इतिहास और राजनीति >> पाकिस्तान का आदि और अन्त पाकिस्तान का आदि और अन्तबलराज मधोक
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पाकिस्तान का आदि और अन्त...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रकाशकीय
यह पुस्तक भारत-पाकिस्तान 1971 युद्ध के लगभग एक वर्ष बाद श्री बलराज मधोक ने लिखी थी। इस पुस्तक के प्रथम खण्ड ‘पाकिस्तान का आदि’ में उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि पाकिस्तान के निर्माण में या भारत के विभाजन में मुस्लिम लीग या उनके नेताओं से अधिक दोषी कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति है। इसी नीति के कारण गांधी जी ने कांग्रेस को खिलाफत आंदोलन में झोंक दिया। यह आन्दोलन तुर्की के खलीफा के पक्ष में था। खलीफा तुर्की का अपदस्थ हुआ। किया अंग्रेजों ने। नजला गिरा भारत के हिन्दुओं पर। दंगे हुए हिन्दुओं के विरुद्ध। सहस्त्रों मारे गए। सहस्त्रों महिलाओं की इज्जत लुटि। लाखों बेघरबार हुए। यह दंगा मोपला विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन से पूर्व हिन्दू मुस्लिम झगड़े ही होते थे परन्तु इसके बाद इस तरह के झगड़े दंगों का रूप लेने लग गए जो आज तक जारी हैं।
इस पुस्तक में उन्होंने विभाजित पाकिस्तान के पुनः खण्डित होने की सम्भावना का भी वर्णन किया है। यह लगभग सत्य ही सिद्ध हो जाती यदि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा जी सूझबूझ से काम लेतीं। स्वाधीनता के बाद गांधीजी के जितने भी शिष्य भारत के कर्णधार बनें, उनमें कहीं भी देश के लिए कठोर निर्णय लेने की क्षमता नहीं झलकी। यदि किसी ने कठोर निर्णय लिए तो स्वार्थवश! अपने दल या अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए तो चाणक्य नीति सभी को कण्ठस्थ थी परन्तु देश के लिए बुद्धनीति का ध्यान आ जाता था। निश्चित ही क्षमा बड़ों को शोभा देती है, परन्तु क्षमा सदैव प्रायश्चित करने वाले को ही देनी चाहिए। जिस व्यक्ति, देश या जाति को अपने किए पर पश्चाताप नहीं उसे क्षमा करना अपराध को बढ़ावा देना है। और अपराध को बढ़ावा देना स्वयं एक अपराध है। इसे ध्यान में रखकर देखें तो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण व युवावस्था में कम्युनिस्ट चीन से प्यार के कारण स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री भी दोषी सिद्ध हो जाते हैं। यदि वह दोषी थे तो उन्हें बढ़ावा देने वाले गांधीजी भी दोष रहित नहीं कहे जा सकते। परन्तु वास्तविक दोषी तो इस देश की जनता है जिसने इन सभी के दोषों को देखकर बार-बार इनको बिना प्रायश्चित के क्षमा कर इनका पक्ष लिया।
इन्दिरा जी ने अपने स्वार्थ के लिए आपात स्थिति घोषित की। जनता ने उन्हें उखाड फेंका। चौधरी चरण सिंह या चन्द्रशेखर के स्वार्थ को हवा देकर इन्दिरा जी ने पुनः गद्दी हासिल की। क्या जनता को पता नहीं चला ? सब पता था परन्तु बिना प्रायश्चित किए इन्दिराजी के दोषों को माफ करना देशवासियों का अपराध था। वह इन्दिरा जी जो भारत पाक 1971 के युद्ध के बाद दुर्गा घोषित हो रही थीं अपने स्वार्थ के लिए अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों पर तो चाणक्य नीति आजमा रही थी, परन्तु वास्तविक दुश्मन पाकिस्तान या चीन पर बुद्ध नीति प्रयोग कर रही थीं।
इन्दिराजी की मानस सन्तति आज भी इसी नीति पर चल रही हैं। पाकिस्तान जो अपनी टूटन को बचाने के लिए भारत पर आतंकवाद का हमला कर रहा है। चीन जो अपनी दादागिरी दिखाने के लिए बार-बार सीमा का अतिक्रमण कर रहा है क्षम्य हो गए हैं परन्तु राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों को येन-केन प्रकारेण समाप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं। केन्द्रीय सरकार के मन्त्री तक विभिन्न प्रदेशों की सरकारों को ऐसा निर्देश देते हैं कि अल्पसंख्यकों को परेशान न किया जाए परन्तु अपने समर्थकों द्वारा बहुसंख्यकों या उनके पक्षधरों के विरुद्ध षड्यंत्र या विषवमन करवाकर या करने वालों को प्रोत्साहन देकर उनके नेताओं को समाप्त करने के प्रयास किया जा रहा है। मध्यमवर्ग को चूस-चूस कर हमारे कर्णधार जाति विशेष या वर्ग विशेष को प्रोत्साहन के नाम पर रिश्वत दे रहे हैं। यह प्रोत्साहन केवल अफीम सिद्ध हो रहा है। जनता इस अफीम के नशे में सो रही है। देश बंट रहा है। इस वृहत देश में राष्ट्रवाद समाप्त होने के कारण प्रदेशवाद हावी है। तथाकथित सेक्युलर दल स्वयं किसी न किसी सम्प्रदाय विशेष के हाथों बिकने को तैयार हैं।
संक्षेप में कह सकते हैं कि पाकिस्तान का अंत तो समय के गर्भ में है। परन्तु भारत के वर्तमान कर्णधार जिनमें भारतीयता का अन्त तो हो ही चुका है क्या भारत का अन्त नहीं कर रहे ?
