ेदिन पहली उमंगें उपन्यास के घटना-क्रम की शुरुआत प्रथम विश्वयुद्ध की पूर्व वेला में, 1910 के आसपास वोल्गा के किनारे स्थित सरातोव नामक छोटे-से शहर में होती है। कहानी मुख्यतः एक युवा क्रान्तिकारी (इज्वेकोव) और एक प्रौढ़-परिपक्व बोल्शेविक कारखाना मजदूर (रागोजिन) की गतिविधियों के आसपास घूमती है, लेकिन इनके साथ ही क्रान्ति पूर्व रूस के विभिन्न वर्गों और संस्तरों के प्रतिनिधि अपनी सामाजिक स्थिति, मनोविज्ञान, राग-विराग और पारस्परिक सम्बन्धों के साथ अत्यन्त जीवन्त रूप में मौजूद हैं- व्यापारी मेरकूरी अव्देविच और उसकी बेटी लीजा, अभिजात लेखक पास्तुखोव, छलिया अभिनेता स्त्वेतुखिन, क्रान्ति के गुप्त सहयोगी बुद्धिजीवी और तलछट-निवासी लम्पट सर्वहारा चरित्र। टाइप चरित्रों के सृजन और विकास की फ़ेदिन की तकनीक अनूठी है। सामान्य घटनाक्रम-विकास के बीच वे चरित्रों की परत-दर-परत खोलते हुए मानो उनका मनोवैज्ञानिक अध्ययन भी प्रस्तुत करते चलते हैं। काल-विशेष की सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों की वस्तुपरक प्रस्तुति, ऐतिहासिक घटना प्रवाह का व्यक्तियों पर प्रभाव और घटना-प्रवाह में व्यक्तियों की भूमिका तथा अलग-अलग वर्गों के प्रतिनिधि चरित्रों की ऐतिहासिक नियति के चित्रण के साथ ही फ़ेदिन जनता के बीच से उभरते प्रतिनिधि सकारात्मक चरित्रों की गति की को उद्घाटित करते हुए एक नये मानव के जन्म की कहानी बयान करते हैं।

पहली उमंगें उपन्यास एक ऐसे समय का साहित्यिक दस्तावेज है जब समाज में, आतंक के साये के बीच, कभी भी कहीं से परिवर्तन की किसी विस्फोटक, आकस्मिक शुरुआत की सम्भावना लोग निरन्तर महसूस कर रहे थे। सतह पर सामान्य जीवन का दैनन्दिन नाटक जारी था और सतह के नीचे परिवर्तन की शक्तियाँ लगातार संगठित तैयारियों में जुटी हुई थीं। उपन्यास की अनेक थीमें इस विचार द्वारा एकता बद्ध हैं कि दुनिया को पुनर्संगठित करने का संघर्ष ही मूल्य और सत्यनिष्ठा से युक्त मानव-व्यक्तित्व का निर्माण कर सकता है, चीजों को बदलने की प्रक्रिया में ही लोग स्वयं को बदल सकते हैं और क्रान्ति के दहनपात्र में ही नया मानव ढाला-गढ़ा जा सकता है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book