रोमांटिक >> रात भारी है रात भारी हैअमृता प्रीतम
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रात भारी है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘मेरे दिल की बस्तियां कई है, जिनमें से कई वीरान हो चुकी है... मेरे ननिहाल का और ददिहाल का, दोनों गांव मुझसे इस तरह छुट गए, जैसे किसी बच्चे से उसकी माँ छूट जाए। सियासत वालों ने मिलकर मुल्क बांट लिया। लोग तकसीम कर लिए। पंजाब भी तकसीम हुआ है। मेरे हिस्से का पंजाब ‘भारत बन गया। अमृता और कृश्न चंदर का पंजाब पाकिस्तान बन गया...मेरा सतलुज दरिया कांग्रेस वालों ने ले लिया, उनका रावी मुस्लिम लीग वाले ले गए...’’ … अकाल तोसीफ ‘‘बदन का रोजा न रखा जाए तो मुहब्बत करने का सलीका नहीं आता। कहानी के लिबास पर सच्चाई के फूल नहीं खिलते हैं... - मज़हर-उल-इस्लाम ‘‘मेरे ख्याल में लेखक वह होता है, जो किसी तानाशाह के जुल्मों से कंप्रोमाईज़ नहीं करता। उसकी कमिटमैंट लोगों के साथ होती है। जिस अहद में यह जीता है, उस अहद में अपने इदे-गिर्द के लोगों की पीड़ा और प्यास से अपने को आइडेन्टीफाई करता है...” फ़ख ज़मां
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