इस पुस्तक में उन्होंने विभाजित पाकिस्तान के पुनः खण्डित होने की सम्भावना का भी वर्णन किया है। यह लगभग सत्य ही सिद्ध हो जाती यदि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा जी सूझबूझ से काम लेतीं। स्वाधीनता के बाद गांधीजी के जितने भी शिष्य भारत के कर्णधार बनें, उनमें कहीं भी देश के लिए कठोर निर्णय लेने की क्षमता नहीं झलकी। यदि किसी ने कठोर निर्णय लिए तो स्वार्थवश! अपने दल या अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए तो चाणक्य नीति सभी को कण्ठस्थ थी परन्तु देश के लिए बुद्धनीति का ध्यान आ जाता था। निश्चित ही क्षमा बड़ों को शोभा देती है, परन्तु क्षमा सदैव प्रायश्चित करने वाले को ही देनी चाहिए। जिस व्यक्ति, देश या जाति को अपने किए पर पश्चाताप नहीं उसे क्षमा करना अपराध को बढ़ावा देना है। और अपराध को बढ़ावा देना स्वयं एक अपराध है। इसे ध्यान में रखकर देखें तो अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण व युवावस्था में कम्युनिस्ट चीन से प्यार के कारण स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री भी दोषी सिद्ध हो जाते हैं। यदि वह दोषी थे तो उन्हें बढ़ावा देने वाले गांधीजी भी दोष रहित नहीं कहे जा सकते। परन्तु वास्तविक दोषी तो इस देश की जनता है जिसने इन सभी के दोषों को देखकर बार-बार इनको बिना प्रायश्चित के क्षमा कर इनका पक्ष लिया।
इन्दिरा जी ने अपने स्वार्थ के लिए आपात स्थिति घोषित की। जनता ने उन्हें उखाड फेंका। चौधरी चरण सिंह या चन्द्रशेखर के स्वार्थ को हवा देकर इन्दिरा जी ने पुनः गद्दी हासिल की। क्या जनता को पता नहीं चला ? सब पता था परन्तु बिना प्रायश्चित किए इन्दिराजी के दोषों को माफ करना देशवासियों का अपराध था। वह इन्दिरा जी जो भारत पाक 1971 के युद्ध के बाद दुर्गा घोषित हो रही थीं अपने स्वार्थ के लिए अपने राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों पर तो चाणक्य नीति आजमा रही थी, परन्तु वास्तविक दुश्मन पाकिस्तान या चीन पर बुद्ध नीति प्रयोग कर रही थीं।
इन्दिराजी की मानस सन्तति आज भी इसी नीति पर चल रही हैं। पाकिस्तान जो अपनी टूटन को बचाने के लिए भारत पर आतंकवाद का हमला कर रहा है। चीन जो अपनी दादागिरी दिखाने के लिए बार-बार सीमा का अतिक्रमण कर रहा है क्षम्य हो गए हैं परन्तु राजनैतिक प्रतिद्वन्द्वियों को येन-केन प्रकारेण समाप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं। केन्द्रीय सरकार के मन्त्री तक विभिन्न प्रदेशों की सरकारों को ऐसा निर्देश देते हैं कि अल्पसंख्यकों को परेशान न किया जाए परन्तु अपने समर्थकों द्वारा बहुसंख्यकों या उनके पक्षधरों के विरुद्ध षड्यंत्र या विषवमन करवाकर या करने वालों को प्रोत्साहन देकर उनके नेताओं को समाप्त करने के प्रयास किया जा रहा है। मध्यमवर्ग को चूस-चूस कर हमारे कर्णधार जाति विशेष या वर्ग विशेष को प्रोत्साहन के नाम पर रिश्वत दे रहे हैं। यह प्रोत्साहन केवल अफीम सिद्ध हो रहा है। जनता इस अफीम के नशे में सो रही है। देश बंट रहा है। इस वृहत देश में राष्ट्रवाद समाप्त होने के कारण प्रदेशवाद हावी है। तथाकथित सेक्युलर दल स्वयं किसी न किसी सम्प्रदाय विशेष के हाथों बिकने को तैयार हैं।
संक्षेप में कह सकते हैं कि पाकिस्तान का अंत तो समय के गर्भ में है। परन्तु भारत के वर्तमान कर्णधार जिनमें भारतीयता का अन्त तो हो ही चुका है क्या भारत का अन्त नहीं कर रहे ?
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