लोगों की राय

ऐतिहासिक >> लौटे हुए मुसाफिर

लौटे हुए मुसाफिर

कमलेश्वर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9199
आईएसबीएन :9789352210206

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

123 पाठक हैं

लौटे हुए मुसाफिर...

कहानी लेखन में अपनी विशिष्ट पहचान के साथ कमलेश्वर ने अपने छोटे कलेवर के उपन्यासों में मध्यवर्गीय जीवन के चित्रण को लेकर छठे-सातवें दशक के हिंदी परिदृश्य में अपना अलग स्थान बनाया ! देश-दुनिया, समाज-संस्कृति और राजनीति से जुड़े विषय भी अक्सर उनकी कथा-रचनाओं के विषय बने हैं ! 'काली आंधी' और 'कितने पाकिस्तान' जैसी रचनाओं के लिए विशेष रूप से ख्यात कमलेश्वर की लेखनी मध्यवर्गीय जीवन की विडम्बनाओं पर ही ठहरती है ! वर्ष 1961 में प्रकाशित इस उपन्यास 'लौटे हुए मुसाफिर' में स्वतंत्रता के आगमन के साथ गंभीर रूप धारण करती साम्प्रदायिकता की समस्या और भारत विभाजन के नाम पर बेघर-बार हुए मुस्लिम समाज के मोहभंग और उनकी वापसी की विवशता को दर्शाया गया है ! यह इस उपन्यास की प्रभावशाली रचनात्मकता और इतिहास-बोध के कारण ही संभव हुआ कि इस छोटे से उपन्यास का उल्लेख भारत-विभाजन पर केन्द्रित गिने-चुने हिंदी उपन्यासों में प्रमुखता के साथ किया जाता है ! अपनी आवेशयुक्त शैली में कमलेश्वर ने इस कृति में आजादी और विभाजन के ऊहापोहमें फंसे हिन्दुओं और मुसलमानों की मनःस्थिति के साथ भारत के सामाजिक ताने-बाने में आए निर्णायक बदलाव को भी रेखांकित किया है !

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